Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 4/ मन्त्र 16
    सूक्त - गरुत्मान् देवता - तक्षकः छन्दः - त्रिपदा प्रतिष्ठा गायत्री सूक्तम् - सर्पविषदूरीकरण सूक्त

    इन्द्रो॒ मेऽहि॑मरन्धयन्मि॒त्रश्च॒ वरु॑णश्च। वा॑तापर्ज॒न्यो॒भा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । मे॒ । अहि॑म् । अ॒र॒न्ध॒य॒त् । मि॒त्र: । च॒ । वरु॑ण: । च॒ । वा॒ता॒प॒र्ज॒न्या᳡ । उ॒भा ॥४.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो मेऽहिमरन्धयन्मित्रश्च वरुणश्च। वातापर्जन्योभा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । मे । अहिम् । अरन्धयत् । मित्र: । च । वरुण: । च । वातापर्जन्या । उभा ॥४.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 4; मन्त्र » 16

    भाषार्थ -
    (इन्द्रः) विद्युत् ने (मित्रः च) और सूर्य ने (वरुणः च) और जल ने (वातापर्जन्या) वात और मेघ (उभा) इन दोनों ने, (मे) मेरे निवासस्थान से या मेरी सुरक्षा के लिये (अहिम्) सांप को (अरन्धयत्) रोंध डाला है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top