ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 27
तं त्वा॑ ह॒विष्म॑ती॒र्विश॒ उप॑ ब्रुवत ऊ॒तये॑ । उ॒रु॒ज्रय॑स॒मिन्दु॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । त्वा॒ । ह॒विष्म॑तीः । विशः॑ । उप॑ । ब्रु॒व॒ते॒ । ऊ॒तये॑ । उ॒रु॒ऽज्रय॑सम् । इन्दु॑ऽभिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा हविष्मतीर्विश उप ब्रुवत ऊतये । उरुज्रयसमिन्दुभिः ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । त्वा । हविष्मतीः । विशः । उप । ब्रुवते । ऊतये । उरुऽज्रयसम् । इन्दुऽभिः ॥ ८.६.२७
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 27
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(उरुज्रयसम्) बहुवेगम् (तं, त्वा) तं त्वाम् (हविष्मतीः, विशः) उपायनयुक्ताः प्रजाः (इन्दुभिः) दिव्यपदार्थैर्वर्तमानाः (ऊतये) स्वरक्षायै (उपब्रुवते) उपस्तुवन्ति ॥२७॥
विषयः
पुनस्तस्य महिमा प्रदर्श्यते ।
पदार्थः
हे इन्द्र ! हविष्मतीः=प्रशस्तानि हवींषि पूजासाधनानि सन्त्यासामिति हविष्मत्यः । विशः=जनाः । इन्दुभिः=परमैश्वर्य्यैः । उरुज्रयसम्=विस्तीर्णव्याप्तिनम् । तं सुप्रसिद्धम् । त्वा=त्वाम् । ऊतये=रक्षणाय । उपब्रुवते=मनसा त्वामुपगम्य स्तुवन्ति ॥२७ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(उरुज्रयसम्) अतिवेगवाले (तं, त्वा) उन आपको (हविष्मतीः, विशः) सेवायोग्य पदार्थयुक्त प्रजाएँ (इन्दुभिः) दिव्यपदार्थों को लिये हुए (ऊतये) अपनी रक्षा के लिये (उपब्रुवते) स्तुति कर रही हैं ॥२७॥
भावार्थ
हे सर्वरक्षक तथा सब प्रजाओं के स्वामी परमात्मन् ! आप हमारी सब ओर से रक्षा करें, हम सब प्रजाजन दिव्य पदार्थों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं। हे प्रभो ! हमें शक्ति दें कि हम निरन्तर वेदविहित मार्ग में चलकर अपना जीवन सफल करें ॥२७॥
विषय
पुनः उसकी महिमा दिखलाई जाती है ।
पदार्थ
(हविष्मतीः१) प्रशस्त पूजासामग्रीसंयुक्त (विशः) समस्त मनुष्य (इन्दुभिः) निज परमैश्वर्य्यों से (उरुज्रयसम्) अति विस्तीर्ण और अनन्त (तम्+त्वा) उस तुझको (ऊतये) निज-२ रक्षा के लिये (उपब्रुवते) मन से तेरे निकट पहुँचकर गाते हैं ॥२७ ॥
भावार्थ
जिसके ऐश्वर्य्य से ये पृथिव्यादि लोक हैं, जिसके चलाने से ये चलते हैं, उसी को विद्वान् पूजते हैं । तुम भी उसी की स्तुति करो, यह शिक्षा इससे देते हैं ॥२७ ॥
टिप्पणी
हविष्मती−१−वेदों में हविष् शब्द परम श्रद्धा, भक्ति, विश्वास आदि का द्योतक होता है, परम श्रद्धायुक्त पुरुष को हविष्मान् कहते हैं । “कस्मै देवाय हविषा विधेम” इत्यादि ऋचा में हविष् शब्द का प्रयोग देखिये ॥२७ ॥
विषय
पिता प्रभु । प्रभु और राजा से अनेक स्तुति -प्रार्थनाएं ।
भावार्थ
हे प्रभो ! राजन् ! ( हविष्मतीः विशः ) उत्तम अन्न आदि देने और उपभोग करने योग्य ऐश्वर्यों से सम्पन्न प्रजाएं ( इन्दुभिः ) ऐश्वर्यो सहित ( तं ) उस ( उरु-जयसं त्वा ) महान् बल पराक्रम वाले तुझ को ( उप ऊतये ब्रुवते ) प्राप्त कर अपनी रक्षा के लिये तुझ से प्रार्थना करती हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वत्सः काण्व ऋषिः ॥ १—४५ इन्द्रः। ४६—४८ तिरिन्दिरस्य पारशव्यस्य दानस्तुतिर्देवताः॥ छन्दः—१—१३, १५—१७, १९, २५—२७, २९, ३०, ३२, ३५, ३८, ४२ गायत्री। १४, १८, २३, ३३, ३४, ३६, ३७, ३९—४१, ४३, ४५, ४८ निचृद् गायत्री। २० आर्ची स्वराड् गायत्री। २४, ४७ पादनिचृद् गायत्री। २१, २२, २८, ३१, ४४, ४६ आर्षी विराड् गायत्री ॥
विषय
हविष्मतीः विशः
पदार्थ
[१] (तं त्वा) = उन आप को, हे प्रभो ! (हविष्मतीः विशः) = त्यागपूर्वक अदन करनेवाली प्रजायें (ऊतये) = रक्षा के लिये (उपब्रुवते) = प्रार्थना करती हैं, पुकारती हैं। प्रभु का आराधन हवि के द्वारा होता है, त्यागपूर्वक अदन ही प्रभु की उपासना का साधन है। प्रभु से यह उपासक रक्षित होता है। [२] (उरुज्रयसम्) = महान् बल व वेगवाले प्रभु को (इन्दुभिः) = सोमकणों के रक्षण के हेतु से [उपब्रुवते] पुकारते हैं। प्रभु की उपासना से वासना विनाश द्वारा सोम का रक्षण होता है, यह सुरक्षित सोम उपासक को सबल बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु की उपासना यज्ञशेष के सेवन से होती है। प्रभु उपासक का रक्षण करते हैं। वासनाओं के आक्रमण से बचाकर उसे सोमरक्षण के योग्य बनाते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
People with most exhilarating offers of soma in hand for homage invoke and adore you for protection and advancement, lord omnipresent and ever vibrant in the expansive universe.
मराठी (1)
भावार्थ
हे सर्वरक्षक व सर्व प्रजेचा स्वामी असलेल्या परमेश्वरा, तू आमचे सगळीकडून रक्षण कर. आम्ही सर्व प्रजाजन दिव्य पदार्थांद्वारे तुझी स्तुती करतो. हे प्रभो, आम्हाला शक्ती दे की आम्ही निरंतर वेदविहित मार्गाने चालून आपले जीवन सफल करावे. ॥२७॥
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