अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 11
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
अ॒यन्म॒हा ते॑ अर्वा॒हः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यत् । म॒हा । ते॒ । अर्वा॒ह: ॥१२९.११॥
स्वर रहित मन्त्र
अयन्महा ते अर्वाहः ॥
स्वर रहित पद पाठअयत् । महा । ते । अर्वाह: ॥१२९.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 11
भाषार्थ -
(ते) वे तीन पृदाकु हैं, जो कि (अयन्महा) महिमा को प्राप्त हुए-हुए हैं, और (अर्वाहः) पर्याप्तरूप में शरीर-रथों का वहन कर रहे हैं, उन्हें विषयों की ओर ले जा रहे हैं।
टिप्पणी -
[अर्=अलम्। अयन्महाः=अय् (गतौ)+शतृ। मह=अकरान्त नपुंसकलिङ्ग। यथा—महम् (सू০ १२८, मन्त्र १४), तथा हानि (सू০ ११, मन्त्र ६)।]