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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 16/ मन्त्र 12
    ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स त्वं न॑ इन्द्र॒ वाजे॑भिर्दश॒स्या च॑ गातु॒या च॑ । अच्छा॑ च नः सु॒म्नं ने॑षि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । त्वम् । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । वाजे॑भिः । द॒श॒स्य । च॒ । गा॒तु॒ऽय । च॒ । अच्छ॑ । च॒ । नः॒ । सु॒म्नम् । ने॒षि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स त्वं न इन्द्र वाजेभिर्दशस्या च गातुया च । अच्छा च नः सुम्नं नेषि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । त्वम् । नः । इन्द्र । वाजेभिः । दशस्य । च । गातुऽय । च । अच्छ । च । नः । सुम्नम् । नेषि ॥ ८.१६.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 16; मन्त्र » 12
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (सः, त्वम्) तादृशस्त्वम् (नः) अस्मभ्यम् (वाजेभिः) बलैः सह (दशस्या, च) याचितान्दत्स्व (गातुया, च) सन्मार्गं दर्शय च (नः, अच्छ) अस्मदभिमुखम् (सुम्नम्, नेषि, च) सुखं प्रापय च ॥१२॥ इति षोडशं सूक्तमेकविंशतितमो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    विषयः

    इन्द्रः प्रार्थ्यते ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! स त्वम् । नोऽस्मभ्यम् । वाजेभिः=वाजान् ज्ञानानि । दशस्य=देहि । दशधातुर्दानार्थको वेदे । यद्वा । वाजेभिर्विज्ञानैः सह धनं प्रयच्छ वा । च । अन्यान्यपि अभीष्टानि देहि । च पुनः । गातुय=शोभनं मार्गं प्रदर्शय । च पुनः । नोऽस्मभ्यम् । सुम्नम्=सुखम् । अच्छ=अभि । नेषि=प्रापय ॥१२ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (सः, त्वम्) ऐसी महिमावाले आप (नः) हमारे लिये (वाजेभिः) बलों के साथ (दशस्या, च) याचित पदार्थों को दें और (गातुया, च) सन्मार्ग को दिखलाएँ (नः, अच्छ) हमारे अभिमुख (सुम्नम्, नेषि, च) सुख को प्राप्त कराएँ ॥१२॥

    भावार्थ

    हे उपर्युक्त महिमावाले परमेश्वर ! आप हमें बल प्रदान करते हुए हमको वे पदार्थ प्रदान करें, जिनकी हम आपसे याचना करते हैं। हमें वेदविहित सन्मार्ग की ओर ले जाएँ, जिससे हम पापकर्मों से सदा पृथक् रहें और तीनों प्रकार के तापों से हमारी रक्षा करें, ताकि हम सुखसम्पन्न होकर आपकी उपासना में तत्पर रहें ॥१२॥ यह सोलहवाँ सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    इससे ईश्वर की प्रार्थना करते हैं ।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! (सः+त्वम्) वह तू (नः) हम उपासकजनों को (वाजेभिः) विज्ञान (दशस्य) दे । यद्वा विज्ञानों के साथ धन दे (च) और अन्यान्य अभीष्ट वस्तुओं को भी दे । (च) और (गातुय) शोभन मार्ग दिखला (च) और (नः) हमको (सुम्नम्) सुख (अच्छ+नेषि) अच्छे प्रकार दे ॥१२ ॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यों ! परमात्मा ही से धन, जन, ज्ञान और बल की प्रार्थना करो, वही सन्मार्ग तुम्हें दिखलावेगा ॥१२ ॥

    टिप्पणी

    यह अष्टम मण्डल का सोलहवाँ सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    स्तुति योग्य प्रभु के गुणों का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! बलवन् ! प्रभो ! ( सः त्वं ) वह तू ( नः ) हमें ( वाजेभिः ) नाना ऐश्वर्यो और बलों करके ( दशस्य ) सुख प्रदान कर और ( गातुया च ) उत्तम सुख की ओर मार्ग दिखा। ( अच्छ च नः सुम्नं नेषि ) हमें सुख की ओर ले चल। इत्येकविंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    इरिम्बठिः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ९—१२ गायत्री। २—७ निचृद् गायत्री। ८ विराड् गायत्री॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    दशस्या च गातुया च

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (सः त्वम्) = वे आप (नः) = हमें (वाजेभिः) = बलों के साथ (दशस्य च) = धनों को भी दीजिये (गातुय च) = और हमें उत्तम सुख का मार्ग दिखाइये [मार्गम् इच्छ]। [२] (च) = और हे प्रभो! इस प्रकाश व शक्ति के साथ धनों को देते हुए तथा मार्ग पर ले चलते हुए आप (नः) = हमें (सुम्नं अच्छा) = सुख की ओर अथवा स्तवन की ओर (नेषि) = ले चलिये।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु कृपा से शक्ति व धन को प्राप्त करते हुए मार्ग पर चलें और सुख को प्राप्त करें। अगले सूक्त के ऋषि देवता भी 'इरिम्बिठि काण्व' व 'इन्द्र' ही हैं-

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of power and giver of fulfilment, by gifts of science and energy and with noble acts and persistent endeavour, lead us well by noble paths to peace, prosperity and well being.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! परमेश्वराला धन, जन, ज्ञान व बलाची प्रार्थना करा. तोच तुम्हाला सन्मार्ग दाखवील. ॥१२॥

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