अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 4/ मन्त्र 7
सूक्त - गरुत्मान्
देवता - तक्षकः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सर्पविषदूरीकरण सूक्त
इ॒दं पै॒द्वो अ॑जायते॒दम॑स्य प॒राय॑णम्। इ॒मान्यर्व॑तः प॒दाहि॒घ्न्यो वा॒जिनी॑वतः ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । पै॒द्व: । अ॒जा॒य॒त॒ । इ॒दम् । अ॒स्य॒ । प॒रा॒ऽअय॑नम् । इ॒मानि॑ । अर्व॑त: । प॒दा । अ॒हि॒ऽघ्न्य: । वा॒जिनी॑ऽवत: ॥४.७॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं पैद्वो अजायतेदमस्य परायणम्। इमान्यर्वतः पदाहिघ्न्यो वाजिनीवतः ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । पैद्व: । अजायत । इदम् । अस्य । पराऽअयनम् । इमानि । अर्वत: । पदा । अहिऽघ्न्य: । वाजिनीऽवत: ॥४.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(इदम्) इस भूस्थल में (पैद्वः अजायत) पैद्व होता है, (इदम्) यह [जलाशय] (अस्य) इस का (परायणम्) दूसरा आने जाने का स्थान है। (इमानि) ये (पदा = पदानि) पैर हैं (अर्वतः) शीघ्रगामी, (वाजिनीवतः) शक्तिशाली, (अहिघ्न्यः) सांप के हनन कर्त्ता पैद्व के।
टिप्पणी -
[इदम् = यह तथा उदक (इदम् उदकनाम, निघं० १।१२)। मन्त्र में पैद्व की पहचान के लक्षण दर्शाए हैं, (१) वह भूस्थल पर भी रहता है, (२) जलाशय विहारी भी है, (३) शीघ्रगामी है, (४) शक्तिशाली है, (५) सांपों को मार सकता है। "सायणाचार्य ने विनियोग में कहा है कि केशवाचार्य के अनुसार पैद्वः कीट है, जिसे कि पीस कर नस्यरूप में नासिका में दिया जाता है, सर्प के विष की चिकित्सा में। यह अर्थ मन्त्रोक्त लक्षणों के प्रतिकूल है]।