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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 67/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अश्विनौ छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒भि वां॑ नू॒नम॑श्विना॒ सुहो॑ता॒ स्तोमै॑: सिषक्ति नासत्या विव॒क्वान् । पू॒र्वीभि॑र्यातं प॒थ्या॑भिर॒र्वाक्स्व॒र्विदा॒ वसु॑मता॒ रथे॑न ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । वा॒म् । नू॒नम् । अ॒श्वि॒ना॒ । सुऽहो॑ता । स्तोमैः॑ । सि॒स॒क्ति॒ । ना॒स॒त्या॒ । वि॒व॒क्वान् । पू॒र्वीभिः॑ । या॒त॒म् । प॒थ्या॑भिः । अ॒र्वाक् । स्वः॒ऽविदा॑ । वसु॑ऽमता । रथे॑न ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि वां नूनमश्विना सुहोता स्तोमै: सिषक्ति नासत्या विवक्वान् । पूर्वीभिर्यातं पथ्याभिरर्वाक्स्वर्विदा वसुमता रथेन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । वाम् । नूनम् । अश्विना । सुऽहोता । स्तोमैः । सिसक्ति । नासत्या । विवक्वान् । पूर्वीभिः । यातम् । पथ्याभिः । अर्वाक् । स्वःऽविदा । वसुऽमता । रथेन ॥ ७.६७.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 67; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अश्विना) हे सेनाधीशाः ! (वां) यूयं (नूनम्) निश्चयेन (सुहोता) शोभना होतारो भूत्वा (स्तोमैः) यज्ञैः अनुष्ठानं (सिषक्ति) कुर्वन्तः शिक्षां लभध्वम्, यत् (नासत्या विवक्वान्) असत्यमभाषमाणाः (पूर्वीभिः, पथ्याभिः, अर्वाक्) सनातनमार्गान् अभिमुखीकृत्य (स्वर्विदा, वसुमता) ऐश्वर्य्यदाता धनवता च (रथेन) पथा (यातं) गच्छत ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अश्विना) हे सेनाधीश राजपुरुषों ! (वां) तुम लोग (नूनं) निश्चय करके (सुहोता) उत्तम होता बनकर (स्तोमैः) यज्ञानुष्ठान (सिषक्ति) करते हुए शिक्षा प्राप्त करो कि (नासत्या, विवक्वान्) तुम कभी असत्य न बोलो (पूर्वीभिः, पथ्याभिः, अर्वाक्) सनातन मार्गों को अभिमुख करके (स्वर्विदा, वसुमता) ऐश्वर्य्य तथा धन प्राप्त होनेवाले (रथेन) मार्ग से (यातं) चलो ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा राजपुरुषों को उपदेश करते हैं कि तुम लोग वैदिक यज्ञ करते हुए सत्यवक्ता होकर सदा सनातन सन्मार्गों से चलो, जिससे तुम्हारा ऐश्वर्य्य बढ़े और तुम उस ऐश्वर्य्य के स्वामी होकर सत्यपूर्वक प्रजा का पालन करो ॥३॥

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    विषय

    जितेन्द्रिय नर-नारियों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( अश्विना ) उत्तम अश्व रूप इन्द्रियों के स्वामी जितेन्द्रिय, ब्रह्मचारी, नर नारी वर्गो ! हे ( नासत्या ) कभी भी असत्य भाषण और असत्य व्यवहार न करने वाले जनो ! वा ( न-असत्-यौ ) कभी असत् अर्थात् कुमार्ग पर पैर न रखने वाले जनो ! (सुहोता) उत्तम ज्ञान देने वाला, ( विवक्वान् ) विविध विद्याओं का उपदेष्टा पुरुष ( स्तोमैः ) उत्तम वेद मन्त्रों और उपदेशों से ( नूनम् ) अवश्य ( वां ) तुम दोनों को ( अभि सिषक्ति ) अपने साथ एक सूत्र में बांधता है, आप दोनों वा ( वसुमता रथेन ) धन अन्नादि सामग्री से सम्पन्न रथ से यात्री जिस प्रकार उत्तम २ मार्गों से सुख से देशान्तर चला जाता है उसी प्रकार ( वसु-मता ) अन्तेवासि शिष्यों से युक्त, ( रथेन ) रथ, उपदेष्टा, वा स्थिर भाव के विद्यमान, ( स्वर्विदा ) ज्ञान के प्रकाश और उपदेश को स्वयं प्राप्त और अन्यों को प्राप्त कराने वाले आचार्य की सहायता से ( पूर्वीभिः ) पूर्व विद्वानों से उपदिष्ट, ( पथ्याभिः ) हितकारी धर्म मार्गों से ( अर्वाक् यातम् ) आगे बढ़ो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, २, ६, ७, ८, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ९ विराट् त्रिष्टुप् । ४ आर्षी त्रिष्टुप् । दशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    जितेन्द्रिय पुरुष

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (अश्विना) = अश्वरूप इन्द्रियों के स्वामी, नर-नारी वर्गो! हे (नासत्या) = कभी असत्य व्यवहार न करनेवाले वा (न-असत्-यौ) = कभी असत्, कुमार्ग पर न जानेवाले जनो! (सुहोता) = उत्तम ज्ञानदाता (वि वक्वान्) = विविध विद्याओं का उपदेष्टा पुरुष (स्तोमैः) = वेद मन्त्रों और उपदेशों से (नूनम्) = अवश्य (वां) = तुम दोनों को (अभि सिषक्ति) = अपने साथ एक सूत्र में बाँधता है, आप दोनों (वसुमता रथेन) = धन, अन्नादि सम्पन्न रथ से यात्री जैसे सुख से देशान्तर चला जाता है वैसे ही (वसु-मता) = शिष्यों से युक्त, (रथेन) = स्थिर भाव के विद्यमान, (स्वर्विदा) = ज्ञान के प्रकाश को स्वयं प्राप्त और अन्यों को प्राप्त करानेवाले आचार्य की सहायता से (पूर्वीभिः) = पूर्व विद्वानों से उपदिष्ट, (पथ्याभिः) = हितकारी मार्गों से (अर्वाक् यातम्) आगे बढ़ो।

    भावार्थ

    भावार्थ- जितेन्द्रिय विद्वान् पुरुष वेदमन्त्रों का उपदेश करके अपने शिष्य वर्ग स्त्री, पुरुष, जनों को विविध विद्याओं का ज्ञान प्रदान कर, असत्य व्यवहार तथा कुमार्ग से बचाकर संयमी बनाता है। उन्हें इतना योग्य बना देता है कि वे भी अपने शिष्यों को उत्तमता पूर्वक ज्ञान के उपदेश करके -शिष्य परम्परा को आगे बढ़ा सकें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Ashvins, twin harbingers of light dedicated to truth of the ruling order, for sure the host and performer of the inaugural session of the yajna of social order, speaking words of truth and piety celebrates you and your light in songs of adoration. O prophets of the light of heaven commanding the wealth, honour and excellence of the world, ascend your chariot and come by the eternal paths of universal truth and rectitude.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमात्मा राजपुरुषांना उपदेश करतो, की तुम्ही वैदिक यज्ञ करीत सत्यवक्ता बनून सदैव सन्मार्गाने चाला, ज्यामुळे तुमचे ऐश्वर्य वाढेल व तुम्ही त्या ऐश्वर्याचे स्वामी बनून सत्याने प्रजेचे पालन कराल. ॥३॥

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