ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 21/ मन्त्र 5
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
आस्मि॑न्पि॒शङ्ग॑मिन्दवो॒ दधा॑ता वे॒नमा॒दिशे॑ । यो अ॒स्मभ्य॒मरा॑वा ॥
स्वर सहित पद पाठआ । अ॒स्मि॒न् । पि॒शङ्ग॑म् । इ॒न्द॒वः॒ । दधा॑त । वे॒नम् । आ॒ऽदिशे॑ । यः । अ॒स्मभ्य॑म् । अरा॑वा ॥
स्वर रहित मन्त्र
आस्मिन्पिशङ्गमिन्दवो दधाता वेनमादिशे । यो अस्मभ्यमरावा ॥
स्वर रहित पद पाठआ । अस्मिन् । पिशङ्गम् । इन्दवः । दधात । वेनम् । आऽदिशे । यः । अस्मभ्यम् । अरावा ॥ ९.२१.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 21; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अस्मिन्) अस्मिन् विराट्पुरुषे (पिशङ्गम्) नानावर्णं (दधाता) धारयन्ति (इन्दवः) अखिलब्रह्माण्डानि (वनम् आदिशे) तमेव परमात्मानमाश्रयन्ते (यः) यः परमात्मा (अस्मभ्यम्) अस्मभ्यं (अरावा) सर्वकामप्रदोऽस्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अस्मिन्) इस विराट् में (पिशङ्गम्) अनेक वर्णों को (दधाता) धारण करते हुए (इन्दवः) सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (वनम् आदिशे) उस परमात्मा का आश्रय लेते हैं (यः) जो परमात्मा (अस्मभ्यम् अरावा) हमारे लिये सब कामनाओं का देनेवाला है ॥५॥
भावार्थ
उक्त कोटानुकोटि ब्रह्माण्ड उसी निराकार परमात्मा के आधार पर स्थित है ॥५॥
विषय
'पिशंग-वेन- अरावा' प्रभु
पदार्थ
[१] (इन्दवः) = सोमकणो ! (अस्मिन्) = इस सोम के रक्षक पुरुष में (पिशंगम्) = [पिशं गच्छति ] शत्रुपेषण रूप कार्य के प्रति जानेवाले उस प्रभु को (आदधात) = स्थापित करो। सोमरक्षण से प्रभु का दर्शन होता है, वे हमारे हृदयों में स्थित प्रभु काम आदि वासनाओं को विनष्ट करते हैं । [२] उस प्रभु को हमारे हृदयों में स्थापित करो जो कि (वेनम्) = सदा हमारे हित की कामनावाले हैं। इन प्रभु को (आदिशे) = हमारे हृदयों में इसलिए स्थापित करो कि इनसे हमें सदा हमारे कर्त्तव्यों का आदेश प्राप्त होता रहे । [३] उन प्रभु को हमारे हृदयों में स्थापित करो (यः) = जो कि (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (अरावा) - [न रावयति] न रुलानेवाले हैं। हमें पापों से बचाकर शुभ कर्मों में वे प्रभु प्रेरित करते हैं और इस प्रकार हमें दुर्गति से बचाकर न रुलानेवाले होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हमें उन प्रभु को प्राप्ति होती है जो [क] हमारे शत्रुओं को पीस डालते हैं, [ख] हमारे हित की कामना करते हुए हमें कर्त्तव्य का उपदेश देते हैं, [ग] हमें पाप व दुर्गति से बचाकर न रुलानेवाले होते हैं।
विषय
वीरों से ऐश्वर्य की प्रार्थना।
भावार्थ
(यः) जो (अस्मभ्यम्) हमें (अरावा) नहीं देता हे (इन्दवः) ऐश्वर्यवान् वीर जनो ! (अस्मिन् आदिशे) उसके ऊपर आदेश वा शासन करने के लिये (वेनम्) तेजस्वी, कान्तिमान् (पिशङ्गम्) सुवर्ण, आदि ऐश्वर्य (अस्मभ्यम् आ दधात्) हमें प्रदान करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:-१,३ विराड् गायत्री। २,७ गायत्री। ४-६ निचृद् गायत्री। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
All these various streams of existential matter and energy bearing colourful forms in this cosmic personality abide by one divinity which brings us total fulfilment.
मराठी (1)
भावार्थ
कोटी कोटी ब्रह्मांड त्याच निराकार परमेश्वराच्या आधारावर स्थित आहे. ॥५॥
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