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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 13/ मन्त्र 4
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    उ॒त नो॒ वाज॑सातये॒ पव॑स्व बृह॒तीरिष॑: । द्यु॒मदि॑न्दो सु॒वीर्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । नः॒ । वाज॑ऽसातये । पव॑स्व । बृ॒ह॒तीः । इषः॑ । द्यु॒ऽमत् । इ॒न्दो॒ इति॑ । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत नो वाजसातये पवस्व बृहतीरिष: । द्युमदिन्दो सुवीर्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । नः । वाजऽसातये । पवस्व । बृहतीः । इषः । द्युऽमत् । इन्दो इति । सुऽवीर्यम् ॥ ९.१३.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 13; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्दो) हे परमैश्वर्यशालिपरमात्मन् ! (द्युमत्) दीप्तिमत् (सुवीर्यम्) बलं (पवस्व) अस्मभ्यं देहि (उत) तथा च (वाजसातये) युद्धेषु (नः बृहतीः इषः) अस्मभ्यं प्रबलां शक्तिं प्रयच्छ ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्दो) हे परमैश्वर्यवाले परमात्मन् ! (द्युमत्) दीप्तिवाला (सुवीर्यम्) बल (पवस्व) हमको दें (उत) और (वाजसातये) युद्धों में (नः बृहतीः इषः) हमको बड़ी शक्ति प्रदान करें ॥४॥

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    विषय

    द्युमत्-सुवीर्यम्

    पदार्थ

    [१] हे (इन्दो) = शक्तिशाली सोम ! तू (नः) = हमारे लिये (वाजसातये) = जीवन-संग्राम में विजय की प्राप्ति के लिये (बृहतीः इषः) = वृद्धि की कारणभूत प्रेरणाओं को (पवस्व) = प्राप्त करा । सोम-रक्षण से हृदय पवित्र होता है। पवित्र हृदय में प्रभु प्रेरणा सुन पड़ती है। यह प्रेरणा हमें जीवन-संग्राम में विजयी बनाती है। [२] (उत) = और हे सोम ! तू हमें (द्युमत्) = ज्योतिर्मय (सुवीर्यम्) = उत्तम वीर्य को [= शक्ति को] प्राप्त करा ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से हमें पवित्र हृदय में प्रभु की प्रेरणायें सुन पड़ती हैं। हमें ज्योति व शक्ति प्राप्त होती है ।

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    विषय

    राजा से फल प्राप्त करने की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन्! दया स्नेहादि से आर्द्र पुरुष ! राजा और तू (नः) हमें (वाज-सातये) ज्ञान, बल, वेग देने के लिये (बृहतीः इषः) बड़ी २ कामनाओं उत्तम अन्नों और बलवती सेनाओं को तथा (द्युमत्) तेज से युक्त (सु-वीर्यम्) उत्तम वल को भी (पवस्व) प्राप्त करा या हमारे ऐसे बल आदि को तू प्राप्त कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः—१— ३, ५, ८ गायत्री। ४ निचृद् गायत्री। ६ भुरिग्गायत्री। ७ पादनिचृद् गायत्री। ९ यवमध्या गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O refulgent Soma, lord of peace, power, beauty and glory, flow, purify and empower us for victory in the battles of life and give us abundant food and energy and high order of noble creative courage and rectitude.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमात्म्याकडून बल व युद्धात विजय प्राप्त व्हावा त्यासाठी शक्ती मिळावी अशी प्रार्थना केलेली आहे. ॥४॥

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