ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 11/ मन्त्र 6
विप्रं॒ विप्रा॒सोऽव॑से दे॒वं मर्ता॑स ऊ॒तये॑ । अ॒ग्निं गी॒र्भिर्ह॑वामहे ॥
स्वर सहित पद पाठविप्र॑म् । विप्रा॑सः । अव॑से । दे॒वम् । मर्ता॑सः । ऊ॒तये॑ । अ॒ग्निम् । गीः॒ऽभिः । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विप्रं विप्रासोऽवसे देवं मर्तास ऊतये । अग्निं गीर्भिर्हवामहे ॥
स्वर रहित पद पाठविप्रम् । विप्रासः । अवसे । देवम् । मर्तासः । ऊतये । अग्निम् । गीःऽभिः । हवामहे ॥ ८.११.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 11; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 36; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 36; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(विप्रासः, मर्तासः) विद्वांसो मनुष्याः वयम् (ऊतये) तृप्तये (अवसे) रक्षणाय च (विप्रम्) विद्वांसम् (देवम्) द्योतमानम् (अग्निम्) जगतो व्यञ्जयितारं तम् (गीर्भिः) वेदवाग्भिः (हवामहे) आह्वयामः ॥६॥
विषयः
पुनस्तदनुवर्त्तते ।
पदार्थः
विप्रासः=विप्राः परहृदयेषु ज्ञानबीजवपनकर्तारः । मर्त्तासः=मर्ता मरणधर्माणो वयम् । विप्रम्=ज्ञानवप्तारम् । देवम्=नित्यं शाश्वतं दीप्तिमन्तमग्निं परमात्मानम् । अवसे=अनुग्रहीतुम् । ऊतये=रक्षायै जगतः । गीर्भिः=स्वस्वभाषाभिः । हवामहे=आह्वयामः=स्तुमः ॥६ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(विप्रासः, मर्तासः) विद्वान् मनुष्य हम लोग (ऊतये) तृप्ति के लिये (अवसे) और रक्षा के लिये (विप्रम्) सर्वज्ञ (देवम्) प्रकाशमान (अग्निम्) जगत् के व्यञ्जक परमात्मा का (गीर्भिः) वेदवाणी द्वारा (हवामहे) आह्वान करते हैं ॥६॥
भावार्थ
उपर्युक्त गुणसम्पन्न परमात्मा को हम विद्वान् लोग वेदवाणियों द्वारा आह्वान करते अर्थात् उनके समीपी होते हैं कि वह सर्वज्ञ परमात्मा हमारी सब ओर से रक्षा करें ॥६॥
विषय
पुनः वही विषय आ रहा है ।
पदार्थ
(विप्रासः) दूसरों के हृदयों में ज्ञानबीज बोनेवाले (मर्तासः) मरणधर्मी हम मनुष्यगण (विप्रम्) विज्ञानबीजप्रदाता (देवम्) नित्य शाश्वत दीप्तिमान् (अग्निम्) परमात्मा को (अवसे) रक्षा और (ऊतये) साहाय्य के लिये (गीर्भिः) स्वस्वभाषाओं से (हवामहे) गाते और स्तुति करते हैं ॥६ ॥
भावार्थ
परमात्मा की स्तुति सब ही करें ॥६ ॥
विषय
राजा, विद्वान् व अग्रणी नायक आचार्य के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हम ( विप्रासः मर्त्तासः ) विद्वान् बुद्धिमान् मनुष्य (अवसे) रक्षा, ज्ञान, आत्मसंतोष, प्रीति सुखादि के लिये और ( ऊतये ) तुझे प्राप्त होने के लिये ( विप्रं ) विविध ऐश्वर्यों के पूरक ( देवं ) प्रकाशमान ( अग्निं ) ज्ञानस्वरूप की हम ( गीर्भिः ) नाना वेदवाणियों से ( हवामहे ) स्तुति करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वत्सः काण्व ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः—१ आर्ची भुरिग्गायत्री। २ वर्धमाना गायत्री। ३, ५—७, ९ निचृद् गायत्री। ४ विराड् गायत्री। ८ गायत्री। १० आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्॥
विषय
अवस् व ऊति
पदार्थ
[१] (विप्रासः) = अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाले हम (विप्रम्) = हमारा पूरण करनेवाले ज्ञानी प्रभु को (अवसे) = [fame, wealth] यश व धन के लिये (हवामहे) = पुकारते हैं। यश को प्राप्त करने के लिये हमें अपना पूरण करने की प्रेरणा मिले। धन के द्वारा हम पूर्ति के सब साधनों को जुटानेवाले हों। [२] हम (मर्तासः) = मरणधर्मा पुरुष ऊतये रक्षण के लिये (देवम् = उन रोगों व वासनाओं को जीतने की कामनावाले प्रभु को पुकारते हैं। प्रभु ही हमारे रोगों व हमारी वासनाओं को विनष्ट करते हैं। [३] हम (गीर्भिः) = ज्ञान वाणियों के द्वारा (अग्निम्) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले प्रभु को पुकारते हैं। प्रभु हमें ज्ञान देते हैं और इस प्रकार हमें उन्नत करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु से हम यश, धन व रक्षण प्राप्त करें। प्रभु ज्ञान की वाणियों के द्वारा हमें निरन्तर उन्नत करते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
With songs of adoration, we, mortal sages, invoke and exalt Agni, lord all knowing, self-refulgent and generous, for our protection, progress and well being.
मराठी (1)
भावार्थ
वरील गुणसंपन्न परमेश्वराला आम्ही विद्वान लोक वेदवाणीद्वारे आवाहन करतो अर्थात त्याच्या समीप जातो. त्या सर्वज्ञ परमेश्वराने आमचे सगळीकडून रक्षण करावे. ॥६॥
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