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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 9
    ऋषिः - वत्सः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र तमि॑न्द्र नशीमहि र॒यिं गोम॑न्तम॒श्विन॑म् । प्र ब्रह्म॑ पू॒र्वचि॑त्तये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । तम् । इ॒न्द्र॒ । न॒शी॒म॒हि॒ । र॒यिम् । गोऽम॑न्तम् । अ॒श्विन॑म् । प्र । ब्रह्म॑ । पू॒र्वऽचि॑त्तये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र तमिन्द्र नशीमहि रयिं गोमन्तमश्विनम् । प्र ब्रह्म पूर्वचित्तये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । तम् । इन्द्र । नशीमहि । रयिम् । गोऽमन्तम् । अश्विनम् । प्र । ब्रह्म । पूर्वऽचित्तये ॥ ८.६.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 9
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (गोमन्तम्) भास्वरम् (अश्विनम्) व्यापकम् (तम्, रयिम्) तादृशं धनम् (प्रनशीमहि) प्राप्नवाम (पूर्वचित्तये) अनादित्वज्ञानाय (ब्रह्म) वेदं च (प्र) प्राप्नवाम ॥९॥

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    विषयः

    पुनरपीन्द्रः प्रार्थ्यते ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र=परमैश्वर्य्यशालिन् महेश ! वयं तम्=सुप्रसिद्धम् । गोमन्तम्=प्रशस्तगोपशुसहितम् । यद्वा । प्रशस्तज्ञान- कर्मेन्द्रिययुक्तम् । गाव इन्द्रियाणि प्रशस्ता गाव इन्द्रियाणि अस्येति गोमान् तम् । पुनः । अश्विनमश्वैर्युक्तम् । यद्वा । वशीभूतमनोऽश्वसंयुतम् । अश्नुते सर्वाणीन्द्रियाणि व्याप्नोतीत्यश्वो मनः । सोऽस्यास्तीत्यश्विनम् । ईदृशं रयिम्=धनम् । त्वत्कृपया । प्र+नशीमहि=प्राप्नुयाम । अपि च । पूर्वचित्तये=पूर्णप्रज्ञानाय । ब्रह्म=बृहन्तं वेदम् । यद्वा । स्तोत्रशक्तिम् । प्र=प्रकर्षेण प्राप्नुयाम ॥९ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! हम (गोमन्तम्) भास्वर और (अश्विनम्) व्यापक (तं, रयिम्) ऐसे धन को (प्र, नशीमहि) प्राप्त करें और (पूर्वचित्तये) अनादि ज्ञान के लिये (ब्रह्म) वेद (प्र) प्राप्त करें ॥९॥

    भावार्थ

    हे परमपिता परमात्मन् ! आप ऐसी कृपा करें कि हम अपने कल्याणार्थ उत्तमोत्तम धन लाभ करें और अनादि ज्ञान का भण्डार जो वेद है, वह हमको प्राप्त हो, जिसके आश्रित कर्मों का अनुष्ठान करते हुए ऐश्वर्य्य प्राप्त करने के अधिकारी बनें, यह हमारी प्रार्थना है ॥९॥

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    विषय

    पुनरपि इन्द्र की प्रार्थना करते हैं ।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे परमैश्वर्य्यशाली महेश ! हम उपासकगण (तम्) उस सुप्रसिद्ध (गोमन्तम्) गवादिपशुयुक्त, यद्वा प्रशस्तेन्द्रियुक्त तथा (अश्विनम्) अश्वों से संयुक्त, यद्वा प्रशस्तमनोयुक्त (रयिम्) धन को आपकी कृपा से (प्र+नशीमहि) अच्छे प्रकार प्राप्त करें । तथा (पूर्वचित्तये) पूर्ण ज्ञान के लिये (ब्रह्म) बृहत् वेद को यद्वा स्तोत्रशक्ति को प्राप्त करें ॥९ ॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यों ! गौ और अश्व आदि धन पाकर निज और दूसरों का उपकार करें, यह इसका आशय है ॥९ ॥

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    विषय

    विद्वानों के और कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्य के दाता ! हम ( तम् ) उस ( गोमन्तं रयिम् ) गौओं से युक्त सम्पत्ति, इन्द्रियों से युक्त देह और वाणियों से युक्त ज्ञान और ( अश्विनम् ) अश्वों से युक्त सैन्य बल को ( प्र नशीमहि ) अच्छी प्रकार प्राप्त करें। इसी प्रकार हम ( पूर्व-चित्तये ) सब से पूर्व विद्यमान एवं पूर्ण ब्रह्म के ज्ञान के लिये ( गोमत् ब्रह्म ) वाणियों से युक्त ब्रह्म = वेद ज्ञान को ( प्र नशीमहि ) अच्छी प्रकार प्राप्त करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वत्सः काण्व ऋषिः ॥ १—४५ इन्द्रः। ४६—४८ तिरिन्दिरस्य पारशव्यस्य दानस्तुतिर्देवताः॥ छन्दः—१—१३, १५—१७, १९, २५—२७, २९, ३०, ३२, ३५, ३८, ४२ गायत्री। १४, १८, २३, ३३, ३४, ३६, ३७, ३९—४१, ४३, ४५, ४८ निचृद् गायत्री। २० आर्ची स्वराड् गायत्री। २४, ४७ पादनिचृद् गायत्री। २१, २२, २८, ३१, ४४, ४६ आर्षी विराड् गायत्री ॥

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    विषय

    'गोमान् अश्वी' रयि

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (तं रयिम्) = उस ज्ञानैश्वर्य को व धन को हम (प्र नशीमहि) = प्राप्त करें, जो (गोमन्तम्) = प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाला है तथा (अश्विनम्) = प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाला है । हम धन का इस प्रकार से विनियोग करें कि वह इन्द्रियों को प्रशस्त ही बनानेवाला हो। किसी प्रकार से इन्द्रियों की शक्ति में जीर्णता न आ जाये। [२] हम ब्रह्म परमात्मा को प्र= [ नशीमहि ] प्राप्त करें ताकि पूर्वचित्तये हम उस चेतना व ज्ञान के लिये हों जो हमारा पालन व पूरण करता है । हृदयस्थ ब्रह्म ने ही तो हमें यह ज्ञान देना है।

    भावार्थ

    भावार्थ-धन का हम ऐसा विनियोग करें कि हमारी इन्द्रियाँ प्रशस्त शक्तिवाली ही बनें। ब्रह्म का ध्यान करें, ये प्रभु ही उस चेतना को प्राप्त करायेंगे, जो हमारा पूरण करनेवाली होगी।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of light and power, pray let us realise that wealth and honour of earthly character overflowing with motherly generosity and superfast achievement which is the prologue to perfect realisation of the nature and divinity of the ultimate reality of Brahman.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे परमपिता परमात्मा! तू अशी कृपा कर की आम्हाला आमच्या कल्याणासाठी उत्तमोत्तम धनाचा लाभ मिळावा व अनादि ज्ञानाचा कोश वेद आम्हाला प्राप्त व्हावा. ज्याच्या आश्रित होऊन कर्माचे अनुष्ठान करत ऐश्वर्य प्राप्त करण्याचा अधिकारी बनावे हीच आमची प्रार्थना आहे. ॥९॥

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