ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 69/ मन्त्र 2
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्राविष्णू
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
या विश्वा॑सां जनि॒तारा॑ मती॒नामिन्द्रा॒विष्णू॑ क॒लशा॑ सोम॒धाना॑। प्र वां॒ गिरः॑ श॒स्यमा॑ना अवन्तु॒ प्र स्तोमा॑सो गी॒यमा॑नासो अ॒र्कैः ॥२॥
स्वर सहित पद पाठया । विश्वा॑साम् । ज॒नि॒तारा॑ । म॒ती॒नाम् । इन्द्रा॒विष्णू॒ इति॑ । क॒लशा॑ । सो॒म॒ऽधाना॑ । प्र । वा॒म् । गिरः॑ । श॒स्यमा॑नाः । अ॒व॒न्तु॒ । प्र । स्तोमा॑सः । गी॒यमा॑नासः । अ॒र्कैः ॥
स्वर रहित मन्त्र
या विश्वासां जनितारा मतीनामिन्द्राविष्णू कलशा सोमधाना। प्र वां गिरः शस्यमाना अवन्तु प्र स्तोमासो गीयमानासो अर्कैः ॥२॥
स्वर रहित पद पाठया। विश्वासाम्। जनितारा। मतीनाम्। इन्द्राविष्णू इति। कलशा। सोमऽधाना। प्र। वाम्। गिरः। शस्यमानाः। अवन्तु। प्र। स्तोमासः। गीयमानासः। अर्कैः ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 69; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तौ कीदृशौ किं कुर्यातामित्याह ॥
अन्वयः
हे राजशिल्पिनौ ! या यौ विश्वासां मतीनां जनितारा सोमधाना कलशेव वर्त्तमानाविन्द्राविष्णू ययोर्वामर्कैः शस्यमाना गिरो गीयमानासः स्तोमासः सर्वान् प्रावन्तु तान् भवन्तः प्रावन्तु ॥२॥
पदार्थः
(या) यौ (विश्वासाम्) सर्वासाम् (जनितारा) उत्पादकौ (मतीनाम्) प्रज्ञानाम् (इन्द्राविष्णू) सूर्य्यविद्युतौ (कलशा) कुम्भाविव (सोमधाना) सोमं दधति ययोस्तौ (प्र) (वाम्) (गिरः) वाचः (शस्यमानाः) स्तूयमानाः (अवन्तु) रक्षन्तु (प्र) (स्तोमासः) ये स्तूयन्ते (गीयमानासः) सुगीताः (अर्कैः) मन्त्रैः सत्कारैर्वा ॥२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यौ वायुविद्युतौ प्रजाजनकौ सर्वविद्याधारौ वर्तेते तयोः सम्प्रयोगेण विद्याशिक्षावाचः संरक्षन्तु ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे दोनों कैसे हैं और क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजा और शिल्पीजनो ! (या) जो (विश्वासाम्) समस्त (मतीनाम्) बुद्धियों के (जनितारा) उत्पन्न करनेवाले (सोमधाना) जिनके बीच सोम धरते हैं, वे (कलशा) घट के समान वर्त्तमान (इन्द्राविष्णू) सूर्य और बिजुली जिन (वाम्) तुम दोनों में (अर्कैः) मन्त्र वा सत्कारों से (शस्यमानाः) प्रशंसा को प्राप्त होती हुई (गिरः) वाणी (गीयमानासः) सुन्दरता से गाई हुई तथा (स्तोमासः) जो स्तुति किये जाते हैं, वे सब की (प्र, अवन्तु) अच्छे प्रकार पालें, उन सबों की तुम लोग (प्र) अच्छे प्रकार रक्षा करो ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! जो वायु और बिजुली बुद्धि बढ़ाने और सब विद्याओं के धारण करनेवाले वर्त्तमान हैं, उनके अच्छे प्रकार प्रयोग से अर्थात् कार्यों में लाने से विद्या, शिक्षा तथा वाणियों की अच्छे प्रकार रक्षा करो ॥२॥
विषय
सूर्य विद्युत्वत् स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( इन्द्राविष्णु ) ऐश्वर्यवान् और व्यापक सामर्थ्य से युक्त, राजा और प्रजावत् सूर्य विद्युत्वत् वर्त्तमान स्त्री पुरुषो ! आप दोनों (सोमधाना ) अन्न, ऐश्वर्य को धारण करने वाले ( कलशा ) दो कलसों के समान अक्षयनिधि वा बलवीर्य को धारण करने वाले होकर भी (विश्वासां) समस्त ( मतीनां ) उत्तम मनन योग्य बुद्धियों, ज्ञान की वाणियों को ( जनितारा ) प्रकट करने वाले होओ । ( अर्कैः ) अर्चना, स्तुति वा आदर सत्कार करने योग्य वेदमन्त्रों और सूर्यवत् तेजस्वी, विद्वान् पुरुषों से ( गीयमानासः ) गाये गये ( स्तोमासः ) स्तुति वचन, और वेद के सूक्त, तथा ( शस्यमानाः ) उपदेश की गईं ( गिरः ) वाणियां ( वां प्र अवन्तु ) आप दोनों को अच्छी प्रकार प्राप्त हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्राविष्णू देवते ।। छन्दः – १, ३, ६, ७ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ४, ८ त्रिष्टुप् । ५ ब्राह्म्युणिक् ।। अष्टर्चं सूक्तम् ।।
विषय
मतीनां जनितारा
पदार्थ
[१] (या) = जो (इन्द्राविष्णू) = इन्द्र और विष्णु, शक्ति व उदारता के देव, (विश्वासां मतीनाम्) = सब उत्तम बुद्धियों के (जनितारा) = जन्म देनेवाले हैं, वे सोमधाना (कलशा) = सोम के रक्षण के आधारभूत कलश [=घड़े] ही हैं। इन इन्द्र और विष्णु के द्वारा सोम का शरीर में ही रक्षण होता है। [२] (वाम्) = आपको (शस्यमानाः) = उच्चारण की जाती हुई (गिरः) = ज्ञान की वाणियाँ (प्र अवन्तु) = प्रकर्षेण प्राप्त हों । (अर्कैः) = स्तोताओं से (गीयमानासः) = गाये जाते हुए (स्तोमासः) = स्तुति समूह (प्र) [अवन्तु] = प्राप्त हों। अर्थात् इन्द्र और विष्णु का उपासक ज्ञान की वाणियों को प्राप्त करनेवाला हो और स्तुति की वृत्तिवाला बने ।
भावार्थ
भावार्थ–'शक्ति और उदारता' की उपासना [क] हमारी बुद्धियों को विकसित करती है, [ख] यह शरीर में सोमरक्षण का साधन बनती है, [ग] ज्ञान को बढ़ाती है, [घ] स्तुति की वृत्ति को उत्पन्न करती है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! जे वायू व विद्युत बुद्धी वाढविणारे व सर्व विद्या धारण करणारे असतात त्यांचा उत्तम प्रकारे प्रयोग करून विद्या, शिक्षण व वाणीचे चांगल्या प्रकारे रक्षण करा. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra and Vishnu, you are creators and producers of all things of the world. You are inspirers of the mind and intelligence of all people. You are the treasure caskets of wealth, honour and joyous excellence of the world. May our voices of invocation and invitation and our songs of adoration full of appreciation, praise and homage reach you with our reverence and holy presentations.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What are they and what they do is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O kings and artists! who are producers of all intellects, which are like the vessels in which Soma juice is put, speech praised by your mantras or honors and well-chanted songs, the sun and electricity convey to you many good things, protect them well. "
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O highly learned persons! those air and electricity, which are increasers of intellect (when we think over their proper use for various purposes) and bases of all knowledge, protect the speeches full of knowledge and good education by their due application.
Foot Notes
(इन्द्रविष्णू) सूर्यविद्युतौ । विष्लु-व्याप्तौ । तस्माद् व्याप्ता विद्युदपि विष्णुषदवाच्या। = The sun and electricity. (इन्द्राविष्णू) बाबु-विद्युतौ । = The air and the sun. (अर्कैः) मन्त्रैः सत्कारैवा । अर्को मन्त्रो भवति । यदनेनार्चन्ति (NKT 5, 1, 4) अर्च-पूजायाम् (भ्वा०.) तस्मादर्क: सरकार: । = Mantras or honors.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal