अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 135/ मन्त्र 9
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रश्च
छन्दः - विराडार्षी पङ्क्तिः
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
51
आदि॑त्या रु॒द्रा वस॑व॒स्त्वेनु॑ त इ॒दं राधः॒ प्रति॑ गृभ्णीह्यङ्गिरः। इ॒दं राधो॑ वि॒भु प्रभु॑ इ॒दं राधो॑ बृ॒हत्पृथु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआदि॑त्या: । रु॒द्रा: । वस॑व॒ । त्वे । अनु॑ । ते । इ॒दम् । राध॒: । प्रति॑ । गृभ्णीहि ।अङ्गिर: ॥ इ॒दम् । राध॑: । वि॒भु । प्रभु॑ । इ॒दम् । राध॑: । बृ॒हत् । पृथु॑ ॥१३५.९॥
स्वर रहित मन्त्र
आदित्या रुद्रा वसवस्त्वेनु त इदं राधः प्रति गृभ्णीह्यङ्गिरः। इदं राधो विभु प्रभु इदं राधो बृहत्पृथु ॥
स्वर रहित पद पाठआदित्या: । रुद्रा: । वसव । त्वे । अनु । ते । इदम् । राध: । प्रति । गृभ्णीहि ।अङ्गिर: ॥ इदम् । राध: । विभु । प्रभु । इदम् । राध: । बृहत् । पृथु ॥१३५.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे शूर सभापति !] (ते) वे (आदित्याः) अखण्ड ब्रह्मचारी, (रुद्राः) ज्ञानदाता और (वसवः) श्रेष्ठ विद्वान् लोग (त्वे अनु) तेरे पीछे-पीछे हैं, (अङ्गिरः) हे विज्ञानी पुरुष ! (इदम्) इस (राधः) धन को (प्रति) प्रत्यक्ष रूप से (गृभ्णीहि) तू ग्रहण कर। (इदम्) यह (राधः) धन (विभु) व्यापक और (प्रभु) बलयुक्त है, (इदम्) यह (राधः) धन (बृहत्) बहुत और (पृथु) विस्तीर्ण है ॥९॥
भावार्थ
शूर प्रतापी सभापति की सुनीति से सब लोग ब्राह्मण आदि चारों वर्ण अपना-अपना कर्तव्य पूरा करें और विद्या और धन की वृद्धि से संसार में सुख बढ़ावें ॥९॥
टिप्पणी
इस मन्त्र का मिलान करो-अथ० ११।६।१३; और १९।११।४ ॥ ९−(आदित्याः) अदिति−ण्य। अखण्डब्रह्मचारिणः (रुद्राः) रुतो ज्ञानस्य रातारो दातारः (वसवः) श्रेष्ठपुरुषाः (त्वे) विभक्तेः शे। त्वाम् (अनु) अनुसृत्य (ते) प्रसिद्धाः (इदम्) (राधः) धनम् (प्रति) प्रत्यक्षेण (गृभ्णीहि) गृहाण (अङ्गिरः) विज्ञानिन् (इदम्) (राधः) (विभु) व्यापकम् (प्रभु) समर्थम् (इदम्) (राधः) (बृहत्) बहु (पृथु) विस्तृतम् ॥
विषय
'विभु-प्रभु-बृहत्-पृथु' राध:
पदार्थ
१. हे (अंगिरः) = गतिशील [अगि गा]-आलस्यशून्य विद्यार्थिन्। (आदित्या:) = 'प्रकृति, जीव व परमात्मा' तीनों से सम्बद्ध ज्ञान को प्राप्त करनेवाले विद्वन्! (रुद्रा:) = ज्ञानोपदेश द्वारा [रुत्] जीवनों को पवित्र बनानेवाला उपदेष्टा तथा (वसवः) = ज्ञानोपदेश द्वारा जीवन को उत्तम बनानेवाले (विद्वान् त्वे अनु) = तेरे प्रति अनुकूलतावाले हैं। (ते) = तेरे लिए वे 'आदित्य, रुद्र व वस'(इदं राध:) = इस ज्ञानेश्वर्य को प्राप्त कराते हैं। है अंगिरः! तू इस ज्ञानेश्वर्य को (प्रतिगृभ्णीहि) = ग्रहण कर। परिश्रमी विद्यार्थी आचार्यों को सदा प्रिय होता है। वे इसके लिए ज्ञानरूप ऐश्वर्य को प्राप्त कराते हैं। २. हे अंगिरः! (इदं राध:) = यह ज्ञानेश्वर्य (विभु) = जीवन को वैभवमय बनानेवाला है, (प्रभु) = यह जीवन को प्रभावयुक्त करता है। (इदं राध:) = यह ऐश्वर्य (बृहत्) = वृद्धि का साधन बनता है [वृहि वृद्धौ] तथा (पृथु) = शक्तियों का विस्तार करनेवाला होता है।
भावार्थ
हम गतिशील-आलस्यशून्य-बनें। हमें 'आदित्यों, रुद्रों व वसओं'द्वारा वह ज्ञानेश्वर्य प्राप्त होगा जो हमारे 'वैभव व प्रभाव, वृद्धि व शक्ति-विस्तार' का साधन बनेगा।
भाषार्थ
(त्वे) वे (आदित्याः) आदित्य ब्रह्मचारी, (रुद्राः) रुद्र ब्रह्मचारी, (वसवः) और वसु ब्रह्मचारी भी (ते) हे योगिन्! तेरी (इदं राधः) इस योग-सम्पत्ति का (अनु) अनुकरण करने लगते हैं। (अङ्गिरः) हे प्राणायामाभ्यासी नवीन उपासक! तू भी इस योग-सम्पत्ति का (प्रति गृभ्णीहि) ग्रहण कर, और इसके लिए चेष्टावान् हो। (इदं राधः) यह योग-सम्पत्ति (विभु) विभूतियों से सम्पन्न है, (प्रभु) तथा प्रभुता देनेवाली है। (इदं राधः) यह योग-सम्पत्ति (बृहत्) वृद्धिकारक और (पृथु) महाविस्तारी है।
विषय
जीव, ब्रह्म, प्रकृति।
भावार्थ
हे (अङ्गिरः) ज्ञानवन् ! (त्वा) तुझको (आदित्याः रुदाः वसवः) आदित्य, रुद और वसु, विद्वान् वीरगण और सामान्य प्रजा सभी जन (ईळते) स्तुति करते हैं। तु (इदं राधः) यह धनैश्वर्य (प्रति गृम्णीहि) स्वीकार कर। (इदं राधः) यह हमारा दिया धन (विभु) विशेष विविध सुखों का उत्पादक और विविध कार्यों से प्राप्त है। और (प्रभु) उत्तम फलजनक और उत्तम कार्यों से प्राप्त है (इदं राधः) यह धन (बृहत्) बहुत बड़ा और (पृथु) विस्तृत है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
missing
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
O scholar of life and life energy, Angira, these Adityas, Brahmacharis of highest order, Rudras of the middle order, Vasus of the first order, achieve this gift of knowledge and progressive success under your care. Pray you too receive and acknowledge thanks and this further advancement. This achievement in life energy is vast and powerful, this knowledge is comprehensive and expansive.
Translation
O man of wisdom and austerity, the men of high attainments know as Adityas, Rudras and Vasus- adhere to you. You accept this liberal gift. This bountee is spreading, powerful and it is large and vast.
Translation
O man of wisdom and austerity, the men of high attainments know as Adityas, Rudras and Wasus adhere to you. You accept this liberal gift. This bountee is spreading, powerful and it is large and vast.
Translation
O learned person, the highly learned persons, the brave and the common people all praise thee. Kindly accept this bounty of theirs. This wealth is excellent and supreme. It is great and vast.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
इस मन्त्र का मिलान करो-अथ० ११।६।१३; और १९।११।४ ॥ ९−(आदित्याः) अदिति−ण्य। अखण्डब्रह्मचारिणः (रुद्राः) रुतो ज्ञानस्य रातारो दातारः (वसवः) श्रेष्ठपुरुषाः (त्वे) विभक्तेः शे। त्वाम् (अनु) अनुसृत्य (ते) प्रसिद्धाः (इदम्) (राधः) धनम् (प्रति) प्रत्यक्षेण (गृभ्णीहि) गृहाण (अङ्गिरः) विज्ञानिन् (इदम्) (राधः) (विभु) व्यापकम् (प्रभु) समर्थम् (इदम्) (राधः) (बृहत्) बहु (पृथु) विस्तृतम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে বীর সভাপতি!] (তে) তাঁরা প্রসিদ্ধ (আদিত্যাঃ) অখণ্ড ব্রহ্মচারী, (রুদ্রাঃ) জ্ঞানদাতা এবং (বসবঃ) শ্রেষ্ঠ বিদ্বান লোক (ত্বে অনু) তোমার অনুসৃত্য, (অঙ্গিরঃ) হে বিজ্ঞানী পুরুষ! (ইদম্) এই (রাধঃ) ধন (প্রতি) প্রত্যক্ষ রূপে (গৃভ্ণীহি) তুমি গ্রহণ করো। (ইদম্) এই (রাধঃ) ধন (বিভু) ব্যাপক এবং (প্রভু) বলযুক্ত, (ইদম্) এই (রাধঃ) ধন (বৃহৎ) বহু এবং (পৃথু) বিস্তীর্ণ ॥৯॥
भावार्थ
বীর প্রতাপী সভাপতির সুনীতি দ্বারা ব্রাহ্মণ আদি চার বর্ণ নিজ-নিজ কর্তব্য পালন করুক এবং বিদ্যা ও ধনের বৃদ্ধি দ্বারা সংসারে/জগতে সুখ বৃদ্ধি করুক॥৯॥
भाषार्थ
(ত্বে) সেই (আদিত্যাঃ) আদিত্য ব্রহ্মচারী, (রুদ্রাঃ) রুদ্র ব্রহ্মচারী, (বসবঃ) এবং বসু ব্রহ্মচারীও (তে) হে যোগিন্! তোমার (ইদং রাধঃ) এই যোগ-সম্পত্তির (অনু) অনুকরণ করে/করতে শুরু করে। (অঙ্গিরঃ) হে প্রাণায়ামাভ্যাসী নবীন উপাসক! তুমিও এই যোগ-সম্পত্তি (প্রতি গৃভ্ণীহি) গ্রহণ করো, এবং ইহার জন্য চেষ্টাবান্ হও। (ইদং রাধঃ) এই যোগ-সম্পত্তি (বিভু) বিভূতিসম্পন্ন, (প্রভু) তথা প্রভুত্ব প্রদানকারী। (ইদং রাধঃ) এই যোগ-সম্পত্তি (বৃহৎ) বৃদ্ধিকারক এবং (পৃথু) মহাবিস্তারী।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal