ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 13/ मन्त्र 2
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
पव॑मानमवस्यवो॒ विप्र॑म॒भि प्र गा॑यत । सु॒ष्वा॒णं दे॒ववी॑तये ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मानम् । अ॒व॒स्य॒वः॒ । विप्र॑म् । अ॒भि । प्र । गा॒य॒त॒ । सु॒ष्वा॒णम् । दे॒वऽवी॑तये ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानमवस्यवो विप्रमभि प्र गायत । सुष्वाणं देववीतये ॥
स्वर रहित पद पाठपवमानम् । अवस्यवः । विप्रम् । अभि । प्र । गायत । सुष्वाणम् । देवऽवीतये ॥ ९.१३.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अवस्यवः) हे सदुपदेशेन प्रजा रिरिक्षवो विद्वांसः ! भवन्तः (देववीतये) दिव्यैश्वर्यप्राप्तये (सुष्वाणम्) सर्वेषां प्रेरकम् (पवमानम्, विप्रम्) सर्वेषां पावयितारं पूर्णपुरुषम् (अभि, प्र, गायत) स्तुवन्तु ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अवस्यवः) हे उपदेश द्वारा प्रजा की रक्षा चाहनेवाले विद्वानों ! आप (देववीतये) दिव्य ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये (सुष्वाणम् पवमानम् विप्रम्) सबको पवित्र करनेवाले पूरण परमात्मा का (अभि प्र गायत) तुम गान करो ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे विद्वानों ! तुम उस पुरुष की उपासना करो, जो सर्वप्रेरक है और सबको पवित्र करनेवाला है और व्यापकरूप से सर्वत्र स्थिर है ॥२॥
विषय
सोम-गुण-गायन
पदार्थ
[१] हे (अवस्यवः) = रक्षण की कामनावाले पुरुषो! (पवमानम्) = जीवन को पवित्र बनानेवाले (विप्रम्) = तुम्हारा विशेषरूप से पूरण करनेवाले (सुष्वाणम्) = इस ऐश्वर्य के कारणभूत सोम [षू ऐश्वर्य] का (अभि प्रगायत) = गायन करो। इसके गुणों का गायन करने से इसके रक्षण की वृत्ति तुम्हारे में उत्पन्न होगी। [२] इसके गुणों का गायन इसलिए करो कि यह उत्पन्न हुआ हुआ देववीतये दिव्य गुणों की प्राप्ति के लिये होता है । सोम के रक्षण से दिव्य गुणों का विकास होता है ।
भावार्थ
भावार्थ-रक्षित हुआ हुआ सोम हमारा रक्षण करता है, यह दिव्य गुणों के विकास के लिये होता है।
विषय
विद्वान् का अध्यक्ष पद पर स्थापन।
भावार्थ
हे (अवस्यवः) ज्ञान, प्रीति और रक्षा चाहने वाले प्रजागण आप लोग (देव-वीतये) ज्ञान और धन के देने वाले पुरुष को प्राप्त करने के लिये (पवमानं सुष्वाणम्) ज्ञान, शासन द्वारा पवित्र करने वाले और ऐश्वर्यादि प्रदान करने वाले (विप्रम्) विद्वान्, बुद्धिमान् की (अभि प्र गायत) उत्तम स्तुति-अर्चना करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः—१— ३, ५, ८ गायत्री। ४ निचृद् गायत्री। ६ भुरिग्गायत्री। ७ पादनिचृद् गायत्री। ९ यवमध्या गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O seekers of energy, power and protection, sing and adore the soma of existence, lord creator and energiser, pure and purifying, omniscient giver of knowledge and wisdom, for the sake of divine excellence and felicity in life.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की हे विद्वानांनो! जो सर्व प्रेरक आहे अशा पुरुषाची उपासना करा. तो सर्वांना पवित्र करणारा आहे व व्यापक रूपाने सर्वत्र स्थिर आहे. ॥२॥
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