ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 23/ मन्त्र 3
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
पाता॑ सु॒तमिन्द्रो॑ अस्तु॒ सोमं॑ प्रणे॒नीरु॒ग्रो ज॑रि॒तार॑मू॒ती। कर्ता॑ वी॒राय॒ सुष्व॑य उ लो॒कं दाता॒ वसु॑ स्तुव॒ते की॒रये॑ चित् ॥३॥
स्वर सहित पद पाठपाता॑ । सु॒तम् । इन्द्रः॑ । अ॒स्तु॒ । सोम॑म् । प्र॒ऽने॒नीः । उ॒ग्रः । ज॒रि॒तार॑म् । ऊ॒ती । कर्ता॑ । वी॒राय॑ । सुस्व॑ये । ऊ॒म्ँम् इति॑ । लो॒कम् । दाता॑ । वसु॑ । स्तु॒व॒ते । की॒रये॑ । चि॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पाता सुतमिन्द्रो अस्तु सोमं प्रणेनीरुग्रो जरितारमूती। कर्ता वीराय सुष्वय उ लोकं दाता वसु स्तुवते कीरये चित् ॥३॥
स्वर रहित पद पाठपाता। सुतम्। इन्द्रः। अस्तु। सोमम्। प्रऽनेनीः। उग्रः। जरितारम्। ऊती। कर्ता। वीराय। सुस्वये। ऊँ इति। लोकम्। दाता। वसु। स्तुवते। कीरये। चित् ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 23; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! य ऊती प्रणेनीः पातोग्र इन्द्रस्सुतं सोमं जरितारं करोति स नो राजास्तु। य उ वीराय सुष्वये स्तुवते कीरये दाता कर्त्ता लोकं वसु चित् करोति सोऽस्माकमधिष्ठाताऽस्तु ॥३॥
पदार्थः
(पाता) रक्षकः (सुतम्) निष्पादितम् (इन्द्रः) ऐश्वर्यकारी राजा (अस्तु) (सोमम्) सोमलताद्योषध्यादिरसम् (प्रणेनीः) प्रकर्षेण न्यायकृत् (उग्रः) तेजस्वी (जरितारम्) स्तोतारम् (ऊती) ऊत्या रक्षणादिक्रियया (कर्त्ता) (वीराय) (सुष्वये) सुष्ठ्वभिषोत्रे (उ) (लोकम्) (दाता) (वसु) (स्तुवते) (कीरये) स्तावकाय (चित्) अपि ॥३॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! तमेव राजानं मन्यध्वं यः सर्वशास्त्रवित् पुरुषार्थी धार्मिको जितेन्द्रियो भवेत् ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (ऊती) रक्षण आदि क्रिया से (प्रणेनीः) अत्यन्त न्याय करने और (पाता) रक्षा करनेवाला (उग्रः) तेजस्वी (इन्द्रः) ऐश्वर्यकारी राजा (सुतम्) उत्पन्न किये गये (सोमम्) सोमलता आदि ओषधियों के रस को और (जरितारम्) स्तुति करनेवाले को करता है, वह हम लोगों का राजा हो और जो (उ) तर्क-वितर्क से (वीराय) पराक्रमयुक्त (सुष्वये) उत्तम प्रकार अच्छे पदार्थों के उत्पन्न करनेवाले (स्तुवते) स्तुति करते हुए (कीरये) स्तुति करनेवाले के लिये (दाता) दाता और (कर्ता) कार्य करनेवाला (लोकम्) लोक को (वसु) और धन को (चित्) भी करता है, वह हम लोगों का अग्रणी (अस्तु) हो ॥३॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! उसी को राजा मानो, जो सम्पूर्ण शास्त्रों का जाननेवाला, पुरुषार्थी, धार्मिक और इन्द्रियों को वश में रखनेवाला होवे ॥३॥
विषय
उसके उत्तम २ कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( प्र-नेनीः ) उत्तम उद्देश्य की ओर लेजाने हारा ( उग्रः ) बलवान् पुरुष ( ऊती ) रक्षा, उत्तम उपाय और सन्मार्ग से ( सुतं ) उत्पन्न अभिषेक द्वारा प्राप्त, ( सोमं ) राष्ट्र को और ( जरितारं ) उपदेष्टा विद्वान् (पाता ) पालन करने हारा पुरुष ( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान् होकर राजा ( अस्तु ) बने । वह ( सु-स्वये वीराय ) उत्तम ऐश्वर्य को उत्पन्न करने वाले वीर पुरुषों के लिये ( लोकं कर्त्ता ) उत्तम स्थान बनावे ( कीरये चित् ) उत्तम विद्वान् ( स्तुवते) उपदेष्टा पुरुष के लिये भी ( वसु ) उत्तम गृह, धन आदि का ( दाता अस्तु ) देने वाला हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषि: ।। इन्द्रो देवता ॥ छन्द्रः – १, ३, ८,९ निचृत्त्रिष्टुप् । ५,६,१० त्रिष्टुप् । ७ विराट् त्रिष्टुप् । २, ४ स्वराट् पंक्ति: ॥ दशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
सोमं पाता, लोकं वसु दाता, प्रणेनी:
पदार्थ
[१] (इन्द्रः) = सब वासनारूप शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला प्रभु (सुतं सोमम्) = उत्पन्न हुएहुए सोम को (पाता अस्तु) = हमारे शरीरों के अन्दर ही पीनेवाला हो । प्रभु कृपा से हम सोम को शरीरों में सुरक्षित कर पायें । (उग्रः) = तेजस्वी प्रभु (जरितारम्) = स्तोता को (ऊती) = रक्षण के द्वारा (प्रणेनी:) = निरन्तर उत्कृष्ट मार्ग पर ले चलनेवाला हो। [२] इस (वीराय) = शत्रुओं को विशेषरूप से कम्पित करनेवाले (सुष्वये) = सोम का सम्पादन करनेवाले अथवा यज्ञशील पुरुष के लिए (उ) = निश्चय से (लोकं कर्ता) = उत्तम लोक को करनेवाले होते हैं, इसे उत्तम लोक व प्रकाश की प्राप्ति कराते हैं और (स्तुवते) = इस स्तवन करनेवाले (कीरये) = स्तोता के लिए (चित्) = निश्चय से (वसुदाता) = उत्कृष्ट वसुओं [धनों] को देते हैं। यह स्तोता कभी भी जीवन के निवास को उत्तम बनाने के लिए आवश्यक धनों की कमी को अनुभव नहीं करता।
भावार्थ
भावार्थ – उपासित प्रभु [क] हमारे सोम का रक्षण करते हैं, [ख] हमें उत्कृष्ट मार्ग से ले चलते हैं, [ग] उत्तम लोक व प्रकाश को प्राप्त कराते हैं, [घ] जीवनयात्रा के लिए आवश्यक धनों को देते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जो संपूर्ण शास्त्रे जाणणारा, पुरुषार्थी, धार्मिक व इंद्रियांना आपल्या नियंत्रणात ठेवणारा असेल त्यालाच राजा माना. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May Indra, ruler of the world, be protector of the joy of life created with cooperative effort under divine guidance. May the lord of splendour be the leader to guide the celebrant to the desired goal in protection and security of justice. May the lord be the creator of a world of beauty for the brave who endeavour to contribute to the health and joy of life. May the lord bless the divine poet and celebrant with wealth and prosperity in life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of a king's duties is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! let that prosperous king be our ruler who protects us with his protective powers, is exceedingly just, full of splendor, guards the extractor of the Soma juice, who is admirer of good virtues. Let him be our administrator who gives to the brave devotee of God, who is admirer of good man, and bestows upon him good dwelling place and wealth.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men ! regard him only as a king, who is knower of all shastras, is industrious, righteous and a man of self- control.
Foot Notes
(प्रणेनी:) प्रकर्षेण न्यायकृत् । = A very good कीरिः इति स्तोतृनाम (NG 3, 16) dispenser of justice. (कीरये) स्तावकाय । = Praiser of God and the virtues of good men.
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