ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 15/ मन्त्र 7
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒तं मृ॑जन्ति॒ मर्ज्य॒मुप॒ द्रोणे॑ष्वा॒यव॑: । प्र॒च॒क्रा॒णं म॒हीरिष॑: ॥
स्वर सहित पद पाठए॒तम् । मृ॒ज॒न्ति॒ । मर्ज्य॑म् । उप॑ । द्रोणे॑षु । आ॒यवः॑ । प्र॒ऽच॒क्रा॒णम् । म॒हीः । इषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एतं मृजन्ति मर्ज्यमुप द्रोणेष्वायव: । प्रचक्राणं महीरिष: ॥
स्वर रहित पद पाठएतम् । मृजन्ति । मर्ज्यम् । उप । द्रोणेषु । आयवः । प्रऽचक्राणम् । महीः । इषः ॥ ९.१५.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 15; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 7
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 7
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(आयवः) मनुष्याः (मर्ज्यम् एतम्) ध्यातव्यमिमं परमात्मानम् (द्रोणेषु) अन्तःकरणेषु संस्थाप्य (उप मृजन्ति) उपासते (महीः इषः) यो हीश्वरः महदन्नाद्यैश्वर्य्यं (प्रचक्राणम्) कुर्वन्नास्ते ॥७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(आयवः) मनुष्य (मर्ज्यम् एतम्) ध्यान करने योग्य इस परमात्मा को (द्रोणेषु) अन्तःकरणों में रख (उप मृजन्ति) उपासना करते हैं, (प्रचक्राणम्) जो परमात्मा (महीः इषः) बड़े भारी अन्नाद्यैश्वर्यों का दाता है ॥७॥
भावार्थ
उपासकों को चाहिये कि वे उपासनासमय में परमात्मा के विराट्स्वरूप का ध्यान करते हुए उसके गुणों द्वारा उसका उपासन करें अर्थात् उसकी शक्तियों का अनुसन्धान करते हुए उसके विराट्स्वरूप को भी अपनी बुद्धि में स्थिर करें ॥७॥
विषय
प्रभु-प्रेरणा क्रदण
पदार्थ
[१] (एतम्) = इस (मर्ज्यम्) = शुद्ध रखने योग्य सोम को (आयवः) = गतिशील मनुष्य (द्रोणेषु) = इन शरीर रूप कलशों में [पात्रों में] (मृजन्ति) = शुद्ध करते हैं। वस्तुतः सोम को शुद्ध रखने का प्रकार यही है कि हम गतिशील बने रहें । गतिशीलता हमें वासनाओं के आक्रमण से बचाये रखती है। वासनाओं के अभाव में यह सोम शुद्ध बना रहता है। [२] यह शुद्ध सोम हमारे हृदय को और अधिक निर्मल बनानेवाला होता है और उस निर्मल हृदय में (मही:) = महत्त्वपूर्ण (इषः) = प्रेरणाओं को (प्रचक्राणम्) = करनेवाला होता है। सोम के द्वारा शुद्ध हुए हुए हृदय में प्रभु की प्रेरणायें सुन पड़ती हैं।
भावार्थ
भावार्थ- गतिशीलता द्वारा सोम का शोधन होता है। शुद्ध सोम हृदय को निर्मल करता हुआ हमें प्रभु प्रेरणाओं को सुनने योग्य बनाता है ।
विषय
वीर का अभिषेक।
भावार्थ
(महीः इषः) बहुत बड़ी २ सेनाओं को, नियोजित करने और शत्रु-सेनाओं पर बलात् आक्रमण करने में समर्थ (एतं) उस (मर्ज्यम्) अभिषेचनीय वीर को (आयवः) मनुष्य लोग (द्रोणेषु उप मृजन्ति) कलशों के बीच खड़ा कर प्रेमपूर्वक अभिषेक करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३ - ५, ८ निचृद गायत्री। २, ६ गायत्री॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
People adore this glorious power closely treasured in the heart, the divine power that creates and gives great food, energy and advancement.
मराठी (1)
भावार्थ
उपासकांनी उपासना करताना परमेश्वराच्या विराट स्वरूपाचे ध्यान करत त्याच्या गुणांद्वारे त्याची उपासना करावी. अर्थात त्याच्या शक्तींचे अनुसंधान करत त्याच्या विराट स्वरूपालाही आपल्या बुद्धीत स्थिर करावे. ॥७॥
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