ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 69/ मन्त्र 4
यु॒वोः श्रियं॒ परि॒ योषा॑वृणीत॒ सूरो॑ दुहि॒ता परि॑तक्म्यायाम् । यद्दे॑व॒यन्त॒मव॑थ॒: शची॑भि॒: परि॑ घ्रं॒समो॒मना॑ वां॒ वयो॑ गात् ॥
स्वर सहित पद पाठयु॒वोः । श्रिय॑म् परि॑ । योषा॑ । अ॒वृ॒णी॒त॒ । सूरः॑ । दु॒हि॒ता । परि॑ऽतक्म्यायाम् । यत् । दे॒व॒ऽयन्त॑म् । अव॑थः । शची॑भिः । परि॑ । घ्रं॒सम् । ओ॒मना॑ । वा॒म् । वयः॑ । गा॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
युवोः श्रियं परि योषावृणीत सूरो दुहिता परितक्म्यायाम् । यद्देवयन्तमवथ: शचीभि: परि घ्रंसमोमना वां वयो गात् ॥
स्वर रहित पद पाठयुवोः । श्रियम् परि । योषा । अवृणीत । सूरः । दुहिता । परिऽतक्म्यायाम् । यत् । देवऽयन्तम् । अवथः । शचीभिः । परि । घ्रंसम् । ओमना । वाम् । वयः । गात् ॥ ७.६९.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 69; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(युवोः) हे युवानो राजपुरुषाः ! (सूरः, दुहिता) शौर्ययुक्तानां कुमार्य्यः, (परितक्म्यायाम्) वेद्यां स्वयंवरेषु (योषा) भार्य्या भूत्वा भवतां (श्रियम्) शोभां (परि, अवृणीत) सर्वतो विस्तारयन्तु, अन्यच्च (यत्) यूयं (शचीभिः) स्वकीयशोभनकर्मभिः (देवयन्तम्) क्षात्रधर्मात्मकं यज्ञं (अवथः) रक्षत, अत एव (वाम्) युष्मान् (घ्रंसम्, ओमना, वयः) दीप्तिवद्धनाद्यैश्वर्य्यं (परि, गात्) सर्वतः प्राप्नोतु ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(युवोः) हे युवावस्था को प्राप्त राजपुरुषो ! (सूरः, दुहिता) शूरवीरों की कन्यायें (परितक्म्यायां) वेदियों के स्वयंवरों में (योषा) स्त्रियें बनकर तुम्हारी (श्रियं) शोभा को (परि, अवृणीत) भले प्रकार बढ़ावें और (यत्) जो तुम (शचीभिः) अपने शुभ कर्मों द्वारा (देवयन्तं) क्षात्रधर्मरूप यज्ञ की (अवथः) रक्षा करते हो, इसलिए (वां) तुमको (घ्रंसं, ओमना, वयः) दीप्तिवाला धनादि ऐश्वर्य्य (परि, गात्) सब ओर से प्राप्त हो ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे क्षात्रधर्म को प्राप्त राजपुरुषों ! तुम ब्रह्मचर्य्यादि नियमों का पालन करते हुए युवावस्था को प्राप्त होकर इस सर्वोपरि क्षात्रधर्म का पालन करो, जिससे सुरक्षित हुए सब यज्ञ निर्विघ्न समाप्त होते हैं। यदि तुम अपने जीवन से क्षात्रधर्म को उच्च मान कर इसकी भले प्रकार रक्षा करोगे, तो दिव्यगुणसम्पन्न देवियाँ तुम्हें स्वयंवरों में वरेंगीं और तुम्हें धनरूप ऐश्वर्य्य प्राप्त होगा ॥४॥
विषय
वर-वधू के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे स्त्री पुरुषो ! ( युवोः ) तुम दोनों में ( सूरः दुहितः ) सूर्य को कान्ति वाली उषा के समान सुन्दरी ( योषा ) पुरुष को प्रेमपूर्वक सेवन करने की अभिलाषा वाली स्त्री (परि-तक्म्यायाम् ) कामाग्नि युक्त, यौवन दशा में, वा 'तक्म्या' उष्ण रजोधर्म की दशा के उपरान्त ( श्रियं ) आश्रय योग्य सेवनीय पुरुष को ( परि वृणीत ) स्वीकार करे । आप दोनों ( शचीभिः ) उत्तम कर्मों और वाणियों से ( देवयन्तम् ) विद्वान्वत् अपने प्रिय कामनावान् सहयोगी को अवश्य ( अवथः ) प्राप्त हुआ करो। और ( वां ध्रंसम् ) आप दोनों में अति तेजस्वी पुरुष को ही ( ओमना ) रक्षण योग्य बल सहित (वयः ) उत्तम, दीर्घायु और अन्न बलादि भी ( परि गात् ) प्राप्त हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, ४, ६, ८ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ७ त्रिष्टुप् । ३ आर्षी स्वराट् त्रिष्टुप् । ५ विराट् त्रिष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
दीर्घायु
पदार्थ
पदार्थ- हे स्त्री-पुरुषो! (युवो:) = तुम दोनों में (सूरः दुहिता) = सूर्य की कान्तिवाली उषा के समान सुन्दरी (योषा) = पुरुष की प्रेमपूर्वक अभिलाषावाली स्त्री (परि तक्म्यायाम्) = कामाग्नि-युक्त, यौवन दशा में, (श्रियं) = आश्रय योग्य, सेवनीय पुरुष को (परि वृणीत) = स्वीकार करे। आप दोनों (शचीभिः) = उत्तम कर्मों और वाणियों से (देवयन्तम्) = प्रिय कामनावान् सहयोगी को (अवथः) = प्राप्त हुआ करो और (वां घंसम्) = आप दोनों में तेजस्वी पुरुष को (ओमना) = रक्षण योग्य बल सहित (वयः) = उत्तम, दीर्घायु, अन्न बलादि (परि गात्) = प्राप्त हो ।
भावार्थ
भावार्थ- स्त्री-पुरुष ब्रह्मचर्य पालन के द्वारा कान्तिमान् व तेजस्वी होकर परस्पर मधुरता का व्यवहार करें तथा उत्तम कर्मों द्वारा दीर्घायु को प्राप्त होवें।
इंग्लिश (1)
Meaning
The youthful dawn, daughter of the mighty sun, by choice takes on to your grace and splendour as her mate over and across the soothing night, since while you protect and promote the devout with your energies, your power with its potential circumambulates the light of the sun.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे क्षात्रधर्मी राजपुरुषांनो! तुम्ही ब्रह्मचर्य इत्यादी नियमांचे पालन करीत युवावस्थेत क्षात्रधर्माचे पालन करा. त्यामुळे सुरक्षित झालेले सर्व यज्ञ निर्विघ्नपणे पूर्ण होतात. जर तुम्ही आपल्या जीवनात क्षात्रधर्माला उच्च मानून त्याचे चांगल्या प्रकारे रक्षण कराल, तर दिव्यगुणसंपन्न स्त्रिया तुम्हाला स्वयंवरात स्वीकारतील व तुम्हाला धनरूपी ऐश्वर्य प्राप्त होईल ॥४॥
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