यजुर्वेद - अध्याय 14/ मन्त्र 18
ऋषिः - विश्वदेव ऋषिः
देवता - छन्दांसि देवताः
छन्दः - भुरिगतिजगती
स्वरः - निषादः
107
मा छन्दः॑ प्र॒मा छन्दः॑ प्रति॒मा छन्दो॑ऽ अस्री॒वय॒श्छन्दः॑ प॒ङ्क्तिश्छन्द॑ऽ उ॒ष्णिक् छन्दो॑ बृह॒ती छन्दो॑ऽनु॒ष्टुप् छन्दो॑ वि॒राट् छन्दो॑ गाय॒त्री छन्द॑स्त्रि॒ष्टुप् छन्दो॒ जग॑ती॒ छन्दः॑॥१८॥
स्वर सहित पद पाठमा। छन्दः॑। प्र॒मेति॑ प्र॒ऽमा। छन्दः॑। प्र॒ति॒मेति॑ प्रति॒ऽमा। छन्दः॑। अ॒स्री॒वयः॑। छन्दः॑। प॒ङ्क्तिः। छन्दः॑। उ॒ष्णिक्। छन्दः॑। बृ॒ह॒ती। छन्दः॑। अ॒नु॒ष्टुप्। अ॒नु॒स्तुबित्य॑नु॒ऽस्तुप्। छन्दः॑। वि॒राडिति॑ वि॒ऽराट्। छन्दः॑। गा॒य॒त्री। छन्दः॑। त्रि॒ष्टुप्। त्रि॒स्तुबिति॑ त्रि॒ऽस्तुप्। छन्दः॑। जग॑ती। छन्दः॑ ॥१८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मा च्छन्दः प्रमा च्छन्दः प्रतिमा च्छन्दोऽअम्रीवयश्छन्दः पङ्क्तिश्छन्दऽउष्णिक्छन्दो बृहती छन्दोनुष्टुप्छन्दो विराट्छन्दो गायत्री छन्दस्त्रिष्टुप्छन्दो जगती च्छन्दः ॥
स्वर रहित पद पाठ
मा। छन्दः। प्रमेति प्रऽमा। छन्दः। प्रतिमेति प्रतिऽमा। छन्दः। अस्रीवयः। छन्दः। पङ्क्तिः। छन्दः। उष्णिक्। छन्दः। बृहती। छन्दः। अनुष्टुप्। अनुस्तुबित्यनुऽस्तुप्। छन्दः। विराडिति विऽराट्। छन्दः। गायत्री। छन्दः। त्रिष्टुप्। त्रिस्तुबिति त्रिऽस्तुप्। छन्दः। जगती। छन्दः॥१८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
स्त्रीपुरुषैः कथं विज्ञानं वर्द्धनीयमित्याह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! युष्माभिर्मा छन्दः प्रमा छन्दः प्रतिमा छन्दोऽस्रीवयश्छन्दः पङ्क्तिश्छन्द उष्णिक् छन्दो बृहती छन्दोऽनुष्टुप् छन्दो विराट् छन्दो गायत्री छन्दस्रिष्टुप् छन्दो जगती छन्दः स्वीकृत्य विज्ञाय च सुखयितव्यम्॥१८॥
पदार्थः
(मा) यया मीयते सा (छन्दः) आनन्दकरी (प्रमा) यया प्रमीयते सा प्रज्ञा (छन्दः) बलम् (प्रतिमा) प्रतिमीयते यया क्रियया सा (छन्दः) (अस्रीवयः) यदस्यति कामयते च तदस्रीवयोऽन्नादिकम् (छन्दः) बलकारि (पङ्क्तिः) पञ्चावयवो योगः (छन्दः) प्रकाशः (उष्णिक्) स्नेहनम् (छन्दः) (बृहती) महती प्रकृतीः (छन्दः) (अनुष्टुप्) सुखानामनुष्टम्भनम् (छन्दः) (विराट्) विविधविद्याप्रकाशनम् (छन्दः) (गायत्री) या गायन्तं त्रायते सा (छन्दः) (त्रिष्टुप्) यया त्रीणि सुखानि स्तोभति सा (छन्दः) (जगती) गच्छति सर्वं जगद्यस्यां सा (छन्दः)। [अयं मन्त्रः शत॰८.३.३.१५ व्याख्यातः]॥१८॥
भावार्थः
ये मनुष्याः प्रमादिभिः साध्यानि धर्म्याणि कर्माणि साध्नुवन्ति ते सुखालङ्कृता भवन्ति॥१८॥
हिन्दी (3)
विषय
स्त्री-पुरुषों को कैसे विज्ञान बढ़ाना चाहिये? इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! तुम लोग (मा) परिमाण का हेतु (छन्दः) आनन्दकारक (प्रमा) प्रमाण का हेतु बुद्धि (छन्दः) बल (प्रतिमा) जिससे प्रतीति निश्चय की क्रिया हेतु (छन्दः) स्वतन्त्रता (अस्रीवयः) बल और कान्तिकारक अन्नादि पदार्थ (छन्दः) बलकारी विज्ञान (पङ्क्तिः) पांच अवयवों से युक्त योग (छन्दः) प्रकाश (उष्णिक्) स्नेह (छन्दः) प्रकाश (बृहती) बड़ी प्रकृति (छन्दः) आश्रय (अनुष्टुप्) सुखों का आलम्बन (छन्दः) भोग (विराट्) विविध प्रकार की विद्याओं का प्रकाश (छन्दः) विज्ञान (गायत्री) गाने वाले का रक्षक ईश्वर (छन्दः) उस का बोध (त्रिष्टुप्) तीन सुखों का आश्रय (छन्दः) आनन्द और (जगती) जिस में सब जगत् चलता है, उस (छन्दः) पराक्रम को ग्रहण कर और जान के सब को सुखयुक्त करो॥१८॥
भावार्थ
जो मनुष्य निश्चय के हेतु आनन्द आदि से साध्य, धर्मयुक्त कर्मों को सिद्ध करते हैं, वे सुखों से शोभायमान होते हैं॥१८॥
विषय
मा, प्रमा आदि शक्तियों का वर्णन ।
भावार्थ
( मा ) ज्ञान कराने वाली, यथार्थ प्रज्ञा ( प्रभा ) उत्कृष्ट ज्ञान कराने वाली प्रमाणवती बुद्धि ( प्रतिमा ) प्रत्येक पक्ष अर्थ का मान करने वाली बुद्धि, (अस्नीवय: ) कामना योग्य अन्न ( पंक्ति ) पञ्च अवयवों से युक्त योग अथवा परिपक्व शक्ति । ( उष्णिक् ) उत्तम ( बृहती ) बड़ी शक्ति या प्रकृति, (अनुष्टुप् ) अनुकूल स्तुति ( विराट् ) विविध पदार्थ विज्ञान, ( गायत्री ) स्तुतिकर्त्ता ज्ञानी को रक्षा करने वाली शक्ति ( त्रिष्टुप् ) विविध सुखों की वर्णन करने वाली विद्या ( जगती ) सब जगत् व्यापनी शक्ति ये सभी( छन्दः ) सुख देने वाले साधन और बल के स्थान हैं।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वेदेवा देवताः । छन्दांसि देवताः । भुरिगति जगती । निषादः ।
विषय
उत्तम इच्छाएँ
पदार्थ
१. प्रभु पति - पत्नी से कहते हैं कि तुम्हारी पहली (छन्दः) = इच्छा (मा) = लक्ष्मी की हो। तुम धन को धर्म्य मार्गों से कमाने का ध्यान करो। धन के बिना गृहस्थ व संसार नहीं चल सकता। तुम्हारे ध्येय 'मा+धव' हों, लक्ष्मीपति विष्णु हों, परन्तु धन को सुपथा कमाने का प्रयत्न करो। २. (प्रमा छन्दः) = ज्ञान-प्राप्ति की तुम्हारी कामना हो। कहीं धनोपासना में फँसकर 'लक्ष्मी के वाहन उल्लू' ही न बन जाना। केवल लक्ष्मी की उपासना उल्लू बनना ही है, अतः धन के साथ ज्ञान को जोड़ने का प्रयत्न करना। ३. इस प्रकार (प्रतिमा छन्दः) = प्रभु की ही प्रतिमा [image] तदनुरूप ही बनने की इच्छा करना। 'धन व ज्ञान' ये हमें प्रभु के समीप पहुँचा देते हैं। ४. इन बातों के लिए (अस्त्रीवयः छन्दः) = [अस्यति क्षिपति, वेञ् तन्तु सन्ताने] उस अन्न की कामना करना जो सब बुराइयों को, रोगों व मानस विकारों को दूर फेंकता है और जीवनतन्तु का सन्तान करते हुए दीर्घ जीवन का कारण बनता है । ५. इस उत्तम अन्न के प्रयोग से (पङ्किः छन्दः) - पाँचों कर्मेन्द्रियों व पाँचों प्राणों को बढ़ाने की तुम्हारी कामना हो। इन सब पञ्चकों को बड़ा ठीक रखना है । ६. ऊपर के पञ्चकों को ठीक करके उष्णिक् छन्दः = (उत् स्निह्यति) उत्कृष्ट स्नेह की तुम्हारी इच्छा हो। तुम्हारा प्रेम हीन वस्तुओं के साथ न हो। ७. बृहती छन्दः - (बृहि वृद्धौ) वृद्धि उन्नति की ही तुम्हारी कामना हो । ८. इसके लिए (अनुष्टुप् छन्दः) = अनुक्षण प्रभु-स्तवन की हम कामना करें। हमें कभी प्रभु - विस्मरण न हो। ९. तभी (विराट् छन्दः) = हम विशेषरूप से दीप्त होने की कामना कर सकेंगे। प्रभु स्मरण हमारे चेहरों को आनन्द से दीप्त कर देता है। अथवा प्रभु स्मरण ही हमें (विराट्) = विशिष्टरूप से व्यवस्थित [regulated] जीवनवाला बनाएगा १०. और हम गायत्री छन्दः-प्राण-रक्षण की इच्छा कर पाएँगे। व्यवस्थित जीवन में ही प्राण सुरक्षित रहते हैं। ११. इसके लिए तुमने (त्रिष्टुप् छन्दः) = काम, क्रोध व लोभ तीनों को रोकने की कामना करनी है। १२. जगती (छन्दः) = लोकहित में लगे रहने की इच्छा करनी। लोकहित में लगा हुआ व्यक्ति वासनाओं से बचा रहता है और दीर्घ जीवन पाता है।
भावार्थ
भावार्थ - इस मन्त्र का प्रारम्भ 'मा' से है। समाप्ति 'जगती' पर है, अतः ऐसा प्रतीत होता है कि सम्पत्ति का सर्वोत्तम विनियोग लोकहित ही है।
मराठी (2)
भावार्थ
जी माणसे निश्चयपूर्वक आनंदाने आपले साध्य पूर्ण करतात व धर्मयुक्त कर्म करतात ते सुख प्राप्त करून जगात शोभून दिसतात.
विषय
स्त्री-पुरुषांनी विज्ञानात प्रगती कशी करावी, पुढील मंत्रात हा विषय प्रतिपादित आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (तुम्ही हे सर्व जाणून घ्या की) (मा) परिमाण वा मापाचे कारण वा उद्देश (छन्द:) आनंदकारक आहे. (माप, नियम, व्रत, बंधन यांमधे बांधून घेणे आनंददायक असते) (प्रमा) प्रमाण अथवा निश्चयाचे साधन आहे बुद्धी. बुद्धी हीच (छन्द:) शक्ती आहे. (प्रतिमा) ज्याद्वारे कार्य, क्रियाविषयी निश्चय केला जातो, त्याचे कारण आहे (छन्द:) स्वांतत्र्य (स्वतंत्र व्यक्तीच निर्णय वा निश्चय करू शकतो) (अस्रीवय:) शरीराला शक्ती आणि कांती देणारे जे अन्न आदी पदार्थ आहेत, तेच (छन्द:) बळाचे विज्ञान वा साधने आहेत. (पड्क्ति:) पाच अवयवांनीयुक्त योगे (पाच व यम वा पाच नियम) (छन्द:) हात (मन-बुद्धीत) प्रकाश देण्याचे कारण आहे (बृहती) विशाल प्रकृती, हाच (छन्द:) सर्वांचा आश्रम आहे. (अनुष्टुप्) सुखाचे , (सुख अनुभव करण्याचे साधन) (छन्द:) त्याचा भोग वा आद्वाद आहे (विराट्) विविध विद्यांच्या प्रकाश करणारे आहे (छन्द:) ज्ञान व विज्ञान. (गायत्री) गान करणार्याचे रक्षक करणारा परमेश्वर (त्याला प्राप्त करण्याचे साधन आहे त्याचा (छन्द:) बोध वा ज्ञान. (त्रिष्टुप्) तीन सुखांचा आश्रम आहे (छन्द:) आनंद आणि (जगती) ज्यामुळे वा ज्यामध्ये सर्व जग गतीशील आहे, त्या (छन्द:) पराक्रम वा उद्योगाचे (तुम्ही सर्व लोक) ग्रहण करा. (जगामधे आळस नका करू, उद्योग करा). वरील सर्व गोष्टी जाणून घेऊन आपले जीवन सुखी करून घ्या. ॥18॥
भावार्थ
भावार्थ - निश्चय, निर्णयाचे कारण आहे आनंद (दुखी, संशयी मनुष्य निश्चय वा निर्णय करू शकत नाही) जी माणसे या आनंदाद्वारे धर्मयुक्त कार्य पूर्ण करतात, ते सर्व सुखांचे स्वामी होतात. ॥18॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Wisdom gives pleasure. Intellect grants strength. Discernment gives freedom. Food gives physical force. Yoga with five components gives light. Affection gives fame. Matter affords shelter. Intense attachment to pleasure creates sexual enjoyment. The manifestation of different sciences gives knowledge. The worshipper of God knows Him. Dependence on physical, mental, and spiritual enjoyments gives happiness. The force that rules the universe is the source of strength and pleasure. People should take advantage of these and add to their store of happiness.
Meaning
Measure is the secret of happiness. Reason is the measure of intelligence. Freedom is the condition of truth incarnate. Practical science is the means of strength, prosperity and brightness. Five-fold yoga is the giver of light. Nature is the sustenance of life. Attachment to pleasure is bhoga (sufferance). The light of knowledge is science. The protector of gayatri is its realization. The well-being of body, mind and soul is happiness. The dynamics of existence lies in omnipotence. And these are the themes of Vaidic verses.
Translation
Measured is the metre. (1) Well-measured is the metre. (2) Counter-measured is the metre. (3) Pleasing and strengthening is the metre. (4) The Pankti is a metre. (5) The Usnik is a metre. (6) The Brhati is a metre. (7) The Anustup is a metre. (8) The Virat is а metre. (9) The Gayatri is a metre. (10) The Tristup is a metre. (11) The Jagati is a metre. (12)
Notes
Inthis verse there ts an enumeration of various metres, but awkwardly, मा , प्रमा , प्रतिमा and अस्रीवय: are not normally known as metres. These have Leen explained by the commentators with much effort and with help of the Satapatha, still not much convincing. We have interpreted these as measured, weilmeasured, counter-measured and pleasing respectively and translated ‘chandah’ as metre, uniformly. In the context of latter eight regular metres, it had to be translated as metre. The commentators have interpreted ma, as this world, i. e. the earth; pramá as the mid-space; pratima as the heaven; and asrivayah as A, food, that sustains all these three worlds.
बंगाली (1)
विषय
স্ত্রীপুরুষৈঃ কথং বিজ্ঞানং বর্দ্ধনীয়মিত্যাহ ॥
স্ত্রী পুরুষদিগকে কীভাবে বিজ্ঞান বৃদ্ধি করা উচিত, এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! তোমরা (মা) পরিমাণের হেতু (ছন্দঃ) আনন্দকারক (প্রমা) প্রমাণের হেতু বুদ্ধি (ছন্দঃ) বল (প্রতিমা) যাহা দ্বারা প্রতীতি নিশ্চয়ের ক্রিয়া হেতু (ছন্দঃ) স্বতন্ত্রতা (অস্রীবয়ঃ) বলও কান্তিকারক অন্নাদি পদার্থ (ছন্দঃ) বলকারী বিজ্ঞান (পঙ্ক্তি) পঞ্চ অবয়ব দ্বারা যুক্ত যোগ (ছন্দঃ) প্রকাশ (উষ্ণিক্) স্নেহ (ছন্দঃ) প্রকাশ (বৃহতী) বৃহৎ প্রকৃতি (ছন্দঃ) আশ্রয় (অনুষ্টুপ্) সুখের আলম্বন (ছন্দঃ) ভোগ (বিরাট্) বিবিধ প্রকারের বিদ্যাসমূহের প্রকাশ (ছন্দঃ) বিজ্ঞান (গায়ত্রী) গায়নকারীর রক্ষক ঈশ্বর (ছন্দঃ) তাহার বোধ (ত্রিষ্টুপ্) তিন সুখের আশ্রয় (ছন্দঃ) আনন্দ এবং (জগতী) যাহাতে সর্ব জগৎ গমন করে সেই (ছন্দঃ) পরাক্রমকে গ্রহণ কর এবং জানিয়া সকলকে সুখযুক্ত কর ॥ ১৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে মনুষ্য নিশ্চয় হেতু আনন্দ ইত্যাদি দ্বারা সাধ্য, ধর্মযুক্ত কর্ম্মকে সিদ্ধ করে সে সুখ দ্বারা শোভায়মান হয় ॥ ১৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
মা ছন্দঃ॑ প্র॒মা ছন্দঃ॑ প্রতি॒মা ছন্দো॑ऽ অস্রী॒বয়॒শ্ছন্দঃ॑ প॒ঙ্ক্তিশ্ছন্দ॑ऽ উ॒ষ্ণিক্ ছন্দো॑ বৃহ॒তী ছন্দো॑ऽনু॒ষ্টুপ্ ছন্দো॑ বি॒রাট্ ছন্দো॑ গায়॒ত্রী ছন্দ॑স্ত্রি॒ষ্টুপ্ ছন্দো॒ জগ॑তী॒ ছন্দঃ॑ ॥ ১৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
মাচ্ছন্দ ইত্যস্য বিশ্বদেব ঋষিঃ । ছন্দাংসি দেবতাঃ । ভুরিগতিজগতী ছন্দঃ ।
নিষাদঃ স্বরঃ ॥
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