ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 69/ मन्त्र 3
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्राविष्णू
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
इन्द्रा॑विष्णू मदपती मदाना॒मा सोमं॑ यातं॒ द्रवि॑णो॒ दधा॑ना। सं वा॑मञ्जन्त्व॒क्तुभि॑र्मती॒नां सं स्तोमा॑सः श॒स्यमा॑नास उ॒क्थैः ॥३॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रा॑विष्णू॒ इति॑ । म॒द॒प॒ती॒ इति॑ मदऽपती । म॒दा॒ना॒म् । आ । सोम॑म् । या॒त॒म् । द्रवि॑णो॒ इति॑ । दधा॑ना । सम् । वा॒म् । अ॒ञ्ज॒न्तु॒ । अ॒क्तुऽभिः॑ । म॒ती॒नाम् । सम् । स्तोमा॑सः । श॒स्यमा॑नासः । उ॒क्थैः ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्राविष्णू मदपती मदानामा सोमं यातं द्रविणो दधाना। सं वामञ्जन्त्वक्तुभिर्मतीनां सं स्तोमासः शस्यमानास उक्थैः ॥३॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्राविष्णू इति। मदपती इति मदऽपती। मदानाम्। आ। सोमम्। यातम्। द्रविणो इति। दधाना। सम्। वाम्। अञ्जन्तु। अक्तुऽभिः। मतीनाम्। सम्। स्तोमासः। शस्यमानासः। उक्थैः ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 69; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्राविष्णू मदानां मदपती द्रविणो दधाना ! युवां सोममा यातं वां मतीनामक्तुभिरुक्थैश्शस्यमानासः स्तोमासो वां समञ्जन्तु येन प्रीत्या युवामस्मान् समायातम् ॥३॥
पदार्थः
(इन्द्राविष्णू) वायुविद्युताविव सभासेनेशौ (मदपती) आनन्दस्य पालकौ (मदानाम्) आनन्दानाम् (आ) (सोमम्) ऐश्वर्यम् (यातम्) गच्छतम् (द्रविणो) धनं यशो वा (दधाना) धरन्तौ (सम्) (वाम्) युवाम् (अञ्जन्तु) प्रकटीकुर्वन्तु (अक्तुभिः) रात्रिभिः (मतीनाम्) मनुष्याणाम् (सम्) (स्तोमासः) स्तुतयः (शस्यमानासः) प्रशंसिताः (उक्थैः) वेदस्थैः स्तोत्रैः ॥३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यौ वायुविद्युद्वत्सर्वेषामानन्दस्य वर्धकौ मनुष्यैः स्तूयमानौ विद्यां च प्रयच्छन्तौ प्रयतेते तावेव राजकर्माऽर्हतः ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्राविष्णू) वायु और बिजुली के समान सभासेनापतियो ! (मदानाम्) आनन्दों के बीच (मदपती) आनन्द के पालने और (द्रविणो) धन वा यश के (दधाना) धारण करनेवालो ! तुम दोनों (सोमम्) ऐश्वर्य्य को (आ, यातम्) प्राप्त होओ (वाम्) तुम दोनों को (मतीनाम्) मनुष्यों के बीच (अक्तुभिः) रात्रियों से और (उक्थैः) वेदस्थ स्तोत्रों से (शस्यमानासः) प्रशंसायुक्त किई जाती (स्तोमासः) स्तुतियाँ (सम, अञ्जन्तु) अच्छे प्रकार प्रकट करें, जिससे प्रीति के साथ तुम दोनों हम लोगों को (सम्) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो वायु और बिजुली के समान सब के आनन्द के बढ़ानेवाले, मनुष्यों से प्रशस्त किये जाते और विद्या वा धन को अच्छे प्रकार देते हुए प्रयत्न करते हैं, वे ही राजकर्म के योग्य होते हैं ॥३॥
विषय
सभापति सेनापति के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे (इन्द्राविष्णू ) ऐश्वर्यवन् शत्रुहन्तः और व्यापक सामर्थ्यवन् ! सभा, सभापते, सेना, सेनापते ! वा राजन् ! प्रभो ! आप दोनों ( दविणः दधाना ) नाना धनों को धारण करते हुए ( सोमं आ यातम्) ऐश्वर्य वा सोम्य स्वभाव प्रजाजन को पुत्र वा शिष्यवत् प्राप्त होओ, आप दोनों ( मदानां मदपती ) सब प्रकार के सुखों को प्राप्त कर उनको पालन करने वाले होओ। (मतीनां ) मननशील विद्वान् पुरुषों के ( शस्यमानासः ) उपदेश किये गये ( स्तोमासः ) स्तुतियोग्य उपदेश, ( उक्थैः ) उत्तम वचनों, वा प्रशंसनीय ( अक्तुभिः ) चमका देने वाले गुणों से सब दिनों ( वां सं सं अञ्जन्तु ) आप दोनों को अच्छी प्रकार प्रकाशित, सुभूषित करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्राविष्णू देवते ।। छन्दः – १, ३, ६, ७ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ४, ८ त्रिष्टुप् । ५ ब्राह्म्युणिक् ।। अष्टर्चं सूक्तम् ।।
विषय
मदपती मदानाम् [इन्द्राविष्णू]
पदार्थ
[१] (इन्द्राविष्णू) = इन्द्र और (विष्णु) = शक्ति व उदारता के भाव, (मदानां मदपती) = उल्लास के जनक सोमकणों के सर्वोत्तम रक्षक हैं। ये इन्द्र और विष्णु (सोमं आयातम्) = सोम को आभिमुख्येन प्राप्त हों, अर्थात् सोम का हमारे अन्दर रक्षण करें। (उ) = और (द्रविणा दधाना =) सब ऐश्वर्यों का हमारे अन्दर धारण करें। सुरक्षित सोम ही सब ऐश्वर्यों का साधन बनता है। [२] उपासक लोग (मतीनां अक्तुभिः) = बुद्धियों के प्रकाश के हेतु से (वाम्) = आप दोनों को (सं अञ्जन्तु) = सम्यक् प्राप्त हों [अञ्ज् गतौ] । इन्द्र और विष्णु की उपासना बुद्धियों को विकसित करती ही है। (उक्थैः) = स्तोत्रों के साथ (शस्यमानासः) = उच्चारण की जाती हुईं (स्तोमासः) = स्तुतियाँ सं [अञ्जन्तु] = आपको प्राप्त हों। अर्थात् आपका उपासक स्तुति की वृत्तिवाला बने।
भावार्थ
भावार्थ– शक्ति व उदारता की उपासना [क] उल्लास को पैदा करती है, [ख] सोम का रक्षण करती है, [ग] ऐश्वर्यों को प्राप्त कराती है, [घ] हमें ज्ञान की रुचिवाला बनाती है, [ङ] स्तुति की ओर झुकाती है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे वायू व विद्युतप्रमाणे सर्वांचा आनंद वाढविणारे, माणसांकडून स्तुती केले जाणारे असतात व विद्या आणि धन चांगल्या प्रकारे देण्याचा प्रयत्न करतात तेच राजकर्म करण्यायोग्य असतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra and Vishnu, ruler of power and sustainer of life, you are creators and protectors of the joy of life. Come and join the joyous celebrants over a drink of life’s soma of excellence and ecstasy, and bring the wealth and honour of human values for us. And may the songs of our leading intelligent people full of homage and service exalt you by day and by night with a chant of Vedic mantras.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How are they (king and artists) - is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O President of the Council and Commander-in-Chief of the army! you who are like the air and electricity, and protectors of joy, upholding wealth or good reputation come to preserve wealth or prosperity. Let the admirable praises of wisemen particularly sung at night with Vedic Hymns manifest you, so that you come to us with love.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons only deserve to administer the State, who like the air and electricity, being increasers of the joy of all, when praised by men, give knowledge and wealth.
Foot Notes
(इन्द्राविष्णू) वायुविद्य ताविवं सभासेनेशौ | = President of the council and commander-in-chief of the army. (अजन्तु) प्रकटीकुर्वन्तुं । अज्जू-व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु ( रुधा०.)। = May manifest. (अक्तुभिः) रात्रिभिः । अक्तुरिति रात्रिनाम (NG 1, 7) = With nights.
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