ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 31/ मन्त्र 4
व॒यमि॑न्द्र त्वा॒यवो॒ऽभि प्र णो॑नुमो वृषन्। वि॒द्धि त्व१॒॑स्य नो॑ वसो ॥४॥
स्वर सहित पद पाठव॒यम् । इ॒न्द्र॒ । त्वा॒ऽयवः॑ । अ॒भि । प्र । नो॒नु॒मः॒ । वृ॒ष॒न् । वि॒द्धि । तु । अ॒स्य । नः॒ । व॒सो॒ इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वयमिन्द्र त्वायवोऽभि प्र णोनुमो वृषन्। विद्धि त्व१स्य नो वसो ॥४॥
स्वर रहित पद पाठवयम्। इन्द्र। त्वाऽयवः। अभि। प्र। नोनुमः। वृषन्। विद्धि। तु। अस्य। नः। वसो इति ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 31; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजप्रजाजनाः परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥
अन्वयः
हे वसो वृषन्निन्द्र ! त्वायवो वयं त्वामभि प्र णोनुमस्त्वं नस्त्वस्य राज्यस्य रक्षितॄन् विद्धि ॥४॥
पदार्थः
(वयम्) (इन्द्र) विद्यैश्वर्ययुक्त राजन्नध्यापक वा (त्वायवः) त्वां कामयमानः (अभि) (प्र) (नोनुमः) भृशन्नमेम (वृषन्) बलवन् बलप्रद (विद्धि) विजानीहि (तु) (अस्य) (नः) अस्मान् (वसो) वासयितः ॥४॥
भावार्थः
यथा धार्मिक्यः प्रजा धार्मिकं राजानं कामयन्ते नमस्यन्ति तथैव राजैता धार्मिकीः प्रजाः कामयेत सततं नमस्येत् ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा और प्रजाजन परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वसो) वसाने (वृषन्) बल रखने और बल के देनेवाले (इन्द्र) विद्या और ऐश्वर्ययुक्त राजा वा अध्यापक ! (त्वायवः) आपकी कामना करनेवाले (वयम्) हम लोग आपको (अभि, प्र, णोनुमः) सब ओर से अच्छे प्रकार निरन्तर प्रणाम करें आप (नः) हमको (तु) तो (अस्य) इस राज्य के रक्षा करनेवाले (विद्धि) जानो ॥४॥
भावार्थ
जैसे धार्मिक प्रजाजन धार्मिक राजा की कामना करते और उस को नमते हैं, वैसे ही राजा इस धार्मिकी प्रजा की कामना करे और निरन्तर नमे ॥४॥
विषय
वसु, इन्द्र से विनय
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! हे जितेन्द्रिय ! हे ( वृषन् ) बलवन् ! सुखों के देने वाले ! हे (वसो) बसने और बसाने वाले ! ( वयम् ) हम लोग ( त्वायवः ) तेरी कामना करते हुए, तुझे चाहते हुए ( अभि प्र नोनुमः ) खूब स्तुति और आदर विनय करते हैं ( अस्य तु नः विद्धि), तू हमारी इस अभिलाषा को जान ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता । छन्दः – १ विराड् गायत्री । २,८ गायत्री । ६, ७, ९ निचृद्गायत्री । ३, ४, ५ आर्च्युष्णिक् । १०, ११ भुरिगनुष्टुप् । १२ अनुष्टुप् ।। द्वादशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
राजा से विनय
पदार्थ
पदार्थ- हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन्! हे (वृषन्) = बलवन् ! सुखदातः ! हे (वसो) = बसने बसानेवाले! (वयम्) = हम (त्वायवः) = तुझे चाहते हुए, (अभि प्र नोनुमः) = खूब स्तुति करते हैं (अस्य तु नः विद्धि) = तू हमारी इस अभिलाषा को जान ।
भावार्थ
भावार्थ- राजा को चाहनेवाली सुप्रजा अपनी रक्षा, उन्नति और राष्ट्र की समृद्धि के लिए राजा से विनय करे। राजा को भी पितृवत् प्रजा की प्रार्थना को सुनना, स्वीकारना चाहिए ।
मराठी (1)
भावार्थ
जसे धार्मिक प्रजाजन धार्मिक राजाची इच्छा बाळगतात व त्याला नमन करतात तसेच राजाने या धार्मिक प्रजेची कामना बाळगावी व निरंतर नमन करावे. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, generous and valorous lord ruler, giver of settlement, peace and progress, we are your admirers, and we stand for you. O lord, know this of us, for us and for the nation.
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