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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 33 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 33/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वसिष्ठपुत्राः देवता - त एव छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सूर्य॑स्येव व॒क्षथो॒ ज्योति॑रेषां समु॒द्रस्ये॑व महि॒मा ग॑भी॒रः। वात॑स्येव प्रज॒वो नान्येन॒ स्तोमो॑ वसिष्ठा॒ अन्वे॑तवे वः ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सूर्य॑स्यऽइव । व॒क्षथः॑ । ज्योतिः॑ । ए॒षा॒म् । स॒मु॒द्रस्य॑ऽइव । म॒हि॒मा । ग॒भी॒रः । वात॑स्यऽइव । प्र॒ऽज॒वः । न । अ॒न्येन॑ । स्तोमः॑ । व॒सि॒ष्ठाः॒ । अनु॑ऽएतवे । वः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूर्यस्येव वक्षथो ज्योतिरेषां समुद्रस्येव महिमा गभीरः। वातस्येव प्रजवो नान्येन स्तोमो वसिष्ठा अन्वेतवे वः ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूर्यस्यऽइव। वक्षथः। ज्योतिः। एषाम्। समुद्रस्यऽइव। महिमा। गभीरः। वातस्यऽइव। प्रऽजवः। न। अन्येन। स्तोमः। वसिष्ठाः। अनुऽएतवे। वः ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 33; मन्त्र » 8
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वांसः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे वसिष्ठा ! योऽन्वेतवे आप्ता विद्वांस एषां वोऽन्वेतवे सूर्यस्येव वक्षथो ज्योतिः समुद्रस्येव महिमा गभीरो वातस्येव प्रजवः स्तोमोऽस्ति सोऽन्येन तुल्यो नास्ति ॥८॥

    पदार्थः

    (सूर्यस्येव) (वक्षथः) रोषः (ज्योतिः) प्रकाशः (एषाम्) विद्युदादीनाम् (समुद्रस्येव) (महिमा) महतो भावः (गभीरः) अगाधः (वातस्येव) (प्रजवः) प्रकृष्टो वेगः (न) (अन्येन) तुल्यः (स्तोमः) प्रशंसा (वसिष्ठाः) अतिशयेन विद्यावासाः (अन्वेतवे) अन्वेतुं विज्ञातुं प्राप्तुं गन्तुं वा (वः) युष्माकम् ॥८॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! येषां धार्मिकाणां विदुषां सूर्यवद्विद्याधर्मप्रकाशो दुष्टाचारे क्रोधः समुद्रवद्गाम्भीर्यं वायुवत्सत्कर्मसु वेगो भवेत्त एव सङ्गन्तुमर्हाः सन्तीति वेद्यम् ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (वसिष्ठाः) अतीव विद्या में वास करनेवालो ! जो (अन्वेतवे) विशेष जानने को, प्राप्त होने को वा गमन को आप्त अत्यन्त धर्मशील विद्वान् हैं (एषाम्) इन बिजुली आदि पदार्थों के और (वः) तुम्हारे विशेष जानने को प्राप्त होने को वा गमन के (सूर्यस्येव) सूर्य के समान (वक्षथः) रोष वा (ज्योतिः) प्रकाश (समुद्रस्येव) समुद्र के समान (महिमा) महिमा (गभीरः) गम्भीर (वातस्येव) पवन के समान (प्रजवः) उत्तम वेग और (स्तोमः) प्रशंसा है वह (अन्येन) और के समान (न) नहीं है ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जिन धार्मिक विद्वानों का सूर्य के समान विद्या और धर्म का प्रकाश, दुष्टाचार पर क्रोध, समुद्र के समान गम्भीरता, पवन के समान अच्छे कर्मों में वेग हो वे मिलने योग्य हैं, यह जानना चाहिये ॥८॥

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    विषय

    वे ही सद्-गृहस्थ हों ।

    भावार्थ

    हे ( वसिष्ठा: ) विद्वान् ब्रह्मचारी लोगो ! हे राष्ट्र में बसे जनों में श्रेष्ठ जनो ! ( एषां ) इन (वः ) आप लोगों का ( वक्षथः ) रोष, तेज और वचनोपदेश, ( सूर्यस्य ज्योतिः इव ) सूर्य के तेज के समान असह्य और यथार्थ तत्व का प्रकाशक हो । ( महिमा ) महान सामर्थ्य ( समुद्रस्य इव गभीरः ) समुद्र के समान गंभीर हो । (प्र-जव:) उत्तम वेग भी ( वातस्य इव ) वायु के समान अदम्य हो और ( वः ) आप लोगों का ( स्तोमः ) बलवीर्य, अधिकार तथा उत्तम स्तुत्य चरित भी ऐसा हो जो ( अन्येन) दूसरे असमर्थ निर्बल पुरुष से (अन्वेतवे न) अनुकरण न किया जा सके, वह भी सर्वोत्तम हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    संस्तवो वसिष्ठस्य सपुत्रस्येन्द्रेण वा संवादः ॥ १ – ९ वसिष्ठपुत्राः । १०-१४ वसिष्ठ ऋषिः ।। त एव देवताः ।। छन्दः–१, २, ६, १२, १३ त्रिष्टुप् । ३, ४, ५, ७, ९, १४ निचृत् त्रिष्टुप् । १० भुरिक् पंक्तिः ॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    विद्वान् समुद्र के समान गम्भीर हों

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (वसिष्ठाः) = ब्रह्मचारी लोगो! हे राष्ट्रवासी जनों में श्रेष्ठ जनो! (एषां) = इन (वः) = आप लोगों का (वक्षथः) = तेज और वचन (सूर्यस्य ज्योतिः इव) = सूर्य-तेज के समान असह्य और यथार्थ का प्रकाशक हो। (महिमा) = महान् सामर्थ्य (समुद्रस्य इव गभीरः) = समुद्र-समान गम्भीर हो । (प्रजवः) = उत्तम वेग (वातस्य इव) = वायु के समान अदम्य हो और (वः) = आप लोगों का (स्तोमः) = बलवीर्य, चरित ऐसा हो जो (अन्येन) = दूसरे असमर्थ पुरुष से (अन्वेतये न) = अनुकरण न किया जा सके।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र में विविध विद्याओं में निष्णात विद्वानों को सूर्य के समान तेजस्वी होना चाहिए। जैसे सूर्य की ओर कोई आँख नहीं उठा सकता, उसी प्रकार विद्वान् की ओर कोई अंगुली न उठा सके। उन विद्वानों को समुद्र के समान गम्भीर होना चाहिए। वे राष्ट्र की समस्याओं तथा वे उन्नति की योजनाओं पर गहनता के साथ चिन्तन करनेवाले होवें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! ज्या धार्मिक विद्वानाचा सूर्याप्रमाणे विद्या व धर्माचा प्रकाश, दुष्टाचाऱ्यावर क्रोध, समुद्राप्रमाणे गंभीरता, वायूप्रमाणे चांगल्या कामात वेग असतो त्यांच्याशीच मेळ घालणे योग्य आहे हे जाणावे. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Let the rise of these leading lights be like the splendour of the sun, their grandeur as profound as the depth of the sea, their drive like the wind, and let their organisation and its magnitude be impossible for anyone else to follow or rival.

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