ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 59/ मन्त्र 2
ऋषि: - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - विराडबृहती
स्वरः - मध्यमः
बळि॒त्था म॑हि॒मा वा॒मिन्द्रा॑ग्नी॒ पनि॑ष्ठ॒ आ। स॒मा॒नो वां॑ जनि॒ता भ्रात॑रा यु॒वं य॒मावि॒हेह॑मातरा ॥२॥
स्वर सहित पद पाठबट् । इ॒त्था । म॒हि॒मा । वा॒म् । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । पनि॑ष्ठः । आ । स॒मा॒नः । वा॒म् । ज॒नि॒ता । भ्रात॑रा । यु॒वम् । य॒मौ । इ॒हेह॑ऽमातरा ॥
स्वर रहित मन्त्र
बळित्था महिमा वामिन्द्राग्नी पनिष्ठ आ। समानो वां जनिता भ्रातरा युवं यमाविहेहमातरा ॥२॥
स्वर रहित पद पाठबट्। इत्था। महिमा। वाम्। इन्द्राग्नी इति। पनिष्ठः। आ। समानः। वाम्। जनिता। भ्रातरा। युवम्। यमौ। इहेहऽमातरा ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 59; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरध्यापकोपदेशकौ कीदृशौ भवेतामित्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्राग्नी ! यो वां पनिष्ठो बड् महिमा वां समानो जनितेहेहमातरा यमौ भ्रातरा वर्त्तेते तावित्था युवमाजीवथः ॥२॥
पदार्थः
(बट्) सत्यम् (इत्था) अनेन प्रकारेण (महिमा) प्रतापः (वाम्) युवयोः (इन्द्राग्नी) वायुवह्नी इव वर्त्तमानौ राजप्रजाजनौ (पनिष्ठः) अतिशयेन प्रशंसितः (आ) (समानः) तुल्यः (वाम्) युवयोः (जनिता) उत्पादकः (भ्रातरा) बन्धू (युवम्) युवाम् (यमौ) नियन्तारौ (इहेहमातरा) इहेहमाता जननी ययोस्तौ ॥२॥
भावार्थः
येऽध्यापकोपदेशका विद्युत्सूर्य्यवत् व्याप्तविद्याः परोपकारिणः सन्ति ते सत्यमहिमानो भवन्ति ॥२॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर अध्यापक और उपदेशक कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्राग्नी) पवन और अग्नि के तुल्य राजप्रजाजनो ! जो (वाम्) तुम दोनों का (पनिष्ठः) अतीव प्रशंसित (बट्) सत्य (महिमा) प्रताप वा (वाम्) तुम दोनों का (समानः) तुल्य (जनिता) उत्पादन करनेवाला पिता (इहेहमातरा) यहाँ-यहाँ जिनकी माता वे (यमौ) नियन्ता अर्थात् गृहस्थी के चलानेवाले (भ्रातरा) भाई वर्त्तमान हैं उनको (इत्था) इस प्रकार से (युवम्) तुम (आ, जीवथः) जिलाते हो ॥२॥
भावार्थ
जो अध्यापक और उपदेशक बिजुली और सूर्य्य के तुल्य विद्याओं में व्याप्त तथा परोपकारी हैं, वे सत्य महिमावाले होते हैं ॥२॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे अध्यापक व उपदेशक विद्युत व सूर्याप्रमाणे विद्येत रमलेले असतात व परोपकार करतात ते खरे महिमायुक्त असतात. ॥ २ ॥
English (1)
Meaning
Indra and Agni, great and true and most admirable is your might and majesty. Your father, source of generation, is one and the same, you are twins, and your mother is right here, Nature, Shakti of the Supreme sovereign Spirit.
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