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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 64 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 64/ मन्त्र 6
    ऋषिः - प्रगाथः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    व॒यमु॑ त्वा॒ दिवा॑ सु॒ते व॒यं नक्तं॑ हवामहे । अ॒स्माकं॒ काम॒मा पृ॑ण ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒यम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । दिवा॑ । सु॒ते । व॒यम् । नक्त॑म् । ह॒वा॒म॒हे॒ । अ॒स्माक॑म् । काम॑म् । आ । पृ॒ण॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वयमु त्वा दिवा सुते वयं नक्तं हवामहे । अस्माकं काममा पृण ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वयम् । ऊँ इति । त्वा । दिवा । सुते । वयम् । नक्तम् । हवामहे । अस्माकम् । कामम् । आ । पृण ॥ ८.६४.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 64; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 44; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    We singers, celebrants and yajakas, invoke and invite you in our soma yajna in the day and in the night and pray fulfil our prayer and desire for humanity and divinity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जेव्हा वेळ असेल तेव्हाच ईश्वराची प्रार्थना करावी व त्याला आपले अभीष्ट सांगावे ॥६॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! दिवा=दिने । नक्तम्=रात्रौ च । सुते=शुभकर्मणि । वयं हि त्वां हवामहे । त्वमस्माकं कामम् । आपृण=आपूरय ॥६ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    हे भगवन् ! (वयम्) हम उपासकगण (उ) निश्चय करके (दिवा) दिन में (सुते) शुभकर्म के समय (त्वा+हवामहे) तेरा आवाहन, प्रार्थना और स्तुति करते हैं और (वयम्+नक्तम्) हम सब रात्रिकाल में भी तेरी स्तुति करते हैं, इस कारण (अस्माकम्) हम लोगों की (कामम्) इच्छा को (आ+पृण) पूर्ण कर ॥६ ॥

    भावार्थ

    जब समय हो, तब ही ईश्वर की प्रार्थना करे और उससे अपना अभीष्ट निवेदन करे ॥६ ॥

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    विषय

    विद्वान् के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे राजन् ! विद्वन् ! ( सुते ) ऐश्वर्ययुक्त अभिषेचनीय पद के लिये, (त्वा ) तुझे ( वयम् उ ) हम ( दिवा नक्तम् ) दिन रात ( हवामहे ) प्रार्थना करते हैं (अस्माकं कामम् आपृण) हमारी कामना को पूर्ण कर। इति चतुश्चत्वारिंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रगाथः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ७, ९ निचृद् गायत्री। ३ स्वराड् गायत्री। ४ विराड् गायत्री। २, ६, ८, १०—१२ गायत्री। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    प्रभुस्मरण से सोमरक्षण

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो ! (वयम्) = हम (उ) = निश्चय से (त्वा) = आपको (सुते) = शरीर में सोम का सम्पादन करने पर (दिवा) = दिन में (हवामहे) = पुकारते हैं। (नक्तं) = रात में भी वयं हम आपका आह्वान करते हैं। आपका आराधन ही वस्तुतः हमें सोमरक्षण के योग्य बनाता है। [२] (अस्माकं कामं आपृण) = आप हमारी कामना को पूर्ण करिये।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभुस्मरण करते हुए हम सोम का रक्षण करें। इस प्रकार सब उन्नतियों को सिद्ध कर पाएँ।

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