ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 23/ मन्त्र 4
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
गन्तेया॑न्ति॒ सव॑ना॒ हरि॑भ्यां ब॒भ्रिर्वज्रं॑ प॒पिः सोमं॑ द॒दिर्गाः। कर्ता॑ वी॒रं नर्यं॒ सर्व॑वीरं॒ श्रोता॒ हवं॑ गृण॒तः स्तोम॑वाहाः ॥४॥
स्वर सहित पद पाठगन्ता॑ । इय॑न्ति । सव॑ना । हरि॑ऽभ्याम् । ब॒भ्रिः । वज्र॑म् । प॒पिः । सोम॑म् । द॒दिः । गाः । कर्ता॑ । वी॒रम् । नर्य॑म् । सर्व॑ऽवीरम् । श्रोता॑ । हव॑म् । गृ॒ण॒तः । स्तोम॑ऽवाहाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
गन्तेयान्ति सवना हरिभ्यां बभ्रिर्वज्रं पपिः सोमं ददिर्गाः। कर्ता वीरं नर्यं सर्ववीरं श्रोता हवं गृणतः स्तोमवाहाः ॥४॥
स्वर रहित पद पाठगन्ता। इयन्ति। सवना। हरिऽभ्याम्। बभ्रिः। वज्रम्। पपिः। सोमम्। ददिः। गाः। कर्ता। वीरम्। नर्यम्। सर्वऽवीरम्। श्रोता। हवम्। गृणतः। स्तोमऽवाहाः ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 23; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे स्तोमवाहा मनुष्या ! यो हरिभ्यामियान्ति सवना गन्ता वज्रं बभ्रिः सोमं पपिर्गा ददिर्गृणतो हवं श्रोता सर्ववीरं नर्यं वीरं कर्त्ता भवेत्तं राजानं मन्यध्वम् ॥४॥
पदार्थः
(गन्ता) (इयान्ति) एतावन्ति। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सवना) सवनान्यैश्वर्यकारकाणि कर्माणि (हरिभ्याम्) अध्यापकोपदेशकाभ्यां मनुष्याभ्यां सह (बभ्रिः) भर्त्ता धर्त्ता वा (वज्रम्) (पपिः) पाता (सोमम्) (ददिः) दाता (गाः) (कर्त्ता) (वीरम्) (नर्यम्) नृषु श्रेष्ठम् (सर्ववीरम्) सर्वे वीरा यस्मात्तम् (श्रोता) (हवम्) प्रशंसनीयम् (गृणतः) स्तुवतः (स्तोमवाहाः) ये स्तोमान् वहन्ति ॥४॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यः सर्वेषु राजकर्मसु कुशलः स्यात्तं नृपं कृत्वा न्यायेन राज्यं पालयत ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (स्तोमवाहाः) समूहों को धारण करनेवाले मनुष्यो ! जो (हरिभ्याम्) अध्यापक और उपदेशक मनुष्यों के साथ (इयान्ति) इतने (सवना) ऐश्वर्यकारक कर्म्मों को (गन्ता) प्राप्त होनेवाला (वज्रम्) अस्त्रविशेष को (बभ्रिः) पुष्ट करने वा धारण करने तथा (सोमम्) सोमलता के रस का (पपिः) पान करने और (गाः) गौओं को (ददिः) देनेवाला (गृणतः) स्तुति करते हुओं को और (हवम्) प्रशंसा करने योग्य को (श्रोता) सुननेवाला (सर्ववीरम्) सम्पूर्ण वीर जिससे उस (नर्यम्) मनुष्यों में श्रेष्ठ (वीरम्) वीरजन को (कर्त्ता) करनेवाला होवे, उसको राजा मानो ॥४॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो सम्पूर्ण राजकर्मों में निपुण हो, उसको राजा करके न्याय से राज्य का पालन करो ॥४॥
विषय
उसके उत्तम २ कर्त्तव्य ।
भावार्थ
वह राजा ( हरिभ्यां ) अश्वों से रथवान् पुरुष ( हरिभ्यां ) राष्ट्र में विद्यमान उत्तम स्त्री पुरुषों द्वारा, व उनके हितार्थ अथवा उत्तम दो विद्वानों द्वारा ( इयन्ति सवना ) इतने, नाना शासनोचित कार्यों, ऐश्वर्यों को ( गन्ता ) प्राप्त होने वाला, (वज्रं बभ्रि:) शस्त्र बल को धारण करने वाला, ( सोमं पपिः ) अन्न और ऐश्वर्य का भोक्ता और पालक ( गाः ददि: ) उत्तम वाणियों और भूमियों का दान करने वाला हो। वह ( सर्व-वीरं ) समस्त वीर पुरुषों से युक्त (नर्यं ) नायक पुरुष के अधीन और राष्ट्र में बसे मनुष्यों का हितकारी ( वीरं ) वीर सैन्य वा पुत्र का ( कर्त्ता ) उत्पन्न करने वाला हो । वह ( स्तोमवाहाः ) स्तुति वचनों और स्तुत्य पदाधिकार को धारण करने हारा होकर ( गृणतः हवं श्रोता ) उपदेष्टा और निवेदक जन के उत्तम वचनों और पुकार का श्रवण करने वाला हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषि: ।। इन्द्रो देवता ॥ छन्द्रः – १, ३, ८,९ निचृत्त्रिष्टुप् । ५,६,१० त्रिष्टुप् । ७ विराट् त्रिष्टुप् । २, ४ स्वराट् पंक्ति: ॥ दशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
बभ्रिर्वज्रं, पपिः सोमं, ददिर्गाः
पदार्थ
[१] वे प्रभु (इयान्ति सवना) = जीवन के इतने वर्षों तक चलनेवाले यज्ञों को (हरिभ्याम्) = उत्तम इन्द्रियाश्वों से गन्ता प्राप्त होते हैं । अर्थात् प्रभु हमें उत्कृष्ट इन्द्रियाश्वों को प्राप्त कराते हैं, ताकि हम जीवन के तीनों सवनों को 'प्रातः, मध्याह्न व तृतीय' इन तीनों सवनों को ठीक प्रकार से पूर्ण कर सकें । हे प्रभो! इन सवनों के रक्षण के लिए (वज्रं बभ्रिः) = आप वज्र को धारण करते हैं, (सोमं पपिः) = सोम का पान व रक्षण करते हैं, (गाः ददि:) = उत्कृष्ट इन्द्रियों व ज्ञान-वाणियों को देते हैं। [२] आप इस स्तोता को (वीरम्) = शत्रुओं का कम्पक, (नर्यम्) = नरहितकारी कर्मों को करनेवाला व (सर्ववीरम्) = सब वीर पुत्रोंवाला कर्ता करते हैं। (गृणत: हवं श्रोता) = स्तोता की आराधना को सुनते हैं। स्तोता की पुकार को आप सुनते हैं। (स्तोमवाहाः) = स्तोत्रों से आप वहनीय होते हैं । अर्थात् स्तोत्रों के द्वारा आप प्राप्त करने योग्य होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमें उत्कृष्ट इन्द्रियाँ प्राप्त कराके जीवन के सब सवनों को पूर्ण कर सकने के योग्य बनाते हैं। हमारे सोम का [वीर्य] रक्षण करते हैं, ज्ञान-वाणियों को हमें प्राप्त कराते हैं ये प्रभु हमें वीर 'नर्य व सर्ववीर' बनाते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जो संपूर्ण राज्यकर्मात निपुण असेल त्याला राजा करून न्यायाने राज्याचे पालन करा. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Listen ye all celebrants and yajakas, Indra, ruler of the world, is he who reaches all programmes of positive and creative development by the fastest transport with dynamic experts of theory and practice both, who wields thunderous power and weapons, protects, promotes and shares the soma, invigorating joys of life, gives cows, fertile lands and brilliant words of wisdom and guiding policy, creates bravest of the brave leaders, and listens and appreciates the songs and celebrations of the admirers among the people.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
More is stated about the kings attributes.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! conveyors of praises, you accept him only as your king who attends with the teachers and preachers to all works that bring about prosperity to the State, who is wielder of the powerful weapons, drinker of the juice of nourishing herbs, giver of the cattle, hearer of the just requests of the admirers, (thus) making the best person, leader of the heroes.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men ! elect him as king who is expert in all royal duties and then protect the State with justice.
Foot Notes
(सवना) सर्वनान्यैश्वर्य कारकाणि षु प्रसवैश्वर्ययोः (भ्वा०) अत्रैश्वर्थक:। = Works leading to prosperity. (हरिभ्याम्) अध्यापकोपदेशकाभ्यां हरयः इति मनुष्यनाम (NG 2, 3 ) = with teachers and preachers. (बभ्रि:) भर्त्ता धर्ता वा । भुव्-धारण पोषणयो: (जु.) = Sustainer or upholder.
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