ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 87/ मन्त्र 3
ऋषिः - उशनाः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ऋषि॒र्विप्र॑: पुरए॒ता जना॑नामृ॒भुर्धीर॑ उ॒शना॒ काव्ये॑न । स चि॑द्विवेद॒ निहि॑तं॒ यदा॑सामपी॒च्यं१॒॑ गुह्यं॒ नाम॒ गोना॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठऋषिः॑ । विप्रः॑ । पु॒रः॒ऽए॒ता । जना॑नाम् । ऋ॒भुः । धीरः॑ उ॒शना॑ । काव्ये॑न । सः । चि॒त् । वि॒वे॒द॒ । निऽहि॑तम् । यत् । आ॒सा॒म् । अ॒पी॒च्य॑म् । गुह्य॑म् । नाम॑ । गोना॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋषिर्विप्र: पुरएता जनानामृभुर्धीर उशना काव्येन । स चिद्विवेद निहितं यदासामपीच्यं१ गुह्यं नाम गोनाम् ॥
स्वर रहित पद पाठऋषिः । विप्रः । पुरःऽएता । जनानाम् । ऋभुः । धीरः उशना । काव्येन । सः । चित् । विवेद । निऽहितम् । यत् । आसाम् । अपीच्यम् । गुह्यम् । नाम । गोनाम् ॥ ९.८७.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 87; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ऋषिः) ऋषति जानात्यतीन्द्रियार्थमिति ऋषिः, योऽतीन्द्रियार्थस्य ज्ञाता तस्येह नाम ऋषिः। तथा (विप्रः) यो मेधावी। (पुर ,एता, जनानां) अपि च यो नराणां हृदये पूर्वमेव प्राप्तः। अपरञ्च (ऋभुः) अनन्तशक्तिसम्पन्नस्तथा (धीरः) धीरः (काव्येन) अन्यच्च स्वसर्वज्ञतया (उशना) सर्वत्र देदीप्यमानोऽस्ति। (सः, चित्) स एव परमात्मा (यत्, आसां) याः प्रकृतेः शक्तयः दीप्तिमत्यः तासां (अपीच्यं) अभ्यन्तरे (गुह्यं, नाम) सर्वथा गुप्तरहस्यं (निहितं) न्यदधात्, तं परमात्मैव (विवेद) जानाति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ऋषिः) ऋषति जानात्यतीन्द्रियार्थमिति ऋषिः, जो अतीन्द्रियार्थ को जाने, उसका नाम यहाँ ऋषि है तथा (विप्रः) जो मेधावी है (पुर एता जनानां) और जो मनुष्यों के हृदय में पहिले ही प्राप्त है और (ऋभुः) अनन्त शक्तिसम्पन्न तथा (धीरः) धीर है और (काव्येन) अपनी सर्वज्ञता से (उशना) सर्वत्र देदीप्यमान है। (सः चित्) वही परमात्मा (यदासां) जो प्रकृति की शक्तियों के (गोनां) जो दीप्तिवाली हैं, उनके (अपीच्यं) भीतर (गुह्यं नाम ) सर्वोपरि गुह्य रहस्य (निहितं) रक्खा है, उसको परमात्मा ही (विवेद) जानता है ॥३॥
भावार्थ
‘ऋषति सर्वत्र गच्छति व्यापकत्वेन सर्वं व्याप्नोति’ इति ऋषिः, परमात्मा जो सर्वत्र व्यापक है, उसका नाम यहाँ ऋषि है। यहाँ ऋषि, विप्र इत्यादि नामों से परमात्मा का वर्णन किया है, किसी जड़ वस्तु का नहीं ॥३॥
विषय
पूज्य विद्वान्, उसका कर्त्तव्य, आत्म ज्ञान।
भावार्थ
विद्वान् (ऋषिः) तत्वदर्शी, वेदमन्त्रार्थो का देखने वाला, (विप्रः) विविध विद्याओं में पूर्ण वा ज्ञानी और कर्मों का उपदेश करने वाला मेधावी, (जनानां पुरः-एता) बहुत से जनों के आगे २ चलने वाला, उनका नायक, (ऋभुः) बुद्धिमान्, (काव्येन) पूर्व के विद्वानों के उपार्जित ज्ञान से (उशनाः) प्रकाशित होता है (सः चित्) वही पूज्य है। (यत् आसां गोनाम्) जो इन वाणियों, सूर्यादि लोकों और प्राणों का (गुह्यं) बुद्धिस्थ, गुहा में विद्यमान (अपीच्यं) अप्रत्यक्ष (नाम) स्वरूप है वह उसको (निहितम्) निश्चित रूप से (विवेद) जाने।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
उशना ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २ निचृत्त्रिष्टुप्। ३ पादनिचृत्त्रिष्टुप्। ४,८ विराट् त्रिष्टुप्। ५–७,९ त्रिष्टुप्। नवर्चं सूक्तम्॥
विषय
तत्त्वदर्शन
पदार्थ
यह सोम (ऋषिः) = अतीन्द्रिय द्रष्टा है, हमारी बुद्धियों को तीव्र बनाकर हमें तत्त्वद्रष्टा बनाता है । (विप्रः) = हमारा विशेषरूप से पूरण करनेवाला है। (जनानां पुरः एता) = मनुष्यों का आगे चलनेवाला, अर्थात् मार्गदर्शक है। (ऋभुः) = [उरु भासमानः] खूब ही दीप्त है। (धीरः) = बुद्धि को गतिमय करनेवाला है [धियम् ईरयति] । यह (काव्येन उशना:) = इस वेदज्ञान रूप काव्य से प्रभु प्राप्ति की कामनावाला होता है। सोमरक्षण से मनुष्य का झुकाव प्रभु प्राप्ति की ओर होता है, प्रभु प्राप्ति के लिये यह प्रभु के वेदरूप काव्य को अपनाता है। (सः) = वह सोमरक्षक पुरुष (चित्) = निश्चय से (आसां गोनाम्) = इन वेदवाणियों का (यत्) = जो (अपीच्यम्) = अन्तर्हित (गुह्यम्) = रहस्यभूत भाव (निहितम्) = स्थापित है, उस (नाम) = [mark, sign, token] संकेत को (विवेद) = जाननेवाला होता है । सोमरक्षण से ही बुद्धि की वह तीव्रता व हृदय की वह शुद्धि प्राप्त होती है जिससे कि हम वेद के इन संकेतों को समझनेवाले बनते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से मनुष्य तीव्र बुद्धि बनकर वेदवाणियों के अन्तर्निहित अर्थ को देख पाता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
Divine seer, vibrant and sagely power, potent maker, stable of will and action, Soma is brilliant with innate vision and wisdom. He alone knows what is the hidden secret and mystery of these stars and planets.
मराठी (1)
भावार्थ
‘‘ऋषित सर्वत्र गच्छति व्यापकत्वन सर्व व्याप्नोति इति ऋषि:’’ सर्वत्र व्यापक असलेल्या परमात्म्याला ऋषी म्हणतात येथे ऋषी, विप्र इत्यादी नावानी परमेश्वराचे वर्णन केलेले आहे. एखाद्या जड वस्तूचे नाही. ॥३॥
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