ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 59/ मन्त्र 7
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
इन्द्रा॑ग्नी॒ आ हि त॑न्व॒ते नरो॒ धन्वा॑नि बा॒ह्वोः। मा नो॑ अ॒स्मिन्म॑हाध॒ने परा॑ वर्क्तं॒ गवि॑ष्टिषु ॥७॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । आ । हि । त॒न्व॒ते । नरः॑ । धन्वा॑नि । बा॒ह्वोः । मा । नः॒ । अ॒स्मिन् । म॒हाऽध॒ने । परा॑ । व॒र्क्त॒म् । गोऽइ॑ष्टिषु ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्राग्नी आ हि तन्वते नरो धन्वानि बाह्वोः। मा नो अस्मिन्महाधने परा वर्क्तं गविष्टिषु ॥७॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्राग्नी इति। आ। हि। तन्वते। नरः। धन्वानि। बाह्वोः। मा। नः। अस्मिन्। महाऽधने। परा। वर्क्तम्। गोऽइष्टिषु ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 59; मन्त्र » 7
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
के विजयिनो भवेयुरित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! ये नर इन्द्राग्नी आ तन्वते बाह्वोर्हि धन्वानि धृत्वाऽस्मिन् महाधनेऽस्माँस्तन्वते गविष्टिषु प्रवीणाः सन्तो यथेन्द्राग्नी नो मा परा वर्क्तं तथा विदधति तान् वयं सङ्गच्छेमहि ॥७॥
पदार्थः
(इन्द्राग्नी) वायुविद्युतौ (आ) (हि) खलु (तन्वते) विस्तृणन्ति (नरः) नायकाः (धन्वानि) धनूंषि (बाह्वोः) भुजयोर्मध्ये (मा) (नः) अस्मान् (अस्मिन्) (महाधने) सङ्ग्रामे (परा) (वर्क्तम्) त्यजेताम् (गविष्टिषु) गवां किरणानामिष्टयः सङ्गतयो यासु क्रियासु तासु ॥७॥
भावार्थः
ये राजप्रजाजना विद्युदादिनाऽऽग्नेयादीन्यस्त्राणि निर्माय सङ्ग्रामस्य विजेतारो जायन्ते तेऽस्मिन् संसारे राज्यैश्वर्येण सुखं विस्तारयितुं शक्नुवन्ति ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
कौन विजयी होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (नरः) नायक मनुष्य (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली को (आ, तन्वते) विस्तारते हैं और (बाह्वोः) भुजाओं में (हि) हि (धन्वानि) धनुषों को धारण कर (अस्मिन्) इस (महाधने) सङ्ग्राम में हम सब को विस्तारते हैं और (गविष्टिषु) किरणों की जिनमें मिलावटें हैं, उन क्रियाओं में प्रवीण होते हुए जैसे वायु और बिजुली (नः) हम लोगों को (मा, परा, वर्क्तम्) मत छोड़ें वैसा करते हैं, उनको हम लोग मिलें ॥७॥
भावार्थ
जो राजा प्रजाजन बिजुली आदि से आग्नेयादि अस्त्रों को बनाय संग्राम के जीतनेवाले होते हैं, वे इस संसार में राज्यैश्वर्य्य से सुख बढ़ा सकते हैं ॥७॥
विषय
पक्षान्तर में विद्युत् का वर्णन ।
भावार्थ
हे ( इन्द्राग्नी ) विद्युत्-अग्निवत् तेजस्वी स्त्री पुरुषो ! ( अस्मिन् महाधने ) इस संग्राम में भी ( गविष्टिषु ) भूमियों को विजय करने के अवसरों में ( नः मा परा वर्क्तम् ) हम अन्य नगरवासियों को छोड़कर मत भागना। क्योंकि उस समय तो ( नरः ) मनुष्य लोग ( बाह्वो: ) बाहुओं में ( धन्वानि ) धनुषों को लेकर (आ तन्वते ) युद्ध किया करते हैं। गृहस्थ में प्रवेश करने वाले स्त्री-पुरुषों को नागरिकों के कर्त्तव्य का उपदेश है कि संग्राम के अवसर पर नगर को संकट में छोड़कर न भाग जावें, प्रत्युत वे भी वीरों के समान शस्त्रास्त्र हाथ में लेकर युद्ध करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः – १, ३, ४, ५ निचृद् बृहती । २ विराड्बृहती । ६, ७, ९ भुरिगनुष्टुप् । १० अनुष्टुप् । ८ उष्णिक् ।। दशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
महाधने, गविष्टिषु
पदार्थ
[१] हे (इन्द्राग्नी) = बल व प्रकाश के तत्त्वो ! (नरः) = उन्नतिपथ पर चलनेवाले मनुष्य (बाह्वोः) = अपनी भुजाओं में धन्वानि धनुषों को (हि) = निश्चय से (आतन्वते) = विस्तृत करते हैं । अर्थात् इस जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करने के लिये तथा वासना आदि शत्रुओं को विनष्ट करने के लिये, प्रणव [ओ३म्] रूप धनुष को धारण करते हैं। प्रभु-स्मरण ही प्रणवरूप धनुष का धारण है । [२] हे इन्द्राग्नी ! आप (नः) = हमें (अस्मिन्) = इस (महाधने) = महनीय धन को प्राप्त करानेवाले संग्राम में तथा (गविष्टिषु) = इन ज्ञान की वाणियों को प्राप्त करने के निमित्त इन वाणियों के अन्वेषण में (मा परावर्त्तम्) = मत छोड़ दो। जब हमारे जीवन का ध्येय बल व प्रकाश को प्राप्त करना बना रहता है तो हम वासनाओं का शिकार नहीं होते तथा ज्ञान की वाणियों को अधिकाधिक प्राप्त करनेवाले होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- बल व प्रकाश को प्राप्त करना ही हमारे जीवन का ध्येय हो। ऐसा होने पर हम सदा प्रभु स्मरण में प्रवृत्त होंगे। वासनाओं के आक्रमण से बचे रहेंगे तथा स्वाध्याय प्रवृत्त होंगे।
मराठी (1)
भावार्थ
जो राजा व प्रजा विद्युत इत्यादींनी आग्नेय अस्त्रे वगैरे तयार करून युद्ध जिंकतात ते या जगात राज्याचे ऐश्वर्य प्राप्त करून सुखाची वृद्धी करू शकतात. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra and Agni, cosmic energy and heat of life, leaders and best of humanity, stretch their bows between their arms. In this great battle business of life, pray do not forsake us in the heat of action in which light and fire must be integrated as life and inspiration.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Who can become victorious-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! let us associate with those leaders, who extend the application of the air and electricity, who having arrows etc. in their arms protect us in this battle and who being experts in all activities, where the rays of the sun are united, Arrange things in such a manner that the air and electricity may not harm us.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those kings and people of the State, who manufacture arms with the use of fire and electricity etc. become victorious in battles, can extend happiness in this world, with the help of abundant wealth and kingdom that they possess.
Foot Notes
(महाधने) सङ्ग्रामे । महाधने इति सङ्ग्रामनाम (NG 2, 17)। = In the battle. (गविष्टिषु) गवां किरणानामिष्टयः सङ्गतयो यासु क्रियासु तासु | गाव इति रश्मिनाम (NG 1, 5) यज-देव पूजा सङ्गतिकरणदानेषु (भ्वा०.) अत्र संङ्गतिकरणार्थं | = In the activities or processes where the rays of the sun are united.
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