ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 21/ मन्त्र 1
ऋषि: - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒ते धा॑व॒न्तीन्द॑व॒: सोमा॒ इन्द्रा॑य॒ घृष्व॑यः । म॒त्स॒रास॑: स्व॒र्विद॑: ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ते । धा॒व॒न्ति॒ । इन्द॑वः । सोमाः॑ । इन्द्रा॑य । घृष्व॑यः । म॒त्स॒रासः॑ । स्वः॒ऽविदः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एते धावन्तीन्दव: सोमा इन्द्राय घृष्वयः । मत्सरास: स्वर्विद: ॥
स्वर रहित पद पाठएते । धावन्ति । इन्दवः । सोमाः । इन्द्राय । घृष्वयः । मत्सरासः । स्वःऽविदः ॥ ९.२१.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 21; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विराट् परमात्मनो रथरूपेण वर्ण्यते।
पदार्थः
(एते सोमाः) हे परमात्मन् ! भवान् ( धावन्ति) सर्वत्र व्याप्नोति (इन्दवः) स्वप्रकाशेन प्रकाशितश्च (इन्द्राय घृष्वयः) विद्वद्भिः स्तुत्यश्च (मत्सरासः) प्रभुत्वाभिमानी चास्ति (स्वर्विदः) सुखदश्च ॥१॥
हिन्दी (1)
विषय
अब विराट् को परमात्मा के रथरूप से वर्णन करते हैं।
पदार्थ
(एते सोमाः) हे परमात्मन् ! आप (धावन्ति) सर्वत्र व्याप्त हो रहे हैं (इन्दवः) स्वप्रकाश हैं (इन्द्राय घृष्वयः) विद्वानों द्वारा स्तुत्य हैं (मत्सरासः) प्रभुता के अभिमान से युक्त हैं और (स्वर्विदः) सुख के देनेवाले हैं ॥१॥
भावार्थ
परमात्मा स्वयंप्रकाश और अपने प्रभुत्वभाव से सर्वत्रैव विराजमान है ॥१॥
English (1)
Meaning
These Soma streams of divine joy and exhilaration, agile, mirthful, ecstatic and refulgent, flow free in honour of Indra, lord of the beauty and glory of life.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा स्वयंप्रकाशी व आपल्या प्रभुत्वाने सर्वत्र विराजमान आहे. ॥१॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal