ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 16/ मन्त्र 5
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
प्र त्वा॒ नमो॑भि॒रिन्द॑व॒ इन्द्र॒ सोमा॑ असृक्षत । म॒हे भरा॑य का॒रिण॑: ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । त्वा॒ । नमः॑ऽभिः । इन्द॑वः । इन्द्र॑ । सोमाः॑ । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ । म॒हे । भरा॑य । का॒रिणः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र त्वा नमोभिरिन्दव इन्द्र सोमा असृक्षत । महे भराय कारिण: ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । त्वा । नमःऽभिः । इन्दवः । इन्द्र । सोमाः । असृक्षत । महे । भराय । कारिणः ॥ ९.१६.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 16; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्र) भोः शूरवीर ! मया (त्वा) भवदर्थम् (नमोभिः) अन्नादिरूपेण (इन्दवः सोमाः) परमैश्वर्य्यस्य दातारः सौम्यस्वभावस्य उत्पादकाः (प्रासृक्षत) रसा उत्पादिता ये (कारिणः) कर्मयोगिणे (महे भराय) अत्यन्तपुष्टिप्रदाः सन्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्र) हे शूरवीर ! मैंने (त्वा) तुम्हारे लिये (नमोभिः) अश्वादि द्वारा (इन्दवः सोमाः) परमेश्वर के देनेवाले और सौम्यस्वभाव बनानेवाले सुन्दर रस (प्रासृक्षत) उत्पन्न किये हैं, जो कि (कारिणः) कर्मयोगी पुरुष के लिये (महे भराय) अत्यन्त पुष्टि करनेवाले हैं ॥५॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे शूरवीर लोगो ! मैंने तुम्हारे लिये अनन्त प्रकार के रसों को उत्पन्न किया है, जिनका उपभोग करके तुम आह्लादित होकर अन्यायकारी शत्रुओं के विजय के लिये शक्तिसम्पन्न हो सकते हो ॥५॥
विषय
नमन के द्वारा सोमरक्षण
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष ! (नमोभिः) = प्रभु के प्रति नमन के द्वारा (इन्दवः) = शक्ति को देनेवाले (सोमाः) = ये सोमकण (त्वा) = तेरे लिये (प्र असृक्षत) = प्रकर्षेण सृष्ट होते हैं । प्रभु के प्रति नमन हमारे अन्दर सोमकणों का रक्षण करता है। [२] रक्षित हुए-हुए ये सोमकण (महे भराय) = अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भरण के लिये होते हैं। इनके द्वारा हमारा उत्तम पोषण होता है । (कारिणः) = ये उत्तम शरीर रूप कार = रथवाले होते हैं। ये सोमकण शरीर-रथ को सुन्दर बनाते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु नमन के द्वारा सोम का रक्षण होता है। रक्षित सोम हमारा उत्तम भरण करता है, हमारे शरीर - रथ को सुन्दर बनाता है ।
विषय
राष्ट्रपति का आदर।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! राष्ट्रपते ! वा राष्ट्र ! (नमोभिः) विनयपूर्वक (कारिणः) बल के शत्रु-हनन आदि कार्य करने में समर्थ (इन्दवः सोमाः) स्नेहयुक्त अभिषिक्त जन (त्वा) तुझे (महे भराय) बड़े भारी संग्राम के लिये, वा बहुतों के भरण पोषण के लिये, आदरपूर्वक प्राप्त होते और उत्तम पद पर स्थापित करते हैं वा उत्पन्न करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः ॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः— १ विराड् गायत्री। २, ८ निचृद् गायत्री। ३–७ गायत्री ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord of power, peace and joy, with songs of honour and salutations to you, I have created and offered joyous adorations to you which flow for the grand fulfilment of the poet creator and man of divine action.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की हे शूर वीर लोकांनो! मी तुमच्यासाठी अनंत प्रकारच्या रसांना उत्पन्न केलेले आहे. ज्यांचा उपभोग करून तुम्ही आल्हादित होऊन अन्यायकारी शत्रूंवर विजय प्राप्त करण्यासाठी शक्तिसंपन्न होऊ शकता. ॥५॥
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