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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 13/ मन्त्र 7
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - पादनिचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    वा॒श्रा अ॑र्ष॒न्तीन्द॑वो॒ऽभि व॒त्सं न धे॒नव॑: । द॒ध॒न्वि॒रे गभ॑स्त्योः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वा॒श्राः । अ॒र्ष॒न्ति॒ । इन्द॑वः । अ॒भि । व॒त्सम् । न । धे॒नवः॑ । द॒ध॒न्वि॒रे । गभ॑स्त्योः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वाश्रा अर्षन्तीन्दवोऽभि वत्सं न धेनव: । दधन्विरे गभस्त्योः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वाश्राः । अर्षन्ति । इन्दवः । अभि । वत्सम् । न । धेनवः । दधन्विरे । गभस्त्योः ॥ ९.१३.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 13; मन्त्र » 7
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (धेनवः) इन्द्रियाणि (न) यथा (वत्सम्) स्वं प्रियार्थमभियान्ति तथैव (वाश्राः) सर्वशास्त्रयोनिः (इन्दवः) परमात्मा (अभ्यर्षन्ति) स्वोपासकमभियाति (गभस्त्योः) स्वप्रकाशं (दधन्विरे) वितनोति च ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (धेनवः) इन्द्रियें (न) जिस प्रकार (वत्सम्) अपने प्रिय अर्थ की और जाती हैं, उसी प्रकार (वाश्राः) जो वेदादि शास्त्रों की योनि है, (इन्दवः) वह परमात्मा (अभ्यर्षन्ति) अपने उपासक की ओर जाता है (गभस्त्योः दधन्विरे) और सर्वत्र अपना प्रकाश फैलाता है ॥७॥

    भावार्थ

    उपासक पुरुष जब शुद्ध हृदय से ईश्वर की उपासना करता है, तो ईश्वर का प्रकाश उसको आकर प्रकाशित करता है। ‘उपास्यतेऽनेनेत्युपासनम्’ जिससे ईश्वर की समीपता लाभ की जाय, उस कर्म का नाम उपासन कर्म है। समीपता के अर्थ यहाँ ज्ञान द्वारा समीप होने के हैं, किसी देश द्वारा समीप होने के नहीं, इसलिये जब परमात्मा ज्ञान द्वारा समीप होता है, तो उसका प्रकाश उपासक के हृदय को अवश्यमेव प्रकाशित करता है ॥७॥

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    विषय

    प्रभु की ओर

    पदार्थ

    [१] (वाश्रा:) = शब्द करती हुई (धेनवः) = गौवें (न) = जैसे (वत्सं अभि) = बछड़े की ओर (अर्षन्ति) = गति करती हैं [reach towards ] इसी प्रकार (वाश्राः) = प्रभु की स्तुतियों का उच्चारण करते हुए (इन्दवः) = ये सोमकण (वत्सम्) = [ वदति इति] वेदवाणी का उच्चारण करनेवाले प्रभु की (अभि) = ओर (अर्षन्ति) = गतिवाले होते हैं । अर्थात् प्रभु स्तवन की वृत्ति के होने पर सोम शरीर में सुरक्षित रहते हैं [वाश्राः इन्दवः] । सोमरक्षण से प्रभु की ओर झुकाव अधिक होता है । यह रक्षित सोम ही हमें प्रभु को प्राप्त कराता है। [२] रक्षित हुए-हुए ये सोमकण (गभस्त्योः) = भुजाओं में (दधन्विरे) = धारण किये जाते हैं । बाहुओं के अन्दर ये सोमकण ही शक्ति का स्थापन करनेवाले होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ-रक्षित सोम हमें प्रभु की ओर ले चलते हैं और शक्तिशाली बनाते हैं।

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    विषय

    माता और बच्चे के दृष्टान्त से अध्यक्षों का प्रजा के प्रति रक्षा का कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (वाश्राः धेनवः वत्सं अभि न) हंभारने वाली गौएं जिस प्रकार बछड़े के प्रति प्रेम से आकृष्ट होती हैं और (धेनवः वत्सं न) जिस प्रकार दूध पिलाने वाली माताएं (वत्सं अभि अर्षन्ति) अपने बच्चे के प्रति जाती हैं और वे (गभस्त्योः दधन्विरे) उसे अपने बाहुओं में ले लेती हैं उसी प्रकार (इन्दवः) स्नेह से आर्द्र हृदय वाले, दयालु (वाश्राः) उत्तम उपदेष्टा जन बसे हुए प्रजा जन के पास (अभि अर्षन्ति) जाते हैं और उन को (गभस्त्योः) अपनी बाहुओं के शासन में (दधन्विरे) धारण करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः—१— ३, ५, ८ गायत्री। ४ निचृद् गायत्री। ६ भुरिग्गायत्री। ७ पादनिचृद् गायत्री। ९ यवमध्या गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Loving showers of divine light, peace and protection flow to the supplicants as mother cows move to the calf and are held by the dedicated in love and faith.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    उपासक जेव्हा शुद्ध हृदयाने ईश्वराची उपासना करतो तेव्हा ईश्वराचा प्रकाश त्याला प्रकाशित करतो. ‘उपास्यतेऽनेनेत्युपासनम्’ ज्यामुळे ईश्वराच्या समीपतेचा लाभ होतो त्या कर्माचे नाव उपासना कर्म आहे. समीपतेचा अर्थ येथे ज्ञानाची समीपता आहे. एखाद्या स्थानाच्या समीपतेचा नाही त्यामुळे जेव्हा परमात्मा ज्ञानाद्वारे समीप असतो तेव्हा त्याचा प्रकाश उपासकाच्या हृदयाला अवश्य प्रकाशित करतो. ॥७॥

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