ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 13/ मन्त्र 3
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
पव॑न्ते॒ वाज॑सातये॒ सोमा॑: स॒हस्र॑पाजसः । गृ॒णा॒ना दे॒ववी॑तये ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑न्ते । वाज॑ऽसातये । सोमाः॑ । स॒हस्र॑ऽपाजसः । गृ॒णा॒नाः । दे॒वऽवी॑तये ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवन्ते वाजसातये सोमा: सहस्रपाजसः । गृणाना देववीतये ॥
स्वर रहित पद पाठपवन्ते । वाजऽसातये । सोमाः । सहस्रऽपाजसः । गृणानाः । देवऽवीतये ॥ ९.१३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
उक्ता विद्वांसः (देववीतये) ऐश्वर्यलाभाय (गृणानाः) स्तुतिं कुर्वाणाः (सहस्रपाजसः) विविधबलसहिताः (सोमाः) सौम्यस्वभाववन्तः (वाजसातये) धर्मयुद्धेषु (पवन्ते) पुनन्ति अस्मान् ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
उक्त विद्वान् (देववीतये) ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये (गृणानाः) स्तुति करते हुए (सहस्रपाजसः) अनन्त प्रकार के बलोंवाले (सोमाः) सौम्य स्वभाववाले (वाजसातये) धर्मयुद्धों में (पवन्ते) हमको पवित्र करते हैं ॥३॥
भावार्थ
जो लोग ईश्वर पर विश्वास रख कर अनन्त प्रकार के कला-कौशलादि बलों से सम्पन्न होते हैं, वे ही सब प्रजा को पवित्र करते हैं अर्थात् अपने ज्ञान से प्रजा की रक्षा करते हैं ॥३॥
विषय
वाजसातये-देववीतये
पदार्थ
[१] (सहस्रपाजस:) = अनन्त शक्तियोंवाले (सोमाः) = ये सोमकण (वाजसातये) = शक्ति की प्राप्ति के लिये (पवन्ते) = हमें प्राप्त होते हैं। इनके रक्षण से शक्ति सम्पन्न होकर हम जीवन-संग्राम में सदा विजयी बनते हैं । [२] (गृणाना:) = स्तुति किये जाते हुए ये सोमकण (देववीतये) = दिव्य गुणों की प्राप्ति के लिये व अन्ततः प्रभु की प्राप्ति के लिये होते हैं। सोम के स्तवन का भाव यही है कि हम इनके गुणों का रक्षण करें। इनके गुणों का स्मरण हमें इनके रक्षण के लिये प्रेरित करता है । रक्षित हुए हुए ये हमारे अन्दर दिव्य गुणों का वर्धन करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हम जीवन-संग्राम में विजयी बनते हैं और दिव्य गुणों की प्राप्ति करनेवाले होते हैं ।
विषय
विद्वानों का पवित्र कर्त्तव्य सर्व-साधारण को उपदेश करना।
भावार्थ
(देव-वीतये) शुभ गुणों के प्रकाश करने और ज्ञानेच्छुक जनों की रक्षा के लिये और (वाज-सातये) ज्ञान संविभाग करने और ऐश्वर्य की वृद्धि के लिये, (सोमाः) उत्तम विद्वान् जन, (सहस्र-पाजशः) सहस्रों बलों वा ज्ञानों से सम्पन्न हो कर (गृणानाः) उपदेश देते हुए (पवन्ते) सब को पवित्र करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः—१— ३, ५, ८ गायत्री। ४ निचृद् गायत्री। ६ भुरिग्गायत्री। ७ पादनिचृद् गायत्री। ९ यवमध्या गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The Soma streams of life’s felicity flow in a thousand ways of energy, power and divine inspiration, doing honour to the lord of glory and bliss, refining and purifying us for favour of the divinities and for winning victories of honour and excellence in life.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक ईश्वरावर विश्वास ठेवून अनंत प्रकारचे कलाकौशल्य इत्यादी बलांनी संपन्न होतात तेच सर्व प्रजेला पवित्र करतात. अर्थात आपल्या ज्ञानाने प्रजेचे रक्षण करतात. ॥३॥
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