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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 13/ मन्त्र 19
    ऋषिः - नारदः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    स्तो॒ता यत्ते॒ अनु॑व्रत उ॒क्थान्यृ॑तु॒था द॒धे । शुचि॑: पाव॒क उ॑च्यते॒ सो अद्भु॑तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्तो॒ता । यत् । ते॒ । अनु॑ऽव्रतः । उ॒क्थानि॑ । ऋ॒तु॒ऽथा । द॒धे । शुचिः॑ । पा॒व॒कः । उ॒च्य॒ते॒ । सः । अद्भु॑तः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तोता यत्ते अनुव्रत उक्थान्यृतुथा दधे । शुचि: पावक उच्यते सो अद्भुतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्तोता । यत् । ते । अनुऽव्रतः । उक्थानि । ऋतुऽथा । दधे । शुचिः । पावकः । उच्यते । सः । अद्भुतः ॥ ८.१३.१९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 13; मन्त्र » 19
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    हे परमात्मन् ! (यत्, ते) यस्य तव (स्तोता) उपासकः (अनुव्रतः) अनुकूलकर्मणि वर्तमानः (ऋतुथा) प्रत्यृतु (उक्थानि, दधे) स्तोत्राणि दधाति (सः, अद्भुतः) सः आश्चर्यरूपः (शुचिः) शुद्धः (पावकः) शोधकश्च (उच्यते) कथ्यते विप्रैः ॥१९॥

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    विषयः

    महिमानं वर्णयति ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! स्तोता=स्तुतिपाठकः । अनुव्रतः=स्वकर्त्तव्यपालनेन त्वामेव प्रसादयितुं नानाव्रतधारी भूत्वा । ऋतुथा=ऋतौ ऋतौ काले काले । यद्=यस्य ते प्रीत्यै । उक्थानि=विविधानि स्तुतिवचनानि । दधे=विधत्ते=करोति । परोऽर्धचः परोक्षकृतः । सः=इन्द्रः । शुचिः=शुद्धः । पावकः=सर्वेषां पदार्थानां शोधकः । अपि च । अद्भुतः=आश्चर्य्यभूत उच्यते । स एव मान्योऽस्ति । स सर्वेषां स्वामीति बोद्धव्यम् ॥१९ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! (यत्, ते) जिस आपका (स्तोता) उपासक (अनुव्रतः) अनुकूलानुष्ठान करते हुए (ऋतुथा) प्रत्येक ऋतु में (उक्थानि) आपके स्तोत्रों को (दधे) धारण करता है (सः) वह परमात्मा (अद्भुतः) आश्चर्यरूप (शुचिः) स्वयं शुद्ध (पावकः) दूसरों का शोधक (उच्यते) कहा जाता है ॥१९॥

    भावार्थ

    हे शुद्धस्वरूप परमात्मन् ! आप और आपकी रचना आश्चर्य्यमय है, जिसको विद्वान् पुरुष धारणा, ध्यान, समाधि द्वारा अनुभव करते हैं। हे प्रभो ! आप ही सबको ज्ञानदाता और आप ही सर्वत्र सुधारक हैं। आपके उपासक ऋतु-२ में यज्ञों द्वारा आपके गुणों को धारण करते हैं, क्योंकि आप स्वयं शुद्ध और दूसरों को पवित्र करनेवाले हैं ॥१९॥

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    विषय

    महिमा का वर्णन करते हैं ।

    पदार्थ

    (स्तोता) स्तुतिपाठकजन (अनुव्रतः) स्वकर्त्तव्यपालन में रत और तुझको प्रसन्न करने के लिये नानाव्रतधारी होकर (ऋतुथा) प्रत्येक ऋतु में=समय-२ पर (यद्+ते) जिस तेरी प्रीति के लिये (उक्थानि) विविध स्तुतिवचनों को (दधे) बनाते रहते हैं, वह तू हम जीवों पर कृपा कर । हे मनुष्यों ! (सः) वह महान् देव (शुचिः) परमपवित्र है (पावकः) अन्यान्य सब वस्तुओं का शोधक और (अद्भुतः) महामहाऽद्भुत (उच्यते) कहलाता है । उसी की उपासना करो, वही मान्य है । वह सबका स्वामी है ॥१९ ॥

    भावार्थ

    जो शुचि, पवित्रकारक और अद्भुत है । उसी को विद्वान् स्तोता अनुव्रत होकर पूजते हैं, हम भी उसी को पूजें ॥१९ ॥

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    विषय

    पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्यों का निदर्शन ।

    भावार्थ

    ( यत् ) जिस प्रकार से ( स्तोता ) स्तुतिकर्त्ता, उपासक ( ते अनु-व्रतः ) तेरे अनुकूल व्रत आचरण करता हुआ, (ऋतुथा) भिन्न २ ऋतु आदि कालों में ( उक्थानि ) उत्तम वेद-वचनों को धारण करता है । भगवन् ! ( सः ) वह तू ( शुचिः ) शुद्ध, ( पावकः ) परम पावन और ( अद्भुतः ) अद्भुत आश्चर्यकारक और अजन्मा ( उच्यते ) कहा जाता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नारदः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ८, ११, १४, १९, २१, २२, २६, २७, ३१ निचृदुष्णिक्। २—४, ६, ७, ९, १०, १२, १३, १५—१८, २०, २३—२५, २८, २९, ३२, ३३ उष्णिक्। ३० आर्षी विराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    शुचिः पावकः अद्भुतः

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो ! (यत्) = जब (ते स्तोता) = यह जीव आपका स्तोता बनता है, तो (अनुव्रतः) = आपके अनुकूल व्रतवाला होता है। आप सर्वज्ञ हैं, यह भी ज्ञानी बनने का प्रयत्न करता है। आप दयालु हैं, यह भी दया को अपनाने का प्रयत्न करता है। और (ऋतुथा) = समय-समय पर (उक्थानि दधे) = आपके स्तोत्रों का धारण करता है। [२] यह स्तोता (शुचिः) = अपने को पवित्र बनाता है। (पावकः) = औरों को भी पवित्र जीवनवाला करता है, इस प्रकार बना हुआ (सः) = यह स्तोता (अद्भुतः उच्यते) = सब से अद्भुत जीवनवाला कहाता है। सब कोई इसे आश्चर्य से देखते हैं। इसे वे महापुरुष के रूप में देखते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु का स्तोता स्तवन करता हुआ प्रभु के गुणों को धारण करता है। इस प्रकार पवित्र बनता है, पवित्र करनेवाला होता है। अद्भुत जीवनवाला होता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The real celebrant is the person dedicated to the observance of your discipline of divine law , the one who creates and sings songs of adoration according to the seasons of time, songs in which the lord of wonder and majesty is celebrated as radiant and pure who purifies the celebrant too into radiance and sinlessness.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो शुची, पवित्रकारक व अद्भुत आहे, त्यालाच विद्वान स्तोता अनुव्रत होऊन पूजतात. आम्हीही त्याची पूजा करावी. ॥१९॥

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