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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 5/ मन्त्र 9
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - आप्रियः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    त्वष्टा॑रमग्र॒जां गो॒पां पु॑रो॒यावा॑न॒मा हु॑वे । इन्दु॒रिन्द्रो॒ वृषा॒ हरि॒: पव॑मानः प्र॒जाप॑तिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वष्टा॑रम् । अ॒ग्र॒ऽजाम् । गो॒पाम् । पु॒रः॒ऽयावा॑नम् । आ । हु॒वे॒ । इन्दुः॑ । इन्द्रः॑ । वृषा॑ । हरिः॑ । पव॑मानः । प्र॒जाऽप॑तिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वष्टारमग्रजां गोपां पुरोयावानमा हुवे । इन्दुरिन्द्रो वृषा हरि: पवमानः प्रजापतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वष्टारम् । अग्रऽजाम् । गोपाम् । पुरःऽयावानम् । आ । हुवे । इन्दुः । इन्द्रः । वृषा । हरिः । पवमानः । प्रजाऽपतिः ॥ ९.५.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 5; मन्त्र » 9
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (त्वष्टारम्) प्रलयकाले परमाणुरूपेण सृष्टेः कर्तारं (अग्रजाम्) सर्वेषामादिभूतं (गोपाम्) सर्वेषां रक्षितारं (पुरोयावानम्) सर्वाग्रणीदेवं (आहुवे) वयमुपास्यत्वेन मन्येमहि स एव (इन्दुः) प्रेम्णा सर्वेषां क्लेदयिता (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् (वृषा) सर्वकामान् वर्षुकः (हरिः) दुःखानां हर्ता (पवमानः) पवित्रात्मा (प्रजापतिः) अखिलजनरक्षकश्चास्ति ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (त्वष्टारम्) त्वक्षतीति त्वष्टा=जो इस सृष्टि को प्रलयकाल में परमाणुरूप कर देता है, उसका नाम त्वष्टा है (अग्रजाम्) अग्रे जाता अग्रजा=जो सबसे प्रथम हो अर्थात् सबका आदि मूल कारण हो, उसका नाम अग्रजा है (गोपाम्) गोपायतीति गोपाः=जो सर्वरक्षक हो, उसका नाम यहाँ गोपा है (पुरोयावानम्) जो सर्वाग्रणी है, उस देव को (आहुवे) हम उपास्य समझें, वही देव (इन्दुः) सबको प्रेमभाव से आर्द्र करनेवाला (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवाला (वृषा) सब कामनाओं की वर्षा करनेवाला (हरिः) और सब दुःखों को हर लेनेवाला (पवमानः) पवित्र और (प्रजापतिः) सब प्रजा का पालन करनेवाला है ॥९॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा ने सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलयकर्त्ता पुरुषविशेष का इस ज्ञानयज्ञ में उपास्यरूप से निर्देश किया है और त्वष्टादि द्वितीयान्त इसलिये हैं कि उपासनात्मक क्रिया के ये सब कर्म हैं अर्थात् इनकी उपासना उक्त यज्ञ में की जाती है ॥९॥

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    विषय

    'इन्दु प्रजापति'

    पदार्थ

    [१] मैं (त्वष्टारम्) = संसार के निर्माता, (अग्रजाम्) = सृष्टि से पहले होनेवाले 'हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे', (गोपाम्) = रक्षक, (पुरो यावानम्) = आगे ले चलनेवाले, नेतृत्व देनेवाले प्रभु को आहुवे = पुकारता हूँ। यह प्रभु का स्मरण ही मुझे वासनाओं से बचाकर सोमरक्षण के योग्य बनाता है । [२] उस समय यह (इन्दुः) = सोम (इन्द्रः) = मेरी इन्द्रियों को शक्तिशाली बनानेवाला होता है, (वृषा) = हमारे पर सब सुखों का वर्षण करता है, (हरिः) = हमारे कष्टों व पापों का हरण करता है, (पवमानः) = हमें पवित्र बनाता है और (प्रजापतिः) = हमारे सन्तानों का भी रक्षण करता है । सोमरक्षण से उत्तम सन्तान प्राप्त होते ही हैं। [३] इस सोमरक्षण के द्वारा मैं भी (त्वष्टा) = निर्माता, (अग्रज) = अग्र स्थान में होनेवाला, (गोपा) = अपना रक्षण करनेवाला तथा पुरोयावान आगे और आगे बढ़नेवाला व नेतृत्व देनेवाला बनता हूँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ - हम प्रभु स्मरण करें। प्रभु स्मरण के द्वारा सोम का रक्षण करते हुए प्रभु जैसे ही बनें।

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    विषय

    सूर्य के तुल्य राजा के कर्त्तव्य। इन्दु, इन्द्र, हरि, पवमान, प्रजापति आदि इन नामों का स्पष्टी- करण । परमेश्वर के प्रति इन विशेषणों की योजना

    भावार्थ

    (त्वष्टारम्) सूर्य के समान तीक्ष्ण, तेजस्वी, (अग्रजाम्) अग्रासन पर विराजमान (गोपाम्) भूमि के पालक, (पुरोयावानम्) सबसे आगे प्रयाण करने वाले को मैं (आ हुवे) आदर से पुकारता हूं कि वह (इन्दुः) ऐश्वर्यवान् होने से ‘इन्दु’ है। वह (इन्द्रः) सूर्यवत् देदीप्यमान होने से ‘इन्द्र’ है वह (वृषा) सुखों का वर्षक होने से ‘वृषा’ है (हरिः) प्रजा के दुःख हरने से ‘हरि’ है। वह (पवमानः) अभिषिक्त और कण्टक शोधक होने से ‘पवमान’ और (प्रजापतिः) प्रजा का पालक होने से ‘प्रजापति’ है। इसी प्रकार परमेश्वर भी सर्वस्रष्टा होने से ‘त्वष्टा’, सर्व प्रथम होने से ‘अग्रजा’, दयार्द्र होने से ‘इन्दु’, ऐश्वर्यवान् होने से ‘इन्द्र’, सुखवर्षी होने से ‘वृषा’, पाप भयहारी होने से ‘हरि’, परम पावन होने से ‘पवमान’, चराचर प्रजा का पालक होने से ‘प्रजापति’ है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवता वा ऋषिः। आप्रियो देवता ॥ छन्द:-- १, २, ४-६ गायत्री। ३, ७ निचृद गायत्री। ८ निचृदनुष्टुप्। ९, १० अनुष्टुप्। ११ विराडनुष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    I invoke and worship Tvashta, the creative maker, first manifested, protector and sustainer of the world, and first pioneer and guide. I invoke and worship Indra, the same lord of power, excellence and glory, Indu, lord of peace and beatitude, Vrsha, generous giver of showers of wealth and beauty, Hari, creator and sustainer, Pavamana, lord of purity and graciousness, and Prajapati, supreme father of his children in existence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमात्म्याने सृष्टीची उत्पत्ती, स्थिती, प्रलयकर्ता पुरुष विशेषाचे या ज्ञानयज्ञात उपास्य रूपाने निर्देश केलेला आहे व त्वष्टा इत्यादी द्वितीयान्त यासाठी आहे की उपासनात्मक क्रियेचे हे सर्व कर्म आहेत. अर्थात त्यांची उपासना वरील यज्ञात केली जाते. ॥९॥

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