ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 16/ मन्त्र 6
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
पु॒ना॒नो रू॒पे अ॒व्यये॒ विश्वा॒ अर्ष॑न्न॒भि श्रिय॑: । शूरो॒ न गोषु॑ तिष्ठति ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒ना॒नः । रू॒पे । अ॒व्यव्ये॑ । विश्वाः॑ । अर्ष॑न् । अ॒भि । श्रियः॑ । शूरः॑ । न । गोषु॑ । ति॒ष्ठ॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुनानो रूपे अव्यये विश्वा अर्षन्नभि श्रिय: । शूरो न गोषु तिष्ठति ॥
स्वर रहित पद पाठपुनानः । रूपे । अव्यव्ये । विश्वाः । अर्षन् । अभि । श्रियः । शूरः । न । गोषु । तिष्ठति ॥ ९.१६.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 16; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 6
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अव्यये रूपे) निराकारस्य परमात्मनो विज्ञानेन (पुनानः) येन आत्मा पवित्रीकृतः (विश्वाः श्रियः) सम्पूर्णम् ऐश्वर्य्यं (अभ्यर्षन्) भुञ्जानोऽपि (न गोषु तिष्ठति) य इन्द्रियवशवर्ती न भवति, स एव (शूरः) वीरो भवितुमर्हति ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
अब इस बात का कथन करते हैं कि किस प्रकार का शूरवीर युद्ध में उपयुक्त हो सकता है।
पदार्थ
(अव्यये रूपे) निराकार परमात्मा के स्वरूप के विश्वास से (पुनानः) जिसने आपको पवित्र किया है (विश्वाः श्रियः) सम्पूर्ण ऐश्वर्यों को (अभ्यर्षन्) धारण करता हुआ भी (न गोषु तिष्ठति) जो इन्द्रिय के वशीभूत नहीं होता, वही (शूरः) वीर कहला सकता है ॥६॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे शूरवीर पुरुषों ! तुम सम्पूर्ण ऐश्वर्यों को भोगते हुए भी इन्द्रिय के वशीभूत लोग शूरवीरता के धर्म को कदापि धारण नहीं कर सकते, इसलिये शूरवीरों के लिये संयमी बनना अत्यावश्यक है ॥६॥
विषय
सर्व श्री सम्पन्नता
पदार्थ
[१] (अव्यये रूपे) = उस अविकृत रूप प्रभु में अथवा अविनाशी प्रभु में (पुनानः) = अपने को पवित्र करता हुआ यह सोम (विश्वाः) = सब (श्रियः) = अभिश्रियो [ = लक्ष्मियों] की ओर (अर्षन्) = गति करता हुआ (गोषु) = इन्द्रियरूप गौओं के विषय में (शूरः न) = एक वीर की तरह (तिष्ठति) = स्थित होता है । [२] जब एक व्यक्ति प्रभु की उपासना में स्थित होता है तो वह वासनाओं से अपने को बचाकर सोम को पवित्र बनाये रखता है। यह पवित्र सोम सब लक्ष्मियों को प्राप्त कराता है। इस सोम के द्वारा इन्द्रियाँ सशक्त बनी रहती हैं । इन्द्रियाँ मानो गौवें है, तो यह सोम इन गौवों का रक्षक गोप है । यह इन्द्रिय शक्तियों को विनष्ट नहीं होने देता ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु स्मरण से सोम पवित्र होता है। यह सब श्रियों को प्राप्त कराता है । इन्द्रियों की शक्ति का रक्षण करता है।
विषय
अध्यक्षपद का ग्रहण और
भावार्थ
(गोषु शूरः न) भूमियों या वेगवान् अश्वों के अध्यक्ष पद पर शुरवीर पुरुष के समान (विश्वाः श्रियः अभि अर्षन्) समस्त आश्रित प्रजाओं और लक्ष्मियों को प्राप्त करता हुआ (अव्यये रूपे) न क्षीण होने वाले अक्षय रूप, सम्पत्तियुक्त पद पर वा स्वरूप में (तिष्ठति) विराजता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः ॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः— १ विराड् गायत्री। २, ८ निचृद् गायत्री। ३–७ गायत्री ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
In the eternal imperishable spirit of divinity, abide and roll all peace, power and glories of the world like waves of the ocean in the midst of which the brave soul, having purified itself of the junk of life, sits and abides as a hero like a star among planets.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर उपदेश करतो की हे शूर वीर पुरुषांनो! तुम्ही संपूर्ण ऐश्वर्य भोगूनही इंद्रियांच्या वशीभूत होऊ नका. कारण इंद्रियांच्या वशीभूत असलेले लोक शूरवीरतेचा धर्म कधीही धारण करू शकत नाहीत. त्यामुळे शूरवीरांसाठी संयमी बनणे आवश्यक आहे. ॥६॥
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