ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 13/ मन्त्र 5
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
ते न॑: सह॒स्रिणं॑ र॒यिं पव॑न्ता॒मा सु॒वीर्य॑म् । सु॒वा॒ना दे॒वास॒ इन्द॑वः ॥
स्वर सहित पद पाठते । नः॒ । स॒ह॒स्रिण॑म् । र॒यिम् । पव॑न्ताम् । आ । सु॒ऽवीर्य॑म् । सु॒वा॒नाः । दे॒वासः॑ । इन्द॑वः ॥
स्वर रहित मन्त्र
ते न: सहस्रिणं रयिं पवन्तामा सुवीर्यम् । सुवाना देवास इन्दवः ॥
स्वर रहित पद पाठते । नः । सहस्रिणम् । रयिम् । पवन्ताम् । आ । सुऽवीर्यम् । सुवानाः । देवासः । इन्दवः ॥ ९.१३.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 13; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दवः) परमैश्वर्यवान् परमात्मा (देवासः) दिव्यशक्तिः (सुवानाः) सर्वेषामुत्पादकः (सुवीर्यम्) पर्याप्तं पराक्रमं (आ पवन्ताम्) सम्यग् ददातु तथा (ते) सः (सहस्रिणम्) अनेकविधम् (रयिम्) ऐश्वर्यम् (नः) अस्मभ्यं प्रयच्छतु ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दवः) परमैश्वर्ययुक्त परमात्मा (देवासः) दिव्य शक्तिवाला (सुवानाः) सबको उत्पन्न करनेवाला (सुवीर्यम्) सुन्दर बल को (आ पवन्ताम्) भली भाँति हमको देय और (ते) वह (सहस्रिणम्) अनन्त प्रकार के (रयिम्) ऐश्वर्य को (नः) हमको देय ॥५॥
भावार्थ
यहाँ ‘व्यत्ययो बहुलम्’ इस सूत्र से एकवचन के स्थान में बहुवचन हुआ है, इसलिये ईश्वर का ही ग्रहण समझना चाहिये, किसी अन्य का नहीं ॥५॥१॥
विषय
सुवीर्य रयि
पदार्थ
[१] (ते) = वे सोम (नः) = हमारे लिये (सहस्रिणम्) = सहस्र संख्यावाले (रयिम्) = ऐश्वर्य को तथा (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति को (आपवन्ताम्) = सर्वथा प्राप्त करायें । रक्षित हुआ हुआ सोम ऐश्वर्य को प्राप्त कराता है, उस ऐश्वर्य को जो कि शक्ति से युक्त है । [२] (सुवानाः) = उत्पन्न होते हुए ये सोम (देवास:) = हमारे जीवन को प्रकाशमय बनाते हैं और (इन्दवः) = ये हमें शक्तिशाली बनानेवाले हैं
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से सुवीर्य रयि की प्राप्ति होती है। ये सोम हमें प्रकाशमय शक्ति-सम्पन्न जीवनवाला बनाते हैं।
विषय
अध्यक्ष प्रजा को सम्पन्न करे।
भावार्थ
(इन्दवः) ऐश्वर्ययुक्त (देवासः) तेजस्वी पुरुष (सुवानासः) अभिषिक्त होते रहें। (ते) वे (नः) हमें (सहस्रिणं रयिम्) सहस्रों की संख्या में परिमित (सुवीर्यं) उत्तम बलदायक (रयिम् आ पवन्तम्) ऐश्वर्य प्राप्त करावें और हमारे अपरिमित धन, बल को प्राप्त करें। इति प्रथमो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः—१— ३, ५, ८ गायत्री। ४ निचृद् गायत्री। ६ भुरिग्गायत्री। ७ पादनिचृद् गायत्री। ९ यवमध्या गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May those streams of soma, divine showers of beauty and glory, inspiring us, energising us with strength and virility, flow and purify us, and give us a thousand-fold wealth, honour and glory, and high creative potential for further advancement.
मराठी (1)
भावार्थ
येथे ‘व्यत्ययो बहुलम्’ या सूत्राने एकवचनाच्या स्थानी बहुवचन केलेले आहे. त्यामुळे ईश्वराचे ग्रहण समजले पाहिजे इतराचे नव्हे. ॥५॥
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