ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 67/ मन्त्र 2
अशो॑च्य॒ग्निः स॑मिधा॒नो अ॒स्मे उपो॑ अदृश्र॒न्तम॑सश्चि॒दन्ता॑: । अचे॑ति के॒तुरु॒षस॑: पु॒रस्ता॑च्छ्रि॒ये दि॒वो दु॑हि॒तुर्जाय॑मानः ॥
स्वर सहित पद पाठअशो॑चि । अ॒ग्निः । स॒म्ऽइ॒धा॒नः । अ॒स्मे इति॑ । उपो॒ इति॑ । अ॒दृ॒श्र॒न् । तम॑सः । चि॒त् । अन्ताः॑ । अचे॑ति । के॒तुः । उ॒षसः॑ । पु॒रस्ता॑त् । श्रि॒ये । दि॒वः । दु॒हि॒तुः । जाय॑मानः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अशोच्यग्निः समिधानो अस्मे उपो अदृश्रन्तमसश्चिदन्ता: । अचेति केतुरुषस: पुरस्ताच्छ्रिये दिवो दुहितुर्जायमानः ॥
स्वर रहित पद पाठअशोचि । अग्निः । सम्ऽइधानः । अस्मे इति । उपो इति । अदृश्रन् । तमसः । चित् । अन्ताः । अचेति । केतुः । उषसः । पुरस्तात् । श्रिये । दिवः । दुहितुः । जायमानः ॥ ७.६७.२
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 67; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथोपदेशस्य समयोऽभिधीयते।
पदार्थः
यस्मिन्काले (पुरस्तात्) पूर्वस्यां दिशि (दिवः) द्युलोकस्य (दुहितुः) कन्यायाः (उषसः) प्रकाशः (श्रिये) शोभायै (जायमानः) उत्पन्नो भवेत्, अन्यच्च (केतुः) सूर्य्यः (अचेति) ज्ञातो भवेत्, अन्यच्च (तमसश्चित्) अन्धकारस्यापि (अन्ताः) नाशो भवेत् अन्यच्च (उपो, अदृश्रन्) उपदृष्टं भवेत्, तदा (समिधानः) समिध्यमानः (अग्निः) पावकः (अशोचि) दीप्यते, तस्मिन्प्रदीप्तेऽग्नौ (अस्मे) अस्माभिः हवनं कार्यमिति शेषः ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उपदेश का समय कथन करते हैं।
पदार्थ
(अस्मे) जब (पुरस्तात्, श्रिये) पूर्वदिशा को आश्रयण किये हुए (दिवः, दुहितुः) द्युलोक से अपनी दुहिता उषा को लेकर (जायमानः) उदय होता हुआ (केतुः) सूर्य्य (अचेति) जान पड़े और (तमसः, चित्, अन्ताः) अन्धकार का भले प्रकार अन्त=नाश (उपो, अदृश्रन्) दीखने लगे, तब (समिधानः, अग्निः, अशोचि) समिधाओं द्वारा अग्नि को प्रदीप्त करो ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे उपदेशको ! अन्धकार के निवृत्त होने पर सूर्योदयकाल में अपने सन्ध्या-अग्निहोत्रादि नित्य कर्म करो और राजा तथा प्रजा को भी इसी काल में उक्त कर्म करने तथा अन्य आवश्यक कर्मों के करने का उपदेश करो, क्योंकि उपदेश का यही अत्युत्तम समय है। इस समय सबकी बुद्धि उपदेश ग्रहण करने के लिए उद्यत होती है ॥२॥
विषय
सूर्य-उषा दृष्टान्त से गुरु-शिष्य के कर्त्तव्य । अध्यात्म में आत्मा और बुद्धि का वर्णन ।
भावार्थ
( समिधानः ) अच्छी प्रकार देदीप्यमान ( अग्निः ) अग्नि, यज्ञाग्नि, ज्ञानाग्नि, और सूर्य, एवं अग्निवत् तेजस्वी ज्ञानी विद्वान् ( अस्मे अशोचि ) हमारे हितार्थ चमकता है । ( तमसः अन्ताः चित् ) अन्धकार अज्ञान के परले सिरे तक ( उपो अदृश्रन् ) स्पष्ट दिखाई देते हैं । ( दिवः दुहितुः उषसः ) देदीप्यमान सूर्य की कन्या के समान उषा से ही ( पुरस्तात् श्रिये ) पूर्व दिशा की शोभा के लिये जिस प्रकार सूर्य उत्पन्न होता है उसी प्रकार ( दिवः दुहितुः ) ज्ञानप्रकाश का दोहन करने वाले, ( उषसः ) पापों और अज्ञान के दग्ध करने वाले मातृवत् गुरु से ( जायमानः ) उत्पन्न होता हुआ शिष्यरूप पुत्र ( पुरस्तात् ) आगे शोभा के लिये ही ( केतुः अचेति) पूर्ण ज्ञानवान् होकर प्रबुद्ध होता है। इसी प्रकार अध्यात्म में—( दिवः दुहितुः ) प्रकाशस्वरूप आत्मा की पुत्री के समान जो ( उषसः ) कान्तिमती विशेष प्रज्ञा है उसकी ( पुरस्तात् श्रिये ) और अधिक शोभा वृद्धि के लिये ( केतुः ) ज्ञानवान् आत्मा ( अचेति ) ज्ञान का विषय होता है। विशेष प्रज्ञा के उदय के अनन्तर प्रकाशरूप आत्मा का साक्षात् होता है
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, २, ६, ७, ८, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ९ विराट् त्रिष्टुप् । ४ आर्षी त्रिष्टुप् । दशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
गुरु शिष्य
पदार्थ
पदार्थ- (समिधानः) = अच्छी प्रकार दीप्त (अग्निः) = यज्ञाग्नि, ज्ञानाग्नि, सूर्य एवं (अग्निवत्) = तेजस्वी विद्वान् (अस्मे अशोचि) = हमारे हितार्थ चमके। (तमसः अन्ताः चित्) = अन्धकार अज्ञान के परले सिरे तक (उपो अदृश्रन्) = स्पष्ट दिखाई दे । (दिवः दुहितुः उषस:) = दीप्त सूर्य कन्या के समान उषा से ही (पुरस्तात् श्रिये) = पूर्व दिशा की शोभा के लिये जैसे सूर्य उत्पन्न होता है वैसे ही (दिवः दुहितुः) = ज्ञानप्रकाश का दोहन करनेवाले, (उषसः) = पापों और अज्ञान के नाशक (मातृवत्) = गुण से (जायमानः) = उत्पन्न होता हुआ शिष्यरूप पुत्र (पुरुस्तात्) = आगे शोभा के लिये ही (केतुः अचेति) = पूर्ण ज्ञानवान् होकर प्रबुद्ध होता है।
भावार्थ
भावार्थ- तेजस्वी विद्वान् गुरु माता के समान शिष्य को अपने गुरुकुलरूपी गर्भ में धारण करके उसे ज्ञान की अग्नि से दीप्त करता है। उसके पापों और अज्ञान का नाश करके पूर्ण ज्ञानवान् बनाकर प्रबुद्ध करता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
The fire of morning yajna is kindled and shines for us, and the end of darkness is seen close at hand. The sun is rising in the east like an honour flag of the glory of the dawn, daughter of heaven.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे उपदेशकांनो! रात्र संपल्यावर सूर्योदयाच्या वेळी संध्या अग्निहोत्र इत्यादी नित्य कर्म करा व राजा आणि प्रजेलाही याचवेळी वरील कर्म करण्यासाठी व इतर आवश्यक कर्म करण्याचा उपदेश करा. कारण उपदेश करण्यासाठी हीच वेळ अत्युत्तम आहे. यावेळी सर्वांची बुद्धी उपदेश ग्रहण करण्यासाठी उद्युक्त असते. ॥२॥
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