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यजुर्वेद अध्याय - 14

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  • यजुर्वेद - अध्याय 14/ मन्त्र 27
    ऋषिः - विश्वदेव ऋषिः देवता - ऋतवो देवताः छन्दः - भुरिगतिजगती, भुरिग्ब्राही बृहती स्वरः - निषादः, मध्यमः
    86

    सह॑श्च सह॒स्यश्च॒ हैम॑न्तिकावृ॒तूऽ अ॒ग्नेर॑न्तःश्ले॒षोऽसि॒ कल्पे॑तां॒ द्यावा॑पृथि॒वी कल्प॑न्ता॒माप॒ऽ ओष॑धयः॒ कल्प॑न्ताम॒ग्नयः॒ पृथ॒ङ् मम॒ ज्यैष्ठ्या॑य॒ सव्र॑ताः। येऽ अ॒ग्नयः॒ सम॑नसोऽन्त॒रा द्यावा॑पृथि॒वीऽ इ॒मे। हैम॑न्तिकावृ॒तूऽ अ॑भि॒कल्प॑माना॒ऽ इन्द्र॑मिव दे॒वाऽ अ॑भि॒संवि॑शन्तु॒ तया॑ दे॒वत॑याङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वे सी॑दतम्॥२७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सहः॑। च। स॒ह॒स्यः᳖। च॒। हैम॑न्तिकौ। ऋ॒तू इत्यृ॒तू। अ॒ग्नेः। अ॒न्तः॒श्ले॒ष इत्य॑न्तःऽश्ले॒षः। अ॒सि॒। कल्पे॑ताम्। द्यावा॑पृथि॒वी इति॒ द्यावा॑पृथि॒वी। कल्प॑न्ताम्। आ॑पः। ओष॑धयः। कल्प॑न्ताम्। अ॒ग्नयः॑। पृथ॑क्। मम॑। ज्यैष्ठ्या॑य। सव्र॑ता॒ इति॒ सऽव्र॑ताः। ये। अ॒ग्नयः॑। सम॑नस॒ इति॒ सऽम॑नसः। अ॒न्त॒रा। द्यावा॑पृथि॒वी इति॒ द्यावा॑पृथि॒वी। इ॒मे इती॒मे। हैम॑न्तिकौ। ऋ॒तू इत्यृ॒तू। अ॒भि॒कल्प॑माना॒ इत्य॑भि॒ऽकल्प॑मानाः। इन्द्र॑मि॒वेतीन्द्र॑म्ऽइव। दे॒वाः। अ॒भि॒संवि॑श॒न्त्वित्य॑भि॒ऽसंवि॑शन्तु। तया॑। दे॒वत॑या। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वे इति॑ ध्रु॒वे। सी॒द॒त॒म् ॥२७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहश्च सहस्यश्च हैमन्तिकावृतूऽअग्नेरन्तःश्लेषोसि कल्पेतान्द्यावापृथिवी कल्पन्तामापऽओषधयः कल्पन्तामग्नयः पृथङ्मम ज्यैष्ठ्याय सव्रताः । येऽअग्नयः समनसोन्तरा द्यावापृथिवीऽइमे हैमन्तिकावृतूऽअभिकल्पमानाऽइन्द्रमिव देवाऽअभिसँविशन्तु तया देवतयाङ्गिरस्वद्धरुवे सीदतम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सहः। च। सहस्यः। च। हैमन्तिकौ। ऋतू इत्यृतू। अग्नेः। अन्तःश्लेष इत्यन्तःऽश्लेषः। असि। कल्पेताम्। द्यावापृथिवी इति द्यावापृथिवी। कल्पन्ताम्। आपः। ओषधयः। कल्पन्ताम्। अग्नयः। पृथक्। मम। ज्यैष्ठ्याय। सव्रता इति सऽव्रताः। ये। अग्नयः। समनस इति सऽमनसः। अन्तरा। द्यावापृथिवी इति द्यावापृथिवी। इमे इतीमे। हैमन्तिकौ। ऋतू इत्यृतू। अभिकल्पमाना इत्यभिऽकल्पमानाः। इन्द्रमिवेतीन्द्रम्ऽइव। देवाः। अभिसंविशन्त्वित्यभिऽसंविशन्तु। तया। देवतया। अङ्गिरस्वत्। ध्रुवे इति ध्रुवे। सीदतम्॥२७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 14; मन्त्र » 27
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ हेमन्तर्त्तुविधानमाह॥

    अन्वयः

    हे मित्र! यौ मम ज्यैष्ठ्याय सहश्च सहस्यश्च हैमन्तिकावृतू अङ्गिरस्वत् सीदतम्, यस्याग्नेरन्तःश्लेष इवासि, स त्वं तेन द्यावापृथिवी कल्पेतामाप ओषधयोऽग्नयश्च पृथक् कल्पन्तामिति जानीहि। येऽग्नय इवान्तरा सव्रताः समनस इमे ध्रुवे द्यावापृथिवी कल्पन्तामिन्द्रमिव हैमन्तिकावृतू अभिकल्पमाना देवा अभिसंविशन्तु, ते तया देवतया सह युक्ताहारविहारा भूत्वा सुखिनः स्युः॥२७॥

    पदार्थः

    (सहः) बलकारी मार्गशीर्षः (च) (सहस्यः) सहसि बले भवः पौषः (च) (हैमन्तिकौ) हेमन्ते भवौ मार्गशीर्षः पौषश्च मासौ (ऋतू) स्वलिङ्गप्रापकौ (अग्नेः) विद्युतः (अन्तःश्लेषः) मध्यः स्पर्शः (असि) (कल्पेताम्) (द्यावापृथिवी) (कल्पन्ताम्) (आपः) (ओषधयः) (कल्पन्ताम्) (अग्नयः) श्वैत्येन युक्ताः पावकाः (पृथक्) (मम) (ज्यैष्ठ्याय) ज्येष्ठानां वृद्धानां भावाय (सव्रताः) नियमैः सहिताः (ये) (अग्नयः) (समनसः) समानं मनो येभ्यस्ते (अन्तरा) आभ्यन्तरे (द्यावापृथिवी) (इमे) (हैमन्तिकौ) उक्तौ (ऋतू) (अभिकल्पमानाः) आभिमुख्येन समर्थयन्तः (इन्द्रमिव) यथैश्वर्यम् (देवाः) दिव्यगुणाः (अभिसंविशन्तु) (तया) (देवतया) (अङ्गिरस्वत्) (ध्रुवे) दृढे (सीदतम्) तिष्ठेताम्। [अयं मन्त्रः शत॰८.४.२.१४ व्याख्यातः]॥२७॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः! यथा विद्वांसः स्वसुखाय हेमन्तर्त्तौ पदार्थान् सेवेरन् तथैवान्यानपि सेवयेयुः॥२७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब हेमन्त ऋतु के विधान को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मित्रजन! जो (मम) मेरे (ज्यैष्ठ्याय) वृद्ध श्रेष्ठ जनों के होने के लिये (सहः) बलकारी अगहन (च) और (सहस्यः) बल में प्रवृत्त हुआ पौष (च) ये दोनों महीने (हैमन्तिकौ) (ऋतू) हेमन्त ऋतु में हुए अपने चिह्न जानने वाले (अङ्गिरस्वत्) उस ऋतु के प्राण के समान (सीदतम्) स्थिर हैं, जिस ऋतु के (अन्तःश्लेषः) मध्य में स्पर्श होता है, उस के समान तू (असि) है, सो तू उस ऋतु से (द्यावापृथिवी) आकाश और भूमि (कल्पेताम्) समर्थ हों, (आपः) जल और (ओषधयः) ओषधियां और (अग्नयः) सफेदाई से युक्त अग्नि (पृथक्) पृथक्-पृथक् (कल्पन्ताम्) समर्थ हों, ऐसा जान (ये) जो (अग्नयः) अग्नियों के तुल्य (अन्तरा) भीतर प्रविष्ट होने वाले (सव्रताः) नियमधारी (समनसः) अविरुद्ध विचार करने वाले लोग (इमे) इन (ध्रुवे) दृढ़ (द्यावापृथिवी) आकाश और भूमि को (कल्पन्ताम्) समर्थित करें, (इन्द्रमिव) ऐश्वर्य के तुल्य (हैमन्तिकौ) (ऋतू) हेमन्त ऋतु के दोनों महीनों को (अभिकल्पमानाः) सन्मुख होकर समर्थ करने वाले (देवाः) दिव्य गुण बिजुली के समान (अभिसंविशन्तु) आवेश करें। वे सज्जन लोग (तया) उस (देवतया) प्रकाशस्वरूप परमात्मा देव के साथ प्रेमबद्ध हो के नियम से आहार और विहार कर के सुखी हों॥२७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्वानों को योग्य है कि यथायोग्य सुख के लिये हेमन्त ऋतु में पदार्थों का सेवन करें और वैसे ही दूसरों को भी सेवन करावें॥२७॥

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    विषय

    हेमन्त, राजा का वर्णन।

    भावार्थ

    ( सहः सहस्यः च ) सह और सहस्य ये दोनों ( हेमन्तको ऋतू ) हेमन्त ऋतु के भाग हैं । ( अग्नेः अन्तः सीदतम् ० ) इत्यादि व्याख्या देखो अ० १२ । म० २५ ॥ शत० ८ । ४ । २ । १४ ॥

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    विषय

    सह + सहस्य = हेमन्त

    पदार्थ

    १. (सहः च) = तुम सहन शक्तिवाले बनो। संसार में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सहनशक्ति ही है। स्थितप्रज्ञ व्यक्ति मानापमान में तुल्य रहता है, स्तुति-निन्दा उसे विचलित नहीं करती । (सहस्यः च) = तुम बल में उत्तम बनो। 'सह' मार्गशीर्ष मास का नाम है। जो व्यक्ति [मृग अन्वेषणे] आत्मान्वेषण करनेवालों का मूर्धन्य होगा वह अपने दोषों को जानता हुआ वस्तुतः सहनशील होगा। उसे अपनी निर्दोषता का अभिमान न होगा। 'सहस्य' पौष है-सबल व्यक्ति अपने में गुणों का पोषण करता है। २. इस प्रकार सहनशील व सबल बनकर आप दोनों [पति-पत्नी] (हैमन्तिकौ) = [हि गतौ वृद्धौ च] गतिशील व वृद्धिशील बनों । ३. (ऋतू) = आप दोनों बड़ी व्यवस्थित गतिवाले बनों । ऋतुओं की भाँति आपका जीवन व्यवस्थित हो। ४. (अग्नेः अन्तः श्लेषः असि) = अपने अन्दर हृदयाकाश में उस प्रभु का आलिङ्गन करनेवाले बनों और इस प्रकार कामना करो कि ५. (द्यावापृथिवी कल्पेताम्) = मेरा मस्तिष्क व शरीर शक्तिशाली बने। (आपः ओषधयः कल्पन्ताम्) = जल व ओषधियाँ मुझे शक्तिशाली बनाएँ। ६. (अग्नयः) = माता-पिता व आचार्यरूप अग्नियाँ (सव्रताः) = समान व्रतवाले होकर मेरी उन्नति के साधनरूप एक लक्ष्यवाले होकर (मम ज्यैष्ठ्याय) = मेरी ज्येष्ठता - उन्नति के लिए (पृथक्) = अलग-अलग (कल्पन्ताम्) = समर्थ हों। पाँच वर्ष तक माता मेरे चरित्र के निर्माण के लिए यत्नशील हो। आठ वर्ष तक पिता मुझे शिष्टाचार सम्पन्न बनाएँ और पच्चीस वर्ष तक आचार्य मुझे ज्ञान से व्याप्त कर दें। ७. मेरे माता-पिता आचार्य ही क्या, सभी (अग्नयः) = पुरोहित, उपदेशक व विद्वान् आदि (ये) = जो (इमे द्यावापृथिवी अन्तरा) = इन द्युलोक व पृथिवीलोक के बीच में हैं, वे सब (समनसः) = समान मनवाले हों कि आगे आनेवाली इस पीढ़ी के जीवन को खूब सुन्दर बनाना है । ८. (हैमन्तिकौ ऋतू) = पूर्वोक्त प्रकार से माता-पिता व आचार्य से शिक्षित होकर गृहस्थ में प्रवेश करनेवाले पति-पत्नी क्रियाशील व वृद्धिशील हों । निरन्तर गतिवाले और सदा आगे बढ़नेवाले हों। (ऋतू) = ऋतुओं के अनुसार व्यवस्थित गतिवाले हों। (अभिकल्पमाना) = अपनी ऐहिक व पारलौकिक उन्नति को सिद्ध करनेवाले हों। बाह्य व अन्तःशक्ति का साधन करें। इहलोक के अभ्युदय व परलोक के निःश्रेयसवाले हों । ९. (इन्द्रम् इव) = इन्द्र के समान पूर्ण जितेन्द्रिय के समान बने हुए तुझमें (देवा:) = सब दिव्य गुण अभिसंविशन्तु प्रविष्ट हों । १०. इसी उद्देश्य से (तया देवताया) = उस महती देवता के साथ सम्पर्क से (अङ्गिरस्वत्) = अङ्ग अङ्ग में रसवाले होकर (ध्रुवे सीदतम्) = इस घर में ध्रुव होकर स्थित होओ। घर ही तुम्हारा स्थान हो, न कि क्लब ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सहनशक्ति व बल का सम्पादन करके हम गतिशील व प्रगतिशील बनें। हमारा जीवन व्यवस्थित हो। हम जलों व ओषधियों का ही सेवन करें। यह ध्यान रक्खें कि 'मांस' न खाएँ, क्योंकि वह तो मुझे ही खा जाएगा। प्रभु-उपासना करते हुए हम घर में ध्रुव निवासवाले हों, वहाँ हमारा जीवन बड़ा मर्यादित हो ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वानांनी यथायोग्य सुखासाठी हेमंत ऋतूमध्ये पदार्थांचे सेवन करावे व इतरांकडूनही करवून घ्यावे.

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    विषय

    पुढील मंत्रात हेमंत ऋतू विषयी वर्णन केले आहे-

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे माझ्या मित्रा, (मम) माझ्या (घरातील) वृध्दजनांसाठी हा (सह:) बलकारी मार्गशीर्ष (च) आणि (सहस्त्र) शक्तिदायक पौष महिना(च) म्हणजे हे दोन्ही महिने (हैमन्तिको) (ऋतू) हेमंत ऋतूत आपल्या गुणकारी प्रभाव दाखविणारे आहेत. तसेच हे महिने (अड्गिरस्वत्) त्या ऋतूचे प्राणाप्रमाणे (सीदतम्) असतात. या ऋतूच्या (अन्त:श्लेष:) मध्यभागात (जसे मधुर शीतलस्पर्श वाटतो, तसा तू देशील (असि) आहेस. तुझ्यासाठी या ऋतूत (द्यावा-पृथिवी) आकाश आणि पृथ्वी (कल्पेताम्) समर्थ वा अनुकूल होवोत. (आप:) जल आणि (ओषधय:) औषधी तसेच (अग्नय:) विविध प्रकारच्या अग्नी (पृथक) आपले भिन्न-भिन्न अनुकूल प्रभाव देणारे कल्पन्ताम् होतात (थंडीमुळे शेकोटी, उष्णता, प्रकाश आदीमुळे अग्नीच्या रुपाने हिवाळा सुखकर होवो) हे तू जाणून घे. याशिवाय (अग्नय:) अग्नीप्रमाणे (अन्तरा) आतपर्यंत शिरणारे (विषयात व्यापकपणे शोध घेणारे) (ये) जी (सव्रता:) नियमाने वागणारी (समनस:) एकमनाने चालणारी माणसे (इमे) या (ध्रुवे) दृढ (द्यावापृथिवी) आकाश आणि भूमीला (कल्पन्ताम्) अनुकूल करून घेतात, त्यांनी (इन्द्रमिव) ऐश्वर्यवान मनुष्याप्रमाणे या (हैमन्तिक्तै) (ऋतू) हेमन्त ऋतूच्या दोन्ही महिन्यांच्या सामोरे जाऊन (अभिकल्पयाना) स्वत:ला अधिकाधिक सामर्थ्यवान करून (देवा:) दिव्यगुणयुक्त विद्युतेप्रमाणे (अभिसंविशन्तु) स्वत:ला उद्युक्त करून घ्यावे. त्या सुजनांनी (तया) त्या (देवतया) प्रकाशरूप परमेश्वराची प्रेमाने स्तुती करीत (या हेमंत ऋतूत) आहार आणि विहाराचे सर्व नियम पाळीत आणि सुखी व्हावे. ॥27॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. विद्वान शहाण्या माणसानी हेमंत ऋतूत सुख अनुभवण्यासाठी यथोचित पदार्थांचे प्रमाणात सेवन करावे. शिवाय इतरांनाही त्या सुखकर पदार्थांचे सेवन करण्यास सांगावे. ॥27॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    For my aged elders, the mid November to mid January months constitute the winter season. These two months are the life and soul of winter. In this season there is a slight touch of heat. In that season let Sky and Earth be competent to do their duty; let waters, medicinal plants, and bright fires be separately vigorous. Men of contemplative mood, regulated in life, unanimous in purpose should make the strong Earth and Sky perform their duty. Let the learned keeping in view these two glorious months, enter them. Let the good people full of affection for God attain to happiness by regulating their diet and recreation.

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    Meaning

    The stimulating Margashirsha and invigorating Pausha are the months of Hemanta (winter). You are the innermost love and power of Agni, universal fire of life. May the heaven and earth be favourable, may the waters invigorate, may the herbs rejuvenate, and may all the modes of vital fire, each true to its nature and function, strengthen us for honour and excellence. Just as the powers of nature join to serve Indra, universal divine energy, so may all the orders of agni in heaven and earth, integrated and cooperative, strengthening the winter months, join to bless us in the search and endeavour for excellence. May the winter months of nature and humanity stay firm with that universal power of Agni like the breath of life with Spirit.

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    Translation

    Sahas and sahasya (margasirsa and pausa i. e. November and December) are the two months of the winter season. You are the internal cementing force of the fire. May the heaven and earth help, may the waters and the herbs help, may the fires also help individually with unity of action in establishing my superiority. May all those fires, which exist between heaven and earth, oneminded and helping in this performance, gather around these two months of the winter season, just as the enlightened ones gather around the respledent Lord. May both of you be seated firmly by that divinity shining bright. (1)

    Notes

    Compare from Yajuh. XIII. 25, and XIV. 15-16. Sahas and sahasya, mdrgaSirsa and pausa, (mid-November to mid-December and mid-December to mid-January).

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ হেমন্তর্ত্তুবিধানমাহ ॥
    এখন হেমন্ত ঋতুর বিধানকে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মিত্রগণ ! (মম) আমার (জ্যৈষ্ঠ্যায়) বৃদ্ধ শ্রেষ্ঠ দিগের হওয়ার জন্য (সহঃ) বলকারী অগ্রহায়ণ (চ) এবং (সহস্যঃ) বলে প্রবৃত্ত পৌষ (চ) এই দুই মাস (হৈমন্তিকী) (ঋতু) হেমন্ত ঋতুতে হওয়া স্বীয় চিহ্ন প্রাপক (অঙ্গিরস্বৎ) সেই ঋতুর প্রাণের সমান (সীদতম্) স্থির, যে ঋতুর (অন্তঃশ্লেষ) মধ্যে স্পর্শ হয় তাহার সমান তুমি (অসি) আছো, সুতরাং তুমি সেই ঋতু হইতে (দ্যাবাপৃথিবী) আকাশ ও ভূমি (কল্পেতাম্) সমর্থ হও । (আপঃ) জলও (ওষধয়) ওষধি সকল এবং (অগ্নয়ঃ) শ্বেতযুক্ত পাবক (পৃথক্) পৃথক্ পৃথক্ (কল্পতাম্) সমর্থ হও । এমন জানিয়া (য়ে) যাহা (অগ্নয়ঃ) অগ্নিতুল্য (অন্তরা) ভিতরে প্রবিষ্ট হওয়া (সব্রতাঃ) নিয়মধারী (সমনসঃ) অবিরুদ্ধ বিচারযুক্ত লোকেরা (ইমে) এই সব (ধ্রুবে) দৃঢ় (দ্যাবাপৃথিবী) আকাশ ও ভূমিকে (কল্পন্তাম্) সমর্থিত করে । (ইন্দ্রমিব) ঐশ্বর্য্যতুল্য (হৈমন্তিকৌ) (ঋতু) হেমন্ত ঋতুর দুই মাসকে (অভিকল্পমানাঃ) সম্মুখ হইয়া সমর্থকারীগণ (দেবাঃ) দিব্য গুণ বিদ্যুতের সমান (অভিসংবিশন্তু) আবেশ করিবে । সেই সব সজ্জন লোকেরা (তয়া) সেই (দেবতয়া) প্রকাশ স্বরূপ পরমাত্মা দেব সহ প্রেমবদ্ধ হইয়া নিয়মপূর্বক আহার-বিহার করিয়া সুখী হইবে ॥ ২৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে মনুষ্যগণ ! যেমন বিদ্বান্গণ যথাযোগ্য সুখের জন্য হেমন্ত ঋতুতে পদার্থগুলির সেবন করিবে সেইরূপ অন্যেকেও সেবন করাইবে ॥ ২৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    সহ॑শ্চ সহ॒স্য᳖শ্চ॒ হৈম॑ন্তিকাবৃ॒তূऽ অ॒গ্নের॑ন্তঃশ্লে॒ষো᳖ऽসি॒ কল্পে॑তাং॒ দ্যাবা॑পৃথি॒বী কল্প॑ন্তা॒মাপ॒ऽ ওষ॑ধয়ঃ॒ কল্প॑ন্তাম॒গ্নয়ঃ॒ পৃথ॒ঙ্ মম॒ জ্যৈষ্ঠ্যা॑য়॒ সব্র॑তাঃ । য়েऽ অ॒গ্নয়ঃ॒ সম॑নসোऽন্ত॒রা দ্যাবা॑পৃথি॒বীऽ ই॒মে । হৈম॑ন্তিকাবৃ॒তূऽ অ॑ভি॒কল্প॑মানা॒ऽ ইন্দ্র॑মিব দে॒বাऽ অ॑ভি॒সংবি॑শন্তু॒ তয়া॑ দে॒বত॑য়াঙ্গির॒স্বদ্ ধ্রু॒বে সী॑দতম্ ॥ ২৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সহশ্চেত্যস্য বিশ্বদেব ঋষিঃ । ঋতবো দেবতাঃ । পূর্বস্য ভুরিগতিজগতী ছন্দঃ । নিষাদঃ স্বরঃ । য়ে অগ্নয় ইত্যুত্তরস্য ভুরিগ্ব্রাহ্মী বৃহতী ছন্দঃ । মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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