ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 98/ मन्त्र 11
त्वं हि न॑: पि॒ता व॑सो॒ त्वं मा॒ता श॑तक्रतो ब॒भूवि॑थ । अधा॑ ते सु॒म्नमी॑महे ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । हि । नः॒ । पि॒ता । व॒सो॒ इति॑ । त्वम् । म॒ता । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । ब॒भूवि॑थ । अध॑ । ते॒ । सु॒म्नम् । ई॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं हि न: पिता वसो त्वं माता शतक्रतो बभूविथ । अधा ते सुम्नमीमहे ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । हि । नः । पिता । वसो इति । त्वम् । मता । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । बभूविथ । अध । ते । सुम्नम् । ईमहे ॥ ८.९८.११
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 98; मन्त्र » 11
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of infinite action, shelter home of the world and wealth of existence, you are our father, you our mother, and to you, we pray for love and peace, good will and grace.
मराठी (1)
भावार्थ
चहुकडून साधन उपलब्ध करून वसविणारा पिता व संपूर्ण देखरेख करून शरीर व चरित्र निर्माण करणारी माता हे दोन्हीही पुत्राच्या सुखाची निर्मिती करतात. परमेश्वरात या दोन्ही शक्ती निहित आहेत. त्यांच्याद्वारे तो संपूर्ण जगाला सुख देणारा आहे. ॥११॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे (वसो) वासदाता परमेश्वर! (त्वं हि) आप ही (नः) हम सबके (पिता) पालक तथा हे (शतक्रतो) विविध प्रज्ञा तथा कर्मविशिष्ट प्रभो! आप ही हमारे (माता) निर्माणकर्ता (बभूविथ) होते हैं। (अध) इसीलिए (ते) आप से (सुम्नम्) सुख की (ईमहे) कामना करते हैं॥११॥
भावार्थ
चतुर्दिक् से साधन जुटाकर बसानेवाला पिता तथा सारी देख-रेख कर शरीर व चरित्र का निर्माण करनेवाली माता--ये दोनों ही--पुत्र को सुख देने वाले होते हैं। प्रभु में ये दोनों शक्तियाँ निहित हैं, इनसे ही वह सकल संसार को सुख देता है॥११॥
विषय
पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (वसो) सब के पिता, सबको बसाने हारे, सब में व्यापक ! हे ( शत-क्रतो ) अपरिमित ज्ञान और कर्मों वाले ! (त्वं हि नः पिता) तू निश्चय से हमारा पिता और ( त्वं माता बभूविथ ) तू ही हमारी माता होती है। (अध) इसी कारण हम ( ते सुम्नम् ईमहे ) तेरे से सुख की याचना करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नृमेध ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५ उष्णिक्। २, ६ ककुम्मती उष्णिक्। ३, ७, ८, १०—१२ विराडष्णिक्। ४ पादनिचदुष्णिक्। ९ निचृदुष्णिक्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
सुम्नम्
पदार्थ
[१] हे (वसो) = सब को अपने में बसानेवाले प्रभो ! (त्वं हि) = आप ही (नः पिता) = हमारे पिता हैं। हे (शतक्रतो) = अनन्त सामर्थ्य व प्रज्ञानवाले प्रभो ! (त्वम्) = आप ही हमारी माता (बभूविथ) = माता हैं। [२] (अधा) = सो अब (ते) = आप से ही (सुम्नम्) = सब सुखों की (ईमहे) = याचना करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हे प्रभो! आप ही हमारे पिता हैं, आप ही माता हैं, आप से ही हम सब सुखों की याचना करते हैं।
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