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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 87 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 87/ मन्त्र 9
    ऋषिः - उशनाः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उ॒त स्म॑ रा॒शिं परि॑ यासि॒ गोना॒मिन्द्रे॑ण सोम स॒रथं॑ पुना॒नः । पू॒र्वीरिषो॑ बृह॒तीर्जी॑रदानो॒ शिक्षा॑ शचीव॒स्तव॒ ता उ॑प॒ष्टुत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । स्म॒ । रा॒शिम् । परि॑ । या॒सि॒ । गोना॑म् । इन्द्रे॑ण । सो॒म॒ । स॒ऽरथ॑म् । पु॒ना॒नः । पू॒र्वीः । इषः॑ । बृ॒ह॒तीः । जी॒र॒दा॒नो॒ इति॑ जीरऽदानो । शिक्ष॑ । स॒ची॒ऽवः॒ । तव॑ । ताः । उ॒प॒ऽस्तुत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत स्म राशिं परि यासि गोनामिन्द्रेण सोम सरथं पुनानः । पूर्वीरिषो बृहतीर्जीरदानो शिक्षा शचीवस्तव ता उपष्टुत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । स्म । राशिम् । परि । यासि । गोनाम् । इन्द्रेण । सोम । सऽरथम् । पुनानः । पूर्वीः । इषः । बृहतीः । जीरदानो इति जीरऽदानो । शिक्ष । सचीऽवः । तव । ताः । उपऽस्तुत् ॥ ९.८७.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 87; मन्त्र » 9
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे परमात्मन् ! (इन्द्रेण) कर्म्मयोगिना सह (सरथं) मित्रतां (पुनानः) पवित्रयन् त्वं (गोनां, राशिं) ज्ञानशक्तीनां समूहं (परि, यासि) प्राप्नोषि (उत,  स्म) तथा च (पूर्वीः) पुरातनानि (बृहतीः, इषः) यानि महैश्वर्याणि तेषां (जीरदानो) दायकोऽसि (शचीवः) हे ऐश्वर्य्यसम्पन्न परमात्मन् ! (उपष्टुत्) स्तुतियोग्योऽसि (ताः) तासामैश्वर्य्यादिशक्तीनां त्वं मह्यं शिक्षां देहि ॥९॥ इति सप्ताशीतितमं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! (इन्द्रेण) कर्मयोगी के साथ (सरथं) मैत्रीभाव को (पुनानः) पवित्र करते हुए आप (गोनां राशिं) ज्ञानरूपी शक्तियों के भण्डार को (परियासि) प्राप्त होते हैं। (उत स्म) अपि च (पूर्वीः) अनादिकाल से जो (बृहतीः) बड़े (इषः) ऐश्वर्य हैं, उनके (जीरदानो) आप देनेवाले हैं। (शचीवः) हे ऐश्वर्यसम्पन्न परमात्मन् ! (उपष्टुत्) आप स्तुतियोग्य हैं (ताः) उन ऐश्वर्यादि शक्तियों की आप हमें शिक्षा प्रदान करें ॥९॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा शुभ शिक्षाओं का उपदेश करता है और ऐश्वर्यप्रदान के भावों का प्रकाश करता है ॥९॥ यह ८७ वाँ सूक्त और २३ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    ज्ञान-संञ्चयार्थ गुरुकुलोपसना का उपदेश।

    भावार्थ

    हे (सोम) शिष्यजन ! तू (इन्द्रेण सरथं पुनानः) इन्द्र, अज्ञाननाशक गुरु आचार्य के साथ एक रथ में बैठे सारथि वा रथा के समान एक कुल में रहता हुआ (गोनां राशिम उत परि यासि स्म) वेद-वाणियों के समूह को अच्छी तरह प्राप्त कर। हे (जीरदानो) प्राणवत् ज्ञान प्रदान करने हारे जीवनदातः ! मेघवत् (शचीवः) वाणी और शक्ति के स्वामिन् ! तू (तव) अपनी (ताः) उन २ (बृहतीः पूर्वीः) बड़ी, महत्वपूर्ण, सनातन (इषः) आज्ञाओं, प्रेरणाओं, वाणियों को (शिक्ष) हमें दे, हमें उनका उपदेश कर। इति त्रयोविंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उशना ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २ निचृत्त्रिष्टुप्। ३ पादनिचृत्त्रिष्टुप्। ४,८ विराट् त्रिष्टुप्। ५–७,९ त्रिष्टुप्। नवर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    ज्ञानवृद्धि व प्रेरणा का

    पदार्थ

    हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! (इन्द्रेण सरथम्) = जितेन्द्रिय पुरुष के द्वारा समानरथ में, अर्थात् अपने ही शरीररथ में (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ तू (गोनाम् राशिम्) = वेदवाणियों के समूह को (उत स्म) = [निश्चय से] अवश्य (परियासि) = प्राप्त होता है। जब सोम शरीर में सुरक्षित होता है, तो बुद्धि की तीव्रता होकर ज्ञान प्राप्त होता है। हे (शचीव:) = शक्तिसंपन्न सोम ! (उपष्टुत्) = स्तुति करनेवाला, (जीरदानो) = शीघ्रता से सब बुराइयों का छिन्न करनेवाला [द्राप् लावने] तू (तव) = तेरी (ता:) = उन (बृहती:) = वृद्धि की कारणभूत (पूर्वीः) = पालन व पूरण करनेवाली (इषः) = प्रेरणाओं को शिक्षा प्राप्त करा। हम सोमरक्षण से प्रभुस्तवन की ओर झुकते हुए बुराइयों को छिन्न-भिन्न करके हृदयस्थ प्रभु की प्रेरणा को सुननेवाले बनते हैं। ये प्रेरणाएं हमारी उन्नति का कारण बनती हैं और हमारा पालन व पूरण करती हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम ज्ञानवृद्धि का कारण बनता है और हमें पवित्र हृदय बनाकर प्रभु प्रेरणा के सुनने के योग्य बनाता है। I उशना ऋषि का ही अगला सूक्त है-

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, O spirit of life and ecstasy of being, you move together with Indra, the noble soul riding the body chariot, you move together to the multitude of things perceivable and radiate to the senses, mind and intelligence of man, pure and purifying. O lord of all power and knowledge, infinite giver of vast possibilities, worshipped at the closest in the heart core of the soul, bless us with those abundant and eternal gifts of food and energy, honour, power and excellence and the wisdom and vision of divinity which we need for ultimate freedom.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमात्मा शुभ शिक्षणाचा उपदेश करतो व ऐश्वर्य प्रदानाची भावना प्रकट करतो. ॥९॥

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