ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 16/ मन्त्र 5
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
तमिद्धने॑षु हि॒तेष्व॑धिवा॒काय॑ हवन्ते । येषा॒मिन्द्र॒स्ते ज॑यन्ति ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । इत् । धने॑षु । हि॒तेषु॑ । अ॒धि॒ऽवा॒काय॑ । ह॒व॒न्ते॒ । येषा॑म् । इन्द्रः॑ । ते॒ । ज॒य॒न्ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमिद्धनेषु हितेष्वधिवाकाय हवन्ते । येषामिन्द्रस्ते जयन्ति ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । इत् । धनेषु । हितेषु । अधिऽवाकाय । हवन्ते । येषाम् । इन्द्रः । ते । जयन्ति ॥ ८.१६.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 16; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
आह्वातारः (हितेषु, धनेषु) संनिहितेषु शत्रुषु (अधिवाकाय) अधिकजयाय (तमित्) तमेव (हवन्ते) आह्वयन्ति तत्र (येषाम्, इन्द्रः) येषां पक्षे इन्द्रः (ते, जयन्ति) त एव जयन्ति ॥५॥
विषयः
पुनरपि इन्द्रः स्तूयते ।
पदार्थः
हे मनुष्याः ! हितेषु=कल्याणकरेषु । धनेषु प्राप्तेषु । विद्वांसो जनाः । अधिवाकाय=अधिवचनाय, अधिकं स्तोतुं तमित्तमेवेन्द्रं हवन्ते=आह्वयन्ति । एवञ्च हे मनुष्याः ! येषां पक्षे । इन्द्रो भवति । त एव । जयन्ति=तेषामेव विजयो भवति ॥५ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
योद्धा लोग (हितेषु, धनेषु) शत्रुओं के संनिहित होने पर (तम्, इत्) उसी परमात्मा को (हवन्ते) आह्वान करते हैं (येषाम्) जिनके पक्ष में (इन्द्रः) वह परमात्मा होता है, (ते, जयन्ति) वे ही जीतते हैं ॥५॥
भावार्थ
शत्रु के संनिहित=प्राप्त होने पर अर्थात् युद्धसमय में जो योद्धा लोग परमात्मा से विजय की प्रार्थना करते हैं और जिसके पक्ष में परमात्मा होते हैं, निस्सन्देह उसी की विजय होती है, परपक्ष की नहीं ॥५॥
विषय
पुनः इन्द्र की स्तुति कहते हैं ।
पदार्थ
हे मनुष्यों ! (हितेषु+धनेषु) कल्याणकारी धनों की प्राप्ति होने पर विद्वान् जन (अधिवाकाय) अधिक स्तुति करने के लिये (तम्+इत्) उसी इन्द्र की (हवन्ते) विद्वान् जन स्तुति करते हैं तथा हे मनुष्यों ! (येषाम्) जिनके पक्ष में (इन्द्रः) इन्द्र रहता है (ते) वे ही (जयन्ति) विजयी होते हैं ॥५ ॥
भावार्थ
हे मनुष्यों ! धन के निमित्त वही स्तुत्य है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि जिसके पक्ष में ईश्वर होता है, वह अवश्य विजयी होता है, क्योंकि वह सत्य के लिये ही युद्ध करता है ॥५ ॥
विषय
सर्वाध्यक्ष का वर्णन ।
भावार्थ
( हितेषु धनेषु ) हितकारी, कल्याणजनक धनों को प्राप्त करने के निमित्त ( अधिवाकाय ) अध्यक्ष रूप से आज्ञा वा निर्णय वचन कहने वाले अध्यक्ष पद के लिये विद्वान् लोग ( सम् इत् हवन्ते ) उसी से प्रार्थना करते हैं कि हम लोगों के ऊपर विराज कर न्याय निर्णय करे । ( येषाम् इन्द्रः ) जिनके पक्ष में ‘इन्द्र’ सत्य न्याय का द्रष्टा होता है (ते) वे (जयन्ति) विजय प्राप्त करते हैं। वे ही विवादग्रस्त धन के भागी होते हैं।
टिप्पणी
इन्द्रः—इदम अदर्शत इति इन्द्रः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इरिम्बठिः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ९—१२ गायत्री। २—७ निचृद् गायत्री। ८ विराड् गायत्री॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
प्रभु मित्रता में विजय
पदार्थ
[१] (तं इत्) = उस प्रभु को ही (हितेषु धनेषु) = हितकर धनों के निमित्त (अधिवाकाय) = अधिक्येन उपदेश देने के लिये (हवन्ते) = पुकारते हैं। प्रभु ही तो हमें हितकर धनों की प्राप्ति के निमित्त उत्तम ज्ञानोपदेश करते हैं। [२] इस जीवन-संग्राम में (येषां इन्द्रः) = जिनके वे प्रभु हैं (ते जयन्ति) = वे विजयी होते हैं। प्रभु की मित्रता में ही विजय है। प्रकृति की ओर जाना, प्रकृति में फँस जाना ही पराजय का कारण बनता है।
भावार्थ
भावार्थ- हृदयस्थ प्रभु से प्रेरणा को प्राप्त करके ही हम सुपथ से हितकर धनों का अर्जन करनेवाले बनेंगे। जो प्रभु के बनते हैं, वे सदा विजयी होते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
When the call is given and the battle rages, people invoke him for defence, and they win who enjoy the favour and protection of Indra.
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! धनाबाबत तोच स्तुत्य आहे, यात काहीच संशय नाही, ज्याच्या बाजूने ईश्वर आहे तो अवश्य विजयी होतो. कारण तो सत्यासाठीच युद्ध करतो. ॥५॥
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