अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
सूक्त - नारायणः
देवता - पुरुषः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - जगद्बीजपुरुष सूक्त
स॒हस्र॑बाहुः॒ पुरु॑षः सहस्रा॒क्षः स॒हस्र॑पात्। स भूमिं॑ वि॒श्वतो॑ वृ॒त्वात्यति॑ष्ठद्दशाङ्गु॒लम् ॥
स्वर सहित पद पाठस॒हस्र॑ऽबाहुः। पुरु॑षः। स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षः। स॒हस्र॑ऽपात्। सः। भूमि॑म्। वि॒श्वतः॑। वृ॒त्वा। अति॑। अ॒ति॒ष्ठ॒त्। द॒श॒ऽअ॒ङ्गु॒लम् ॥६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
सहस्रबाहुः पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्। स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥
स्वर रहित पद पाठसहस्रऽबाहुः। पुरुषः। सहस्रऽअक्षः। सहस्रऽपात्। सः। भूमिम्। विश्वतः। वृत्वा। अति। अतिष्ठत्। दशऽअङ्गुलम् ॥६.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(पुरुषः)१ ब्रह्माण्ड पुरी में बसा हुआ परमेश्वर (सहस्रबाहुः) अनन्त बलवीर्य वाला, (सहस्राक्षः) सर्वद्रष्टा, तथा (सहस्रपात्) सर्वगत, सर्वाधार है। (सः) वह (भूमिम्) पृथिवी को (विश्वतः) सब ओर से (वृत्वा) घेर कर, (अति) और इसे अतिक्रमण करके (दशाङ्गुलम्) ५ स्थूलभूतों ५ सूक्ष्मभूतों वाले ब्रह्माण्ड में (अतिष्ठत्) स्थित हैं।
टिप्पणी -
[बाहुः= बलम् “बहु बाह्वोर्बलम्” (अथर्व० १९.६०.१)। पात्=“पादयोः प्रतिष्ठा” (अथर्व० १९.६०.२) पादों का काम हैं=गति करना, और समग्र शरीर का आधार होना। दशाङ्गुलम्=१० अङ्गोंवाला ब्रह्माण्ड। ५ स्थूलभूत और ५ सूक्ष्मभूत ब्रह्माण्ड के १० अंग हैं। प्रथमार्ध मन्त्र का यह अर्थ भी है कि सब प्राणियों की हजारां बाहुएँ, हजारों नेत्र, हजारों पाद जिसके बीच में हैं, ऐसा सर्वत्र परिपूर्ण व्यापक जगदीश्वर है। पुरुषः=पूरयतेर्वा (निरु० २.१.३)।] [१. पुरुष=“पुरं यो वेद व्राह्मणो यस्याः पुरुष उच्यते" (अथर्व० १०.२.२८), में “पुर्+वस=उस=उष"=पुरुष।]