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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 11/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वत्सः काण्वः देवता - अग्निः छन्दः - वर्धमाना गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वम॑सि प्र॒शस्यो॑ वि॒दथे॑षु सहन्त्य । अग्ने॑ र॒थीर॑ध्व॒राणा॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । अ॒सि॒ । प्र॒ऽशस्यः॑ । वि॒दथे॑षु । स॒ह॒न्त्य॒ । अग्ने॑ । र॒थीः । अ॒ध्व॒राणा॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमसि प्रशस्यो विदथेषु सहन्त्य । अग्ने रथीरध्वराणाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । असि । प्रऽशस्यः । विदथेषु । सहन्त्य । अग्ने । रथीः । अध्वराणाम् ॥ ८.११.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 35; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (सहन्त्य) हे सहनशील (अग्ने) परमात्मन् ! (विदथेषु) सर्वयज्ञेषु (त्वम्, प्रशस्यः, असि) त्वमेव स्तुत्योऽसि (अध्वराणाम्) यतो हिंसारहितकर्मणाम् (रथीः) नेतासि ॥२॥

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    विषयः

    पुनः परमात्मैव स्तूयते ।

    पदार्थः

    हे सहन्त्य=सर्वैः पदार्थैः सह समानगन्तः । हन हिंसागत्योः । त्वमेव । विदथेषु=यज्ञेषु । प्रशस्योऽसि=प्रशंसनीयोऽसि नान्यः । कश्चिदित्यर्थः । हे अग्ने=परमात्मन् ! अध्वराणामध्वनो मार्गान् रान्ति=ददति=प्रदर्शयन्ति ये तेऽध्वरा विद्वांसः सूर्य्यादयश्च । यद्वा । अध्वरा हिंसारहिता यज्ञाः । यद्वा । अध्वसु शुभमार्गेषु ये रमन्ते तेऽध्वराः । तेषामध्वराणां रथीर्नेतासि ॥२ ॥

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    हिन्दी (5)

    पदार्थ

    (सहन्त्य) हे सहनशील (अग्ने) परमात्मन् ! (विदथेषु) सब यज्ञों में (त्वम्, प्रशस्यः, असि) आप ही स्तुतियोग्य हैं, क्योंकि (अध्वराणाम्) हिंसावर्जित कर्मों के (रथीः) नेता हैं ॥२॥

    भावार्थ

    हे परमपिता परमात्मन् ! आप सम्पूर्ण हिंसारहित कर्मों के प्रचारक तथा नेता होने से सब यज्ञादि कर्मों में प्रथम ही स्तुति किये जाते हैं ॥२॥

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    विषय

    पुनः परमात्मा की ही स्तुति कहते हैं ।

    पदार्थ

    (सहन्त्य) हे सब पदार्थों के साथ समानगामी=हे सर्वग अन्तर्य्यामिन् (त्वम्) तू ही (विदथेषु) यज्ञों में (प्रशस्यः) प्रशंसनीय (असि) है, अन्य नहीं । (अग्ने) हे सर्वव्यापिन् देव ! (अध्वराणाम्) विद्वानों, सूर्य्यादिकों, यज्ञों तथा शुभकर्मप्रिय जनों का (रथीः) नेता तू ही है ॥२ ॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यों ! सर्वत्र परमात्मा ही को पूजो, क्योंकि वही सबका नेता है ॥२ ॥

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    विषय

    स्तुतिविषयः

    व्याखान

    हे (अग्ने) सर्वज्ञ ! तू ही सर्वत्र (प्रशस्य:)  स्तुति करने के योग्य है, अन्य कोई नहीं। (विदथेषु) यज्ञ और युद्धों में आप ही स्तोतव्य हो । जो तुम्हारी स्तुति को छोड़के अन्य जड़ादि की स्तुति करता है उसकी यज्ञ तथा युद्धों में विजय कभी सिद्ध नहीं होती । (सहन्त्य) शत्रुओं के समूहों के आप ही घातक हो । (रथी:, अध्वराणाम्) अध्वरों, अर्थात् यज्ञ और युद्धों में आप ही रथी हो । हमारे शत्रुओं के योद्धाओं को जीतनेवाले हो, इस कारण से हमारा पराजय कभी नहीं हो सकता ॥ २६ ॥

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    विषय

    व्रतपा अग्नि ।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने ) अग्निवत् तेजस्विन् ! हे ( सहन्त्य ) शत्रुओं के पराजयकारिन् ! हे सब के साथ व्यापक ! ( त्वम् ) तू ( विदथेषु ) यज्ञों, संग्रामों और ज्ञान लाभ के अवसरों में ( प्रशस्यः असि ) सब से प्रशंसा करने और उत्तम रीति से उपदेश करने योग्य है । तू ही ( अध्वराणाम् ) यज्ञों और सन्मार्ग, मोक्ष मार्ग में जाने वालों में ( रथी: ) रथवान् के समान सुख से मार्ग पार करा देने और अन्तिम लक्ष्य तक पहुंचा देने हारा है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वत्सः काण्व ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः—१ आर्ची भुरिग्गायत्री। २ वर्धमाना गायत्री। ३, ५—७, ९ निचृद् गायत्री। ४ विराड् गायत्री। ८ गायत्री। १० आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'युद्धों में व यज्ञों में' उपास्य प्रभु

    पदार्थ

    [१] हे (सहन्त्य) = शत्रुओं का अभिभव करनेवाले प्रभो ! (त्वम्) = आप ही (विथेषु) संग्रामों में [विदथ: battle] (प्रशस्य:) = प्रशंसा के योग्य होते हैं। आप से ही शक्ति को प्राप्त करके हम शत्रुओं का शातन [ = संहार] कर पाते हैं। [२] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो! आप ही (अध्वराणाम्) = सब हिंसारहित यज्ञात्मक कर्मों के (रथी:) = प्रणेता हैं। आप के रक्षण में ही सब यज्ञ पूर्ण हुआ करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु कृपा से ही संग्रामों में विजय प्राप्त होती है और प्रभु के रक्षण से ही सब यज्ञ पूर्ण होते हैं।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, you are adorable in sacred congregations, the one patient, challenging and victor power, and pioneer and leader of non-violent yajnic programmes of creation and production in humanity.

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    Purport

    O Omniscient Lord! You alone are worthy of praise and adoration, none else. In yajñās-in meritorious actions, in battles and in the struggles of life you alone are worthy of worship. Those who ignoring you, worship, inanimate idols can never achieve success s in Yain Yajñās, battles and struggles of life. You are the destroyer of multitude of enemies who stand against us. In the Yajñās and battles you are our charioteer. You are the conqueror of the warriors of our foes, hence we can never be subdued. 

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे परमपिता परमात्मा ! तू संपूर्ण हिंसारहित कर्माचा प्रचारक व नेता असल्यामुळे सर्व यज्ञकर्मात प्रथम तुझीच स्तुती केली जाते. ॥२॥

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    विषय

    स्तुती

    व्याखान

    हे (अग्ने) सर्वज्ञ ! तूच सर्वत्र आहेस. (प्रशस्यः) स्तुती करण्यायोग्य आहेस, दुसरा कोणी नाही. (विदथेषु) यज्ञात व युद्धात तूच स्तुती करण्याजोगा आहेस. जो तुला सोडून जडादी पदार्थाची स्तुती करतो त्याचा यशात किंवा युद्धात विजय होत नाही. (सहन्त्य) शत्रूच्या समूहाचा नाश करणारा तूच आहेस (रथीरध्वराणाम्) अर्थात यज्ञात व युद्धात तुच रथी आहेस. आमच्या शांच्या योद्ध्यांवर विजय प्राप्त करणार तूच आहेस. यामुळे आमचा पराभव कधीच होऊ शकत नाही ॥२६ ॥

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    नेपाली (1)

    विषय

    स्तुतिविषयः

    व्याखान

    हे अग्ने= सर्वज्ञ ! तपाईं नै सर्वत्र प्रशस्यः = स्तुति गर्न योग्य हुनुहुन्छ, अर्को कोही छैन । विदथेषु = यज्ञ र युद्धादि मा तपाईं नै स्तोतव्य हुनुहुन्छ । जसले तपाईंको स्तुति छोडेर अन्य जडादि को स्तुति गर्दछ तेसलाई यज्ञादिशुभकर्म मा र युद्धादि हरु मा कहिल्यैविजय सिद्ध हुँदैन । सहन्त्य - शत्रु समूह का घातक तपाईं नै हुनुहुन्छ । रथीः अध्वराणाम्= अध्वर हरु मा अर्थात् यज्ञ हरु मा तथा युद्ध हरु मा तपाईं नै रथी हुनुहुन्छ । हाम्रा शत्रुगण का योद्धा हरु लाई परास्त गर्ने तपाईं नै हुनुहुन्छ, एस कारण ले गर्दा हाम्रो पराजय कहिल्यै पनि हुन सक्तैन ॥२६॥

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