ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 13/ मन्त्र 6
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - भुरिग्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अत्या॑ हिया॒ना न हे॒तृभि॒रसृ॑ग्रं॒ वाज॑सातये । वि वार॒मव्य॑मा॒शव॑: ॥
स्वर सहित पद पाठअत्याः॑ । हि॒या॒नाः । न । हे॒तृऽभिः॑ । असृ॑ग्रम् । वाज॑ऽसातये । वि । वार॑म् । अव्य॑म् । आ॒शवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अत्या हियाना न हेतृभिरसृग्रं वाजसातये । वि वारमव्यमाशव: ॥
स्वर रहित पद पाठअत्याः । हियानाः । न । हेतृऽभिः । असृग्रम् । वाजऽसातये । वि । वारम् । अव्यम् । आशवः ॥ ९.१३.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 13; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अत्याः) सर्वत्र वर्तमानः (हियानाः) स्तूयमानः (हेतृभिः न) शीघ्रगामिविद्युदादिशक्तिरिव (वाजसातये) धर्मयुद्धेषु (असृग्रम्) रक्षतु नः (विवारम् आशवः) यद्द्रुतमज्ञानं विनाश्य ज्ञानस्य प्रकाशकः (अव्यम्) सर्वेषां रक्षकश्च तमुपास्महे ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अत्याः) “अतति सर्वमित्यत्यः” जो सर्वत्र परिपूर्ण हो, उसका नाम अत्य है (हियानाः) प्रार्थना किया गया (हेतृभिः) शीघ्रगामी विद्युदादि शक्तियों के (न) समान (वाजसातये) धर्मयुद्धों में (असृग्रम्) हमारी रक्षा करे (विवारम् आशवः) जो शीघ्र ही अज्ञान को नाश करके ज्ञान का प्रकाश करनेवाला और (अव्यम्) सब का रक्षक है, उसकी हम उपासना करते हैं ॥६॥
भावार्थ
जो पुरुष ज्ञानस्वरूप परमात्मा की उपासना करते हैं और एकमात्र उसी का भरोसा रखते हैं, वे धर्मयुद्धों में सदैव विजयी होते हैं ॥६॥
विषय
अव्यवार [रक्षण में उत्तम युद्ध]
पदार्थ
[१] (न) = जैसे (हेतृभिः) = प्रेरकों से (हियाना:) = प्रेरित किये जाते हुए (अत्या:) = सतत गमनशील अश्व (वाजसातये) = संग्राम के लिये (असृग्रम्) = सृष्ट होते हैं, उसी प्रकार ये सोम प्राणायाम के द्वारा शरीर में प्रेरित होते हुए (वाजसातये) = शक्ति की प्राप्ति के लिये (वि असृग्रम्)= विशेषरूप से सृष्ट होते हैं । [२] (आशवः) = 'अशू व्याप्तौ ' शरीर में व्याप्त होनेवाले ये सोम (अव्यम्) = रक्षण में उत्तम (वारम्) = [war] युद्ध को लक्ष्य करके (असृग्रम्) = सृष्ट किये जाते हैं। शरीर में सृष्ट हुए हुए ये रोगकृमियों के साथ युद्ध करके रोगकृमियों का संहार करते हैं। तथा ये शरीर में सुरक्षित होने पर ये 'ईर्ष्या-द्वेष-क्रोध' आदि की वृत्तियों को भी विनष्ट करते हैं और इस प्रकार जीवन को पवित्र बनाते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम रोगकृमियों व वासनाओं का संग्राम में पराजय करके हमारे जीवनों को उत्तम बनाते हैं ।
विषय
तीव्रवेग अश्वों के समान वीरों, विद्वानों का कर्त्तव्य।
भावार्थ
(वाज-सातये) संग्राम में लड़ने के लिये जिस प्रकार (आशवः) तीव्र वेग से जाने वाले (अत्याः) अश्व गण (हेतृभिः हियानः) प्रेरक सारथियों से प्रेरित होकर (अव्यं वारम्) भूमि के पार (असृग्रम्) वेग से जाते हैं उसी प्रकार (हेतृभिः) धारक पोषक गुरुओं से (हियानाः) प्रेरित वा शासित होकर (वाज-सातये) ज्ञान-ऐश्वर्य को प्राप्त करने और अन्यों में प्रचारित, विभाजित, दान करने के लिये (आशवः) शीघ्रकारी, कुशल जन (अव्यं वारम् वि असृग्रम्) रक्षक के वरणीय पद को प्राप्त हों।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः—१— ३, ५, ८ गायत्री। ४ निचृद् गायत्री। ६ भुरिग्गायत्री। ७ पादनिचृद् गायत्री। ९ यवमध्या गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The showers of soma, blessings of the lord of peace and protection, like fastest forces electrified to omnipresence by urgent masters, reach to places and people that need light and protection against ignorance and darkness.
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे ज्ञानस्वरूप परमेश्वराची उपासना करतात व एकमेव परमेश्वरावर विश्वास ठेवतात ती धर्मयुद्धात सदैव विजयी होतात. ॥६॥
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