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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 45

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 45/ मन्त्र 9
    सूक्त - भृगुः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - एकावसाना निचृन्महाबृहती सूक्तम् - आञ्जन सूक्त

    भगो॑ म॒ भगे॑नावतु प्रा॒णाया॑पा॒नायायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से तेज॑से स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भगः॑। मा॒। भगे॑न। अ॒व॒तु॒। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नाय॑। आयु॑षे। वर्च॑से। ओज॑से। तेज॑से। स्व॒स्तये॑। सु॒ऽभू॒तये। स्वाहा॑ ॥४५.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भगो म भगेनावतु प्राणायापानायायुषे वर्चस ओजसे तेजसे स्वस्तये सुभूतये स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भगः। मा। भगेन। अवतु। प्राणाय। अपानाय। आयुषे। वर्चसे। ओजसे। तेजसे। स्वस्तये। सुऽभूतये। स्वाहा ॥४५.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 45; मन्त्र » 9

    भाषार्थ -
    (भगः) समग्र ऐश्वर्यों का अधिकारी (भगेन) राष्ट्र के समग्र ऐश्वर्यों द्वारा (मा) मेरी (अवतु) रक्षा करे। ताकि मैं (प्राणाय अपानाय....) आदि पूर्ववत्।

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