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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 86 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 86/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - वरुणः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒यं सु तुभ्यं॑ वरुण स्वधावो हृ॒दि स्तोम॒ उप॑श्रितश्चिदस्तु । शं न॒: क्षेमे॒ शमु॒ योगे॑ नो अस्तु यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । सु । तुभ्य॑म् । व॒रु॒ण॒ । स्व॒धा॒ऽवः॒ । हृ॒दि । स्तोमः॑ । उप॑ऽसृइतः । चि॒त् । अ॒स्तु॒ । शम् । नः॒ । क्षेमे॑ । शम् । ऊँ॒ इति॑ । योगे॑ । नः॒ । अ॒स्तु॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं सु तुभ्यं वरुण स्वधावो हृदि स्तोम उपश्रितश्चिदस्तु । शं न: क्षेमे शमु योगे नो अस्तु यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । सु । तुभ्यम् । वरुण । स्वधाऽवः । हृदि । स्तोमः । उपऽसृइतः । चित् । अस्तु । शम् । नः । क्षेमे । शम् । ऊँ इति । योगे । नः । अस्तु । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.८६.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 86; मन्त्र » 8
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मा जीवान्प्रति तेषां कल्याणाय प्रार्थनाप्रकारमुपदिशति।

    पदार्थः

    (वरुण) हे विश्वभजनीय परमात्मन् ! (तुभ्यम्) त्वाम् (अयम्) अयं (सु, स्तोमः) सुयज्ञः (उपश्रितः, अस्तु) प्रापयतु (स्वधावः) भो अन्नादिप्रदातः ! (चित्) चेतनरूप ! (हृदि) इयं मम हृदा प्रार्थनास्ति या वक्ष्यते (नः) भवान् मह्यं (शम्) शर्मदो भवतु (ऊँ) तथा (योगे, क्षेमे) योगप्राप्तिः तद्रक्षा च क्रियताम्, येन (नः) मह्यं (शम्) सुखम् (अस्तु) उत्पद्यताम्, तथा (यूयम्) भवान् (स्वस्तिभिः) मङ्गलकरीभिर्वाग्भिः (नः) अस्मान् (सदा) शश्वत् (पात) रक्षतु ॥८॥ इति षडशीतितमं सूक्तमष्टमो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब परमात्मा जीवों को उनके योगक्षेम के लिये प्रार्थना करने का कथन करते हैं।

    पदार्थ

    (वरुण) हे सर्वोपरि वरणीय परमात्मन् ! (तुभ्यं) आपको (अयं) यह (सु, स्तोमः) सुन्दर यज्ञ (उपश्रितः, अस्तु) प्राप्त हो, (स्वधावः)   हे अन्नादि के दाता (चित्) चेतनस्वरूप ! (हृदि) यह मेरी आपसे हार्दिक प्रार्थना है कि आप (नः) हमारे लिए (शं) सुखकारी हों (ऊँ) और (योगे, क्षेमे) योग=अप्राप्त की प्राप्ति तथा क्षेम=प्राप्त की रक्षा कीजिए, जिससे (स्वस्तिभिः) मङ्गलमय वाणियों से (नः) हमको (सदा) सदा (पात) पवित्र करें ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में यह प्रार्थना की गई है कि हे परमात्मन् ! यह हमारा किया हुआ यज्ञ आपको प्राप्त हो, आप कृपा करके हमारे योग-क्षेम की रक्षा करते हुए हमारे भावों को पवित्र करें। अधिक क्या, जो परमात्मा में सदैव रत रहते हैं, उनके योगक्षेम-निर्वाह के लिए परमात्मा स्वयं उद्यत होते हैं ॥८॥ यह ८६वाँ सूक्त और ८वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    सन्मार्ग पर नायक प्रभु

    भावार्थ

    ( अहं ) मैं (अनागाः) पाप से रहित होकर (भूर्णये) पालक ( देवाय ) सर्व सुखदाता, सर्व प्रकाशक परमेश्वर के लिये ( मीढुषः दासः न ) सर्वदाता स्वामी के दास के समान ( अरं कराणि ) बहुत कुछ सेवा करूं । वह ( देवः ) दानशील प्रकाशस्वरूप प्रभु ( अर्यः ) सब का स्वामी ( अचितः ) अज्ञानी जनों को ( अचेतयत् ) सदा ज्ञान प्रदान करता और वह ( कवि-तरः ) सब से अधिक विद्वान् होकर ( गृत्सं ) अपने स्तुतिकर्ता भक्त को ( राये जुनाति ) ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये सन्मार्ग पर ले जाता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि: ॥ वरुणो देवता ॥ छन्दः – १, ३, ४, ५, ८ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ७ विराट् त्रिष्टुप्। ६ त्रिष्टुप्॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    हृदय में ईश्वर पूजा

    पदार्थ

    पदार्थ - हे वरुण कष्टों के वारक! हे (स्वधावः) = जीवों के स्वामिन् ! हे अन्नपते! (अयं सः स्तोमः) = यह वह स्तुति-वचनादि (तुभ्यम्) = तेरे लिये (हृदि चित् उप-श्रितः अस्तु) = हृदय में पूजार्थ स्थिर रहे। वह (नः क्षेमे शं उ अस्तु) = हमारे धन प्राप्ति काल में शान्तिदायक हो । हे विद्वान् जनो ! (सदा यूयं नः पात स्वस्तिभिः) = आप हमारी सदैव उत्तम साधनों से रक्षा एवं पालना करो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - उपासक ईश्वर की पूजा अपने हृदय मन्दिर में किया करे। पवित्र हृदय से ही ईश्वर की स्तुति के वचन बोले तभी जीवन में शान्ति प्राप्त होगी। अग्रिम सूक्त का ऋषि वसिष्ठ व देवता वरुण है।

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    मन्त्रार्थ

    (स्वधावः - वरुण ) हे रसीले । परमात्मन् ! ( तुभ्यम् ) तेरे लिए (यं सु स्तोमः) यह अनुराग भरा स्तन - स्तुतिवचन (हृदि उपथितः - चित्-अस्तु ) मेरे हृदय में उपस्थित रहे ( नः क्षेमे शम्) वह हमारे रक्षाकार्य में कल्याणप्रद हो (न:- योगे शम्-उअस्तु ) हमारे प्राप्तिकार्य में भी अवश्य कल्याणकारी हो ( यूयं स्वस्तिभिः सदा नः पात) तुम अपने कृपाकारों से सदा हमारी रक्षा करो ॥८॥

    टिप्पणी

    'जीव स्वभाव से पवित्र है' (सत्यार्थप्रकाश सप्तम समुल्लास-दयानन्द)

    विशेष

    ऋषिः-वसिष्ठः (परमात्मा में अतिशय से वसनेवाला उपासक) देवता- वरुणः (वरने योग्य तथा वरनेवाला उभयगुणसम्पन्न परमात्मा)

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Varuna, self-existent lord of omniscience and omnipotence, may this song of adoration reach your heart and be graciously accepted. Let there be all good and full protection for what we have achieved, and all good grace and advancement for what we may further achieve. O lord, O divinities of nature and humanity, pray protect and promote us with all happiness and well being all ways all time, bless us with yoga and kshema in peace.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात ही प्रार्थना केलेली आहे, की हे परमात्मा! आम्ही केलेला हा यज्ञ तुला प्राप्त व्हावा. तू कृपा करून आमच्या योगक्षेमाचे रक्षण करून आमचे भाव पवित्र कर. जे परमेश्वरात सदैव रममाण असतात त्यांच्या योगक्षेमासाठी परमेश्वर सदैव स्वत: उद्यत असतो ॥८॥

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