ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 15/ मन्त्र 8
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒तमु॒ त्यं दश॒ क्षिपो॑ मृ॒जन्ति॑ स॒प्त धी॒तय॑: । स्वा॒यु॒धं म॒दिन्त॑मम् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒तम् । ऊँ॒ इति॑ । त्यम् । दश॑ । क्षिपः॑ । मृ॒जन्ति॑ । स॒प्त । धी॒तयः॑ । सु॒ऽआ॒यु॒धम् । म॒दिन्ऽत॑मम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एतमु त्यं दश क्षिपो मृजन्ति सप्त धीतय: । स्वायुधं मदिन्तमम् ॥
स्वर रहित पद पाठएतम् । ऊँ इति । त्यम् । दश । क्षिपः । मृजन्ति । सप्त । धीतयः । सुऽआयुधम् । मदिन्ऽतमम् ॥ ९.१५.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 15; मन्त्र » 8
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 8
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 8
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एतं त्यम् उ) तं सर्वगुणसम्पन्नं परमात्मानं (दश क्षिपः) दशेन्द्रियाणि (सप्त धीतयः) सप्तेन्द्रियवृत्तयश्च (मृजन्ति) प्रकटयन्ति च परमात्मा (स्वायुधम्) स्वतन्त्रतया विराजते यश्च (मदिन्तमम्) सर्वानन्ददाताऽस्ति ॥८॥ पञ्चदशसूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एतं त्यम् उ) उस सर्वगुणसम्पन्न परमात्मा को (दश क्षिपः) दश इन्द्रियें और (सप्त धीतयः) और सात धारणादि वृत्तियें (मृजन्ति) प्रकट करती हैं (स्वायुधम्) जो स्वतन्त्रसत्तावाला है और (मदिन्तमम्) सब को आनन्द देनेवाला है ॥८॥
भावार्थ
परमात्मा अपनी स्वतन्त्रसत्ता से विराजमान है। जब वह श्रेष्ठों का उद्धार और दुष्टों का दमन करता है, तब उसे किसी शस्त्रादि साधन की आवश्यकता नहीं, किन्तु उसका स्वरूप ही आयुध का काम करता है। इस प्रकार के स्वतन्त्रसत्तासम्पन्न परमात्मा को हृदय में धारण करनेवाले अत्यन्त आनन्द को प्राप्त होते हैं ॥८॥७॥ यह पन्द्रहवाँ सूक्त और पाँचवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
श क्षिपो मृजन्ति
पदार्थ
[१] (एतम्) = इस (त्यम्) = प्रसिद्ध सोम को (उ) = निश्चय से (दश क्षिपः) = दस विषय-वासनाओं को अपने से परे फेंकनेवाली इन्द्रियाँ तथा (सप्त धीतयः) = सात ध्यान वृत्तियाँ 'कर्णाविमो नासिके चक्षणी मुखम् ' दो कानों, दो नासिका छिद्रों, दो आँखों व मुख से होनेवाली प्रभु की उपासनायें (मृजन्ति) = शुद्ध करती हैं । अर्थात् सोम को शुद्ध रखने के लिये आवश्यक है कि हम इन्द्रियों को विषय प्रवण न होने दें और कान - आँख आदि को प्रभु के ध्यान में लगाने का प्रयत्न करें। [२] यह सुरक्षित सोम ('स्वायुधं') = उत्तम आयुध है। यह हमें रोगों से व वासनाओं से संग्राम में विजयी बनाता है । (मदिन्तमम्) = हमारे अतिशयित हर्ष का यह कारण बनता है। हमें उल्लास को प्राप्त कराता है ।
भावार्थ
भावार्थ - 'इन्द्रियों को विषय प्रवणता से रोकना व प्रभु ध्यान में लगाना' ही सोमरक्षण का साधन है । यह रक्षित सोम हमारा शत्रु संहार के लिये उत्तम आयुध बनता है और हमारे हर्ष व उल्लास का कारण होता है। अगले सूक्त में भी इसी विषय को कहते हैं-
विषय
वीर का अभिषेक।
भावार्थ
(स्वायुधम्) उत्तम अस्त्र-शस्त्र सम्पन्न उत्तम योद्धा और (मदिन्तमम्) सब को खूब प्रसन्न रखने वाले (एतम् उ त्यं) इस उस वीर को (दश क्षिपः) दशों दिशा-निवासिनी प्रजाएं और दश दिग्विजयिनी शत्रु को उखाड़ फेंकने वाली, सेनाएं और (सप्त धीतयः) सातों राष्ट्रधारक प्रकृतियें (मृजन्ति) अभिषेचित करें। इति पञ्चमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३ - ५, ८ निचृद गायत्री। २, ६ गायत्री॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
With ten pranas and seven faculties, five senses, mind and intellect, glorify this Soma, lord of peace and joy, who is most ecstatically blissful and wields noble powers of protection for advancement and progress.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा आपल्या स्वतंत्र सत्तेने विराजमान आहे. जेव्हा तो श्रेष्ठांचा उद्धार व दुष्टांचे दमन करतो तेव्हा त्याला एखाद्या शस्त्राची आवश्यकता नाही तर त्याचे स्वरूपच आयुधाचे काम करते. या प्रकारे स्वतंत्रसत्तासंपन्न परमात्म्याला हृदयामध्ये धारण करणारे अत्यंत आनंद प्राप्त करतात. ॥८॥
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