ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 11/ मन्त्र 9
स॒मत्स्व॒ग्निमव॑से वाज॒यन्तो॑ हवामहे । वाजे॑षु चि॒त्ररा॑धसम् ॥
स्वर सहित पद पाठस॒मत्ऽसु॑ । अ॒ग्निम् । अव॑से । वा॒ज॒ऽयन्तः॑ । ह॒वा॒म॒हे॒ । वाजे॑षु । चि॒त्रऽरा॑धसम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
समत्स्वग्निमवसे वाजयन्तो हवामहे । वाजेषु चित्रराधसम् ॥
स्वर रहित पद पाठसमत्ऽसु । अग्निम् । अवसे । वाजऽयन्तः । हवामहे । वाजेषु । चित्रऽराधसम् ॥ ८.११.९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 11; मन्त्र » 9
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 36; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 36; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(वाजेषु) संग्रामेषु (चित्रराधसम्) विचित्रधनम् (अग्निम्) परमात्मानम् (अवसे) रक्षायै (वाजयन्तः) बलमिच्छन्तो वयम् (समत्सु) संग्रामेषु (हवामहे) आह्वयामः ॥९॥
विषयः
ईश्वरस्तुतिः ।
पदार्थः
यदा-२ वयं वाजयन्तः=बलविज्ञानेच्छवो भवामः । तदा-२ वाजेषु=बलविज्ञानार्थम् । चित्रराधसम्=अद्भुतशक्तिसम्पन्नमग्निमेव । ध्यायामः । पुनः । समत्सु=स्वस्वहृदयेषु संकटेषु च । हवामहे । आह्वयामः स्तुमश्च ॥९ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(वाजेषु) संग्राम में (चित्रराधसम्) विचित्र सामग्रीवाले (अग्निम्) परमात्मा को (अवसे) रक्षा के लिये (वाजयन्तः) बल चाहनेवाले हम लोग (समत्सु) संग्रामों में (हवामहे) आह्वान करते हैं ॥९॥
भावार्थ
हे परमात्मन् ! आपको विचित्र सामग्रीवाला होने से सब मनुष्य आपसे अपनी रक्षा की याचना करते और योद्धा लोग संग्रामों में आपसे ही विजय की प्रार्थना करते हैं ॥९॥
विषय
ईश्वर की स्तुति ।
पदार्थ
जब-२ हम (वाजयन्तः) विज्ञान और बल की कामना करते हैं, तब-२ (वाजेषु) विज्ञान बल के लिये (चित्रराधसम्) अद्भुत शक्तिसम्पन्न (अग्निम्) परमात्मा का ही ध्यान करते हैं (समत्सु) और सम्यक् आनन्दप्रद अपने-२ हृदय में और संकटों में (अवसे) रक्षा करने के लिये उसी को (हवामहे) बुलाते हैं और उसी की स्तुति करते हैं । हे मनुष्यों ! तुम भी वैसा ही करो ॥९ ॥
भावार्थ
वही बलदा और विज्ञानदाता है, तदर्थ वही पूज्य है, यह जानना चाहिये ॥९ ॥
विषय
सर्वशासक तेजोमय प्रभु का वर्णन ।
भावार्थ
हम ( समत्सु ) संग्राम में और एक साथ मिलकर आनन्द अनुभव करने के अवसरों में और ( वाजेषु ) ऐश्वर्यों, ज्ञानों, अन्नों के निमित्त ( चित्र- राधसम् ) अद्भुत धन के धनी, ( अग्निम् ) सर्वव्यापक, अग्रणी, ज्ञानस्वरूप प्रभु की ( अवसे ) रक्षा, पालन, ज्ञान आदि के लिये ही ( वाजयन्तः ) ऐश्वर्य ज्ञानादि की कामना करते हुए हम लोग (हवामहे) स्तुति करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वत्सः काण्व ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः—१ आर्ची भुरिग्गायत्री। २ वर्धमाना गायत्री। ३, ५—७, ९ निचृद् गायत्री। ४ विराड् गायत्री। ८ गायत्री। १० आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्॥
विषय
'चित्रराधस्' प्रभु का आवाहन
पदार्थ
[१] (समत्सु) = संग्रामों में (वाजयन्तः) = बल की कामनावाले होते हुए हम (अवसे) = यश [fame] के लिये, विजय श्री को प्राप्त करने के लिये (अग्निम्) = उस अग्रेणी प्रभु को (हवामहे) = पुकारते हैं। प्रभु ने ही तो हमें इन संग्रामों में इस विजय श्री को प्राप्त कराना है। [२] (वाजेषु) = संग्रामों में (चित्रराधसम्) = चायनीय, अद्भुत धन को प्राप्त करानेवाले प्रभु को हम पुकारते हैं। प्रभु ही हमें इन संग्रामों में अद्भुत सफलताओं को प्राप्त कराते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम उस चित्रराधस् अद्भुत धनों के स्वामी प्रभु का आवाहन करते हैं। ये प्रभु ही हमें युद्धों में विजय प्राप्त कराते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
We, seekers of strength and fighters for victory, invoke and adore Agni, omnipotent power of wondrous munificence and achievement, for protection, defence and advancement in our struggles and contests of life.
मराठी (1)
भावार्थ
हे परमेश्वरा, तुझ्याजवळ वेगवेगळी सामग्री असल्यामुळे सर्व माणसे तुझ्यासमोर आपल्या रक्षणाची याचना करतात व योद्धे युद्धात विजयाची प्रार्थना करतात. ॥९॥
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