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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 59/ मन्त्र 8
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    इन्द्रा॑ग्नी॒ तप॑न्ति मा॒घा अ॒र्यो अरा॑तयः। अप॒ द्वेषां॒स्या कृ॑तं युयु॒तं सूर्या॒दधि॑ ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । तप॑न्ति । मा॒ । अ॒घाः । अ॒र्यः । अरा॑तयः । अप॑ । द्वेषां॑सि । आ । कृ॒त॒म् । यु॒यु॒तम् । सूर्या॑त् । अधि॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राग्नी तपन्ति माघा अर्यो अरातयः। अप द्वेषांस्या कृतं युयुतं सूर्यादधि ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राग्नी इति। तपन्ति। मा। अघाः। अर्यः। अरातयः। अप। द्वेषांसि। आ। कृतम्। युयुतम्। सूर्यात्। अधि ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 59; मन्त्र » 8
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वांसः कस्मात्कस्माद्विद्युतं सङ्गृह्णीयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे सभासेनेशौ ! येऽरातय इन्द्राग्नी तपन्ति तेषां द्वेषांस्यपकृतं सूर्यादधि विद्युतमा युयुतम्। हे राजन्नर्यस्त्वमेताञ्छिल्पिनो माऽघाः ॥८॥

    पदार्थः

    (इन्द्राग्नी) वायुविद्युतौ (तपन्ति) (मा) (अघाः) हिंस्याः (अर्यः) स्वामी सन् (अरातयः) शत्रवः (अप) (द्वेषांसि) द्वेषयुक्तानि कर्माणि (आ) (कृतम्) कुर्य्यातम् (युयुतम्) विभाजयतम् (सूर्यात्) सवितृमण्डलात् (अधि) उपरिभावे ॥८॥

    भावार्थः

    हे सराजका राजप्रजाजना यदि भवन्तः सूर्य्यादिभ्यो विद्युतं ग्रहीतुं विजानीयुस्तर्हि शत्रून् विजित्य द्वेष्टॄन् दूरीकर्तुं प्रभवेयुः ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् जन किस-किस से बिजुली का स­ह करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे सभा सेनाधीशो ! जो (अरातयः) शत्रुजन (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली को (तपन्ति) तपाते हैं उनके (द्वेषांसि) द्वेषयुक्त कामों को (अप, कृतम्) नष्ट करो और (सूर्यात्) सवितृमण्डल से (अधि) ऊपर जानेवाली बिजुली को (आ, युयुतम्) अलग करो। हे राजन् ! (अर्यः) स्वामी आप इन शिल्पीजनों को (मा, अघाः) मत मारो ॥८॥

    भावार्थ

    हे राजसहित राजप्रजा जनो ! जो आप लोग सूर्यादिकों से बिजुली ग्रहण करना जानो तो शत्रुजनों को जीतकर द्वेषी जनों के दूर करने को समर्थ होओ ॥८॥

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    विषय

    तेजस्वी स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्राग्नी ) सूर्य अग्निवत् तेजस्वी स्त्री पुरुषो ! ( अर्य: ) आगे आने वाली ( अघाः ) पापयुक्त हिंसक ( अरातयः ) शत्रु सेनाएं ( मा तपन्ति) मुझे सन्ताप देती हैं। आप लोग (द्वेषांसि ) द्वेष करने वालों को (अप आ कृतं ) दूर करो और (सूर्यात् अघि ) सूर्य के प्रकाशमय जीवन से उनको ( युयुतम् ) वियुक्त करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः – १, ३, ४, ५ निचृद् बृहती । २ विराड्बृहती । ६, ७, ९ भुरिगनुष्टुप् । १० अनुष्टुप् । ८ उष्णिक् ।। दशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    द्वेष से दूर

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्राग्नी) = बल व प्रकाश के तत्त्वो ! (अघा:) = [आहनतव्यः] चोट करनेवाली (अर्यः) = हमारे पर आक्रमण करनेवाली (अरातयः) = काम-क्रोध-लोभ आदि शत्रुओं की सेनाएँ (मा तपन्ति) = मुझे पीड़ित करती हैं। आप इन्हें (अपाकृतम्) = मेरे से दूर करिये। ज्ञान व बल की आराधना मुझे इन शत्रुओं के आक्रमण से बचाये। [२] हे (इन्द्राग्नी) = आप (द्वेषांसि) = द्वेष की भावनाओं को हमारे से दूर करो। वस्तुत: इन ईर्ष्या-द्वेष आदि की भावनाओं को तो (सूर्याद् अधि) = सूर्य दर्शन से भी (अप युयुतम्) = पृथक् कर दीजिये। सूर्य का जहाँ भी प्रकाश पहुँचता है, वहाँ द्वेष आदि का निवास न होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- बल व प्रकाश का आराधन मुझे शत्रुओं के आक्रमण से बचाये। इनका आराधन मुझे द्वेष से दूर करे ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा व प्रजाजनहो ! जर तुम्ही सूर्यापासून विद्युत ग्रहण करणे जाणले तर शत्रूंना जिंकून द्वेष करणाऱ्यांना दूर करण्यास समर्थ व्हाल. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra and Agni, lords of existence, enmities and sinful negativities of life heat up and consume me. Throw off all hate and enmities and keep them away from the light of the sun.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    From which things should the scientists derive electricity-is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O President of the Council of Ministers and Commander-in-Chief of the army! drive away the malicious acts of those foes, who abuse or use for evil designs the air and electricity and you derive electricity from the sun. O king! being the lord, do not kill or give trouble to these artists or artisans, who do such useful acts.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O kings and their subjects! if you know how to take electricity from the sun and other objects, you can conquer your enemies and drive away all malicious persons.

    Translator's Notes

    Not understanding the scientific truth enunciated in the mantra both Prof. Wilson and Griffith have given a very wrong translation saying “murdering aggressive enemies harass us, drive away mine adversaries; separate them from (sight of ) the sun” (Prof. Wilson ) “The foeman's sinful enmities vex me sore. Drive those, who hate me far away, and keep them distant from the sun” (Griffith). How misleading and erroneous are such translations !

    Foot Notes

    (अघाः) हिस्याः । = Kill or give trouble. (अर्य्य:) स्वामी सन् । अर्य इतीश्वरनाम (NG 2, 22)। = Lord, master.

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