Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 6

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 6/ मन्त्र 16
    सूक्त - नारायणः देवता - पुरुषः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - जगद्बीजपुरुष सूक्त

    मू॒र्ध्नो दे॒वस्य॑ बृह॒तो अं॒शवः॑ स॒प्त स॑प्त॒तीः। राज्ञः॒ सोम॑स्याजायन्त जा॒तस्य॒ पुरु॑षा॒दधि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मू॒र्धः। दे॒वस्य॑। बृ॒ह॒तः। अं॒शवः॑। स॒प्त। स॒प्त॒तीः। राज्ञः॑। सोम॑स्य। अ॒जा॒य॒न्त॒। जा॒तस्य॑। पुरु॑षात्। अधि॑ ॥६.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मूर्ध्नो देवस्य बृहतो अंशवः सप्त सप्ततीः। राज्ञः सोमस्याजायन्त जातस्य पुरुषादधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मूर्धः। देवस्य। बृहतः। अंशवः। सप्त। सप्ततीः। राज्ञः। सोमस्य। अजायन्त। जातस्य। पुरुषात्। अधि ॥६.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 6; मन्त्र » 16

    भाषार्थ -
    (पुरुषात् अधि) परिपूर्ण परमेश्वर से (जातस्य) उत्पन्न हुए (मूर्ध्नः) सौरमण्डल के शिरोमणि, (देवस्य) प्रकाशमान, (बृहतः) सौरमण्डल में सब से बड़े सूर्य की (सप्ततीः सप्त) ७० सप्तक (अंशवः) रश्मियाँ (राज्ञः) प्रदीप्त (सोमस्य) चन्द्रमा की भी (अजायन्त) हो जाती हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top