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यजुर्वेद अध्याय - 14

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  • यजुर्वेद - अध्याय 14/ मन्त्र 14
    ऋषिः - विश्वेदेवा ऋषयः देवता - वायुर्देवता छन्दः - स्वराड ब्राह्मी बृहती स्वरः - मध्यमः
    143

    वि॒श्वक॑र्मा त्वा सादयत्व॒न्तरि॑क्षस्य पृ॒ष्ठे ज्योति॑ष्मतीम्। विश्व॑स्मै प्रा॒णाया॑ऽपा॒नाय॑ व्या॒नाय॒ विश्वं॒ ज्योति॑र्यच्छ। वा॒युष्टेऽधि॑पति॒स्तया॑ दे॒वत॑याङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वा सी॑द॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒श्वक॒र्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मा। त्वा॒। सा॒द॒य॒तु॒। अ॒न्तरि॑क्षस्य। पृ॒ष्ठे। ज्योति॑ष्मती॒मिति॒ ज्योतिः॑ऽमतीम्। विश्व॑स्मै। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नाय॑। व्या॒नाय॑। विश्व॑म्। ज्योतिः॑। य॒च्छ॒। वा॒युः। ते॒। अधि॑पति॒रित्यधि॑ऽपतिः। तया॑। दे॒वत॑या। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वा। सी॒द॒ ॥१४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वकर्मा त्वा सादयत्वन्तरिक्षस्य पृष्ठे ज्योतिष्मतीम् । विश्वस्मै प्राणायापानाय व्यानाय विश्वञ्ज्योतिर्यच्छ । वायुष्टेधिपतिस्तयादेवतयाङ्गिरस्वद्धरुवा सीद ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वकर्मेति विश्वऽकर्मा। त्वा। सादयतु। अन्तरिक्षस्य। पृष्ठे। ज्योतिष्मतीमिति ज्योतिःऽमतीम्। विश्वस्मै। प्राणाय। अपानाय। व्यानाय। विश्वम्। ज्योतिः। यच्छ। वायुः। ते। अधिपतिरित्यधिऽपतिः। तया। देवतया। अङ्गिरस्वत्। ध्रुवा। सीद॥१४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 14; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे स्त्रि! या ज्योतिष्मतीं त्वा विश्वस्मै प्राणायाऽपानाय व्यानायाऽन्तरिक्षस्य पृष्ठे विश्वकर्मा सादयतु, सा त्वं विश्वं ज्योतिर्यच्छ। यो वायुरिव तेऽधिपतिरस्ति तया देवतया सह ध्रुवांगिरस्वत् सीद॥१४॥

    पदार्थः

    (विश्वकर्मा) सकलेष्टक्रियः (त्वा) त्वाम् (सादयतु) (अन्तरिक्षस्य) जलस्य (पृष्ठे) उपरिभागे (ज्योतिष्मतीम्) बहु ज्योतिर्विद्यते यस्यास्ताम् (विश्वस्मै) सर्वस्मै (प्राणाय) (अपानाय) (व्यानाय) (विश्वम्) संपूर्णम् (ज्योतिः) विज्ञानम् (यच्छ) गृहाण (वायुः) प्राण इव प्रियः (ते) तव (अधिपतिः) (तया) (देवतया) (अङ्गिरस्वत्) सूर्यवत् (ध्रुवा) दृढा (सीद)। [अयं मन्त्रः शत॰८.३.२.२-४ व्याख्यातः]॥१४॥

    भावार्थः

    स्त्री ब्रह्मचर्येण स्वयं विदुषी भूत्वा शरीरात्मबलवर्द्धनाय स्वापत्येभ्यो विज्ञानं सततं प्रदद्यादिति ग्रीष्मर्त्तुव्याख्यानं कृतम्॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर भी उक्त विषय ही अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे स्त्रि! जिस (ज्योतिष्मतीम्) बहुत विज्ञान वाली (त्वा) तुझ को (विश्वस्मै) सब (प्राणाय) प्राण (अपानाय) अपान और (व्यानाय) व्यान की पुष्टि के लिये (अन्तरिक्षस्य) जल के (पृष्ठे) ऊपरले भाग में (विश्वकर्मा) सब शुभ कर्मों का चाहने हारा पति (सादयतु) स्थापित करे सो तू (विश्वम्) सम्पूर्ण (ज्योतिः) विज्ञान को (यच्छ) ग्रहण कर, जो (वायुः) प्राण के समान प्रिय (ते) तेरा (अधिपतिः) स्वामी है, (तया) उस (देवतया) देवस्वरूप पति के साथ (ध्रुवा) दृढ़ (अङ्गिरस्वत्) सूर्य्य के समान (सीद) स्थिर हो ॥१४॥

    भावार्थ

    स्त्री को उचित है कि ब्रह्मचर्य्याश्रम के साथ आप विद्वान् हो के शरीर, आत्मा का बल बढ़ाने के लिये अपने सन्तानों को निरन्तर विज्ञान देवे। यहां तक ग्रीष्म ऋतु का व्याख्यान पूरा हुआ॥१४॥

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    विषय

    राजा विश्वकर्मा और पति के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    ( विश्वकर्मा ) प्रजापालक राजा ( अन्तरिक्षस्य पृष्ठे ) समस्त प्रज्ञा के पूज्य पुरुष के आधार पर ( ज्योतिष्मतीम् त्वा ) ज्योतिः अर्थात् सूर्य के समान तेजस्वी पुरुषों से युक्त तुझको ( सादयतु ) स्थापित करे । तू ( विश्वस्मै ) सब को ( प्राणाय अपनाय व्यानाय ) शरीर में प्राण, अपान और ध्यान के समान राष्ट्र के सब प्रकार के बल सम्पादन के लिये ( ज्योतिः यच्छ ) ज्योति को प्रदान कर । ( वायुः ते अधिपतिः ) शरीर में जिस प्रकार प्रारण समस्त शरीर की चेतना का स्वामी है उसी प्रकार वायु के समान शत्रु रूप वृक्षों को उखाड़ फेंकने में समर्थ, बलवान् पुरुष तुझ राजशक्ति का ( अधिपतिः ) अधिपति है। तू ( तया देवतया ) इस देवस्वरूप अधिपति का ( अंगिरस्वत्) तेजस्विनी होकर ( ध्रुवा सीद ) ध्रुव स्थिर होकर रह । शत० ८ । ३ । २ । ३ ।४॥ स्त्री के पक्ष में- विश्वकर्मा तेरा पति, जलों के ऊपर सूर्य प्रभा के समान तुझ को अपने हृदय में प्राणादि को उन्नति के लिये स्थापित करता है। तू सब को ज्योति प्रदान कर। प्राण के समान प्रिय पति तेरा अधिपति है। तू उसके संग स्थिर होकर रह ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वेदेवा ऋषयः । वायुर्देवता । स्वराड् ब्राह्मी बृहती । मध्यमः ॥

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    विषय

    ज्योतिष्मती

    पदार्थ

    १. (विश्वकर्मा) = सारे संसार के कर्मों का सञ्चालक वह प्रभु तुझे (अन्तरिक्षस्य) = हृदयान्तरिक्ष की (पृष्ठे) = पीठ पर (सादयतु) = बिठाये। जैसे घुड़सवार घोड़े की पीठ पर अविचल होकर बैठता है, उसी प्रकार तू मन पर अधिष्ठित हो । मन पूर्णरूप से तेरे वश में हो अथवा हृदयान्तरिक्ष की श्री [ ऐ० ६।५] में तुझे स्थापित करे। तू (ज्योतिष्मतीम्) = ज्योतिर्मय है। तेरा जीवन ज्ञान की ज्योति से जगमगा रहा है। ३. ज्ञान की ज्योति से दीप्त होकर तू (प्राणाय) = प्राणशक्ति के लिए, अपानाय दोषों को दूर करनेवाली अपानशक्ति के लिए तथा (व्यानाय) = सारे शरीर में व्याप्त होकर नाड़ीसंस्थान को उत्तम रखनेवाली व्यानशक्ति के लिए विश्वस्मै इन सबके लिए समर्थ हो। ४. इस प्रकार प्राणापान, व्यान से 'भूर्भुवः स्वः' से अलंकृत होकर 'स्वस्थ, ज्ञानशीला व जितेन्द्रिय' बनकर तू अपने सन्तानों को भी (विश्वं ज्योतिः यच्छ) = सम्पूर्ण ज्ञान देनेवाली बन। ५. (वायुः ते अधिपतिः) = तेरा गुण सम्पन्न पति क्रियाशील हो । क्रियाशीलता से दोषों का गन्धन - हिंसन करनेवाला हो। ६. (तया देवतया) = उस देवतुल्य पति के साथ (अङ्गिरस्वत्) = अङ्ग-प्रत्यङ्ग में रसवाले व्यक्ति की भाँति तू (ध्रुवा सीद) = ध्रुव होकर रहनेवाली बन।

    भावार्थ

    भावार्थ- पत्नी का जीवन भी ज्योतिर्मय हो, जिससे वह सन्तानों को भी ज्ञान दे सके।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    स्त्रीने ब्रह्मचर्य आश्रम पाळून विदुषी बनावे व शरीर आणि आत्म्याचे बल वाढविण्यासाठी आपल्या संतानांना सदैव ज्ञान द्यावे. या मंत्राप्रमाणे ग्रीष्म ऋतूची व्याख्या पूर्ण झालेली आहे.

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    विषय

    पुढील मंत्रातही तोच विषय वर्णित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे स्त्री (पत्नी) तू (ज्योतिष्मतीम्) विज्ञानवती आहेस. (त्वा) तुला (प्राणाय) (अपानाय) (व्यानाय) या (विश्वेस्मै) सर्व वायूंच्या पुष्टीकरिता (वायूंच्या नियमन, संयमादीकरिता) (अन्तरिक्षस्य) पाण्याच्या (पृष्ठे) भागावर (पुष्कळजल असलेल्या भूप्रदेशावर (विश्वकर्मा) शुभ कर्म करणार्‍या तुझ्या पतीने (सादयतु) नियुक्त करावे. (तुला सरोवर, कूप वापी असलेल्या जलमय प्रदेशात राहण्याची सोय करावी) (तेथे प्राणनियमन शक्य आहे) तू (विश्वम्) समस्त (ज्योति:) विमानाचे (यच्छ) ग्रहण कर आणि (वायु:) प्राणाहून अधिक प्रिय असा (ते) तुझा जो (अधिपति:) स्वामी आहे (तया) त्या देवतया) देवस्यरूप पतीबरोबर (गृहाश्रमात) (धु्रवा) दृढपणे (अड्गिरस्वत्) सूयार्यप्रमाणे प्रकाशित होऊन सिद्) रहा ॥14॥

    भावार्थ

    भावार्थ - स्त्रियांना उचित आहे की ब्रह्मचर्याश्रमातमधे स्वयं विद्यावान झाल्यानंतर शारीरिक आणि आत्मिक बळ वाढविण्यासाठी (स्वत: यत्न करावे आणि) आपल्या संततीला निरंतन ज्ञान-विज्ञान देत रहावे. येथपर्यंत ग्रीष्मऋतूविषयीचे व्याख्यान संपूर्ण झाले ॥14॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O woman, may thy husband, the doer of various noble deeds, establish like sun-light on water, in his heart, thee, full of knowledge. Grant full light to all the members of the family for strengthening their Pran, Apan, Vyan. Thy husband dear like vital breath, is thy Lord. Live constantly with thy godly husband like the sun.

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    Meaning

    Lady of light (mistress of the house), may Vishwakarma, lord of noble actions/your husband consecrate you on top of the sky for the sake of total prana, apana and vyana energy (of family life). Receive universal light and radiate the light of joy and peace. Vayu/your husband, is your lord sustainer. Stay firm with that divine power, dear as the breath of life, and be steadfast as the light of the sun.

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    Translation

    May the supreme Mason settle you, the luminous, on the back of the mid-space. May you control all the light for all the vital breath, for out-breath, and for throughbreath. The wind is your lord. May you be seated firmly with that bounty of Nature shining bright. (1)

    Notes

    Compare with the verse XIV. 12. There it was प्रथस्वतीं, here it is ज्योष्मतीं, full of light or radiating light. Vayuh te adhipatih, the wind or the elemental air is your lord. Jyotih yaccha, ज्योति: प्रयच्छ, give light Also, control or regulate.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ উক্ত বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে স্ত্রী ! যে (জ্যোতিষ্মতীম্) বহু বিজ্ঞান যুক্তা (ত্বা) তোমাকে (বিশ্বস্মৈ) সকল (প্রাণায়) প্রাণ (অপানায়) অপান এবং (ব্যানায়) ব্যানের পুষ্টির জন্য (অন্তরিক্ষস্য) জলের (পৃষ্ঠে) উপরের অংশে (বিশ্বকর্মা) সব শুভ কর্ম্মের কামনাকারী পতি (সাদয়তু) স্থাপিত করে সুতরাং তুমি (বিশ্বম্) সম্পূর্ণ (জ্যোতিঃ) বিজ্ঞানকে (য়চ্ছ) গ্রহণ কর, যে (বায়ুঃ) প্রাণ-সমান প্রিয় (তে) তোমার (অধিপতিঃ) স্বামী (তয়া) সেই (দেবতয়া) দেবস্বরূপ পতি সহ (ধ্রুবা) দৃঢ় (অঙ্গিরস্বৎ) সূর্য্যের সমান (সীদ) স্থির হও ॥ ১৪ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- স্ত্রীর উচিত যে, ব্রহ্মচর্য্যাশ্রম সহ স্বয়ং বিদ্বান্ হইয়া শরীর আত্মার বলবৃদ্ধির জন্য স্বীয় সন্তানদিগকে নিরন্তর বিজ্ঞান প্রদান করিবে । এ পর্যন্ত গ্রীষ্ম ঋতুর ব্যাখ্যান পূর্ণ হইল ॥ ১৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    বি॒শ্বক॑র্মা ত্বা সাদয়ত্ব॒ন্তরি॑ক্ষস্য পৃ॒ষ্ঠে জ্যোতি॑ষ্মতীম্ ।
    বিশ্ব॑স্মৈ প্রা॒ণায়া॑ऽপা॒নায়॑ ব্যা॒নায়॒ বিশ্বং॒ জ্যোতি॑র্য়চ্ছ ।
    বা॒য়ুষ্টেऽধি॑পতি॒স্তয়া॑ দে॒বত॑য়াঙ্গির॒স্বদ্ ধ্রু॒বা সী॑দ ॥ ১৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বিশ্বকর্মেত্যস্য বিশ্বেদেবা ঋষয়ঃ । বায়ুর্দেবতা । স্বরাড্ ব্রাহ্মী বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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