ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 13/ मन्त्र 8
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
जुष्ट॒ इन्द्रा॑य मत्स॒रः पव॑मान॒ कनि॑क्रदत् । विश्वा॒ अप॒ द्विषो॑ जहि ॥
स्वर सहित पद पाठजुष्टः॑ । इन्द्रा॑य । म॒त्स॒रः । पव॑मान । कनि॑क्रदत् । विश्वाः॑ । अप॑ । द्विषः॑ । ज॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
जुष्ट इन्द्राय मत्सरः पवमान कनिक्रदत् । विश्वा अप द्विषो जहि ॥
स्वर रहित पद पाठजुष्टः । इन्द्राय । मत्सरः । पवमान । कनिक्रदत् । विश्वाः । अप । द्विषः । जहि ॥ ९.१३.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 13; मन्त्र » 8
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्राय) यो धर्मवतां विदुषां (जुष्टः) सहचरोऽस्ति (मत्सरः) यश्च न्यायमदेन मत्तश्च सः (पवमानः) सर्वस्य पावयिता (कनिक्रदत्) सर्वेभ्यः सदुपदेशदाता (विश्वा) कृत्स्नानि (अप द्विषः जहि) मम रागद्वेषानि नाशयतु सः ॥८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्राय) जो धर्मप्रिय विद्वानों का (जुष्टः) संगी है (मत्सरः) जो न्यायरूपी मद से मत्त है, वह (पवमानः) सबको पवित्र करनेवाला (कनिक्रदत्) सबको सदुपदेशदाता (विश्वा) सम्पूर्ण (अप द्विषः जहि) जो हमारे द्वेषादि हैं, उनको नाश करे ॥८॥
भावार्थ
जो लोग ईश्वरपरायण होकर अपनी जीवनयात्रा करते हैं, परमात्मा उन के राग-द्वेषादि भावों को निवृत्त करता है ॥८॥
विषय
द्वेष-निराकरण
पदार्थ
[१] हे (पवमान) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले सोम ! तू (जुष्टः) = प्रीतिपूर्वक सेवित हुआ हुआ (इन्द्राय) = इस जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (मत्सरः) = हर्ष के संचार को करनेवाला होता है । सोमरक्षण से जीवन में उल्लास की वृद्धि होती है । [२] हे सोम ! (कनिक्रदत्) = प्रभु के नामों का निरन्तर उच्चारण करता हुआ तू (विश्वाः द्विषः) = सब द्वेष की भावनाओं को (अपजहि) = सुदूर विनष्ट कर। सोमरक्षण से प्रभु स्मरण की वृत्ति उत्पन्न होती है और द्वेष की भावनायें दूर होती हैं।
भावार्थ
भावार्थ-रक्षित सोम [क] उल्लास को पैदा करता है, [ख] हमारे मनों को प्रभु-प्रवण करता है, [ग] द्वेष को दूर करता है।
विषय
अध्यक्ष का दुष्टदमन करने का कर्त्तव्य।
भावार्थ
(मत्सरः) सब को सन्तुष्ट करने में समर्थ पुरुष (इन्द्राय जुष्टः) ऐश्वर्यवान् शासक राजा आदि के पद के लिये नियुक्त हो। वह (पवमानः) वहां अभिषिक्त होकर (कनिक्रदत्) शासन करे। और वह (विश्वा) समस्त (द्विषः अप जहि) शत्रुओं को दण्डित करके दूर करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः—१— ३, ५, ८ गायत्री। ४ निचृद् गायत्री। ६ भुरिग्गायत्री। ७ पादनिचृद् गायत्री। ९ यवमध्या गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Let the pure and purifying showers of soma in divine flow, dedicated to omnipotence and to humanity in love roar as a cloud of rain showers, and, O roaring showers, throw out all jealousies and enmities of the world far away from us.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक ईश्वरपरायण बनून आपली जीवनयात्रा चालवितात, त्यांचे राग, द्वेष इत्यादी भाव परमात्मा नाहीसे करतो. ॥८॥
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