अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 7
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
यत्रा॒मूस्तिस्रः॑ शिंश॒पाः ॥
स्वर सहित पद पाठयत्र॑ । अ॒मू: । तिस्र॑: । शिंश॒पा: ॥१२९.७॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्रामूस्तिस्रः शिंशपाः ॥
स्वर रहित पद पाठयत्र । अमू: । तिस्र: । शिंशपा: ॥१२९.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
हमने वहाँ आघात अर्थात् प्रहार किया है (यत्र) जहां कि (अमूः) वे प्रसिद्ध (तिस्रः) तीन (शिंशपाः) शापरूप वृत्तियाँ हैं, अर्थात् राजसिक, तामसिक तथा राजसिक और तामसिक मिश्रित चित्तवृत्तियाँ निवास करती हैं।